हिन्दी रत्न 2011 – डॉ. सरोजिनी महिषी

सन 2011 का हिन्दी रत्न सम्मान’ कर्नाटक में राष्ट्रभाषा हिन्दी की प्रबल पक्षधर एवं अनेक भारतीय भाषाओं की विदुषी डॉ. सरोजिनी महिषी को प्रदान किया गया।

समारोह के मुख्य अतिथि सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश श्री विकास श्रीधर सिरपुरकर ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिन्दी भवन के विचारों से सहमति जताते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दी के साथ-साथ अन्य भाषाएं भी सीखना उतना ही आवश्यक है।

सर्वोच्च न्यायालय की माननीय न्यायाधीश सुश्री ज्ञानसुधा मिश्रा ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि नई पीढ़ी को अन्य भाषाओं के ज्ञान के साथ-साथ हिन्दी का ज्ञान भी अवश्य होना चाहिए।

हिन्दीरत्न सम्मान से सुशोभित होने के उपरांत डॉ. सरोजिनी महिषी ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि हिन्दी भवन द्वारा दिया जाने वाला यह ‘हिन्दीरत्न’ सम्मान एक प्रशंसनीय एवं स्मरणीय कार्य है। हिन्दी भवन के संस्थापक मंत्री पं. गोपालप्रसाद व्यास को स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि वे स्वयं एक संस्थान थे।

इस अवसर पर गांधीवादी एवं वरिष्ठ साहित्यकार स्व. विष्णु प्रभाकरजी की जन्मशती के अवसर पर उनके तैलचित्र का अनावरण किया गया।

समारोह का कुशल संचालन प्रो. सुषमा यादव ने किया। समारोह में राजधानी के साहित्यकार, पत्रकार, बुद्धिजीवी, समाजसेवी और हिन्दीप्रेमी बड़ी संख्या में मौजूद थे।