‘व्यंग्यश्री सम्मान’ 1999 – श्री श्रीलाल शुक्ल

‘राग दरबारी’ जैसा कालजयी व्यंग्य-उपन्यास लिखकर हिन्दी-व्यंग्य को नई ऊंचाइयां प्रदान करने वाले और आधुनिक हिंदी साहित्य के व्यंग्यकारों में अपना एक विशिष्ठ स्थान रखने वाले प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री श्रीलाल शुक्ल को हिन्दी भवन में तीसरे ‘व्यंग्यश्री सम्मान’ से नवाज़ा गया।

श्री लाल शुक्ल की निम्नलिखित चर्चित कृतियां हैं- ‘सूनी घाटी का सूरज’, ‘अज्ञातवास’, ‘राग दरबारी’, ‘सीमाएं टूटती हैं’, ‘मकान’, ‘पहला पड़ाव’, ‘विस्रामपुर का संत’ (उपन्यास) ‘अंगद का पांव’, ‘यहां से वहां’, ‘उमराव नगर में कुछ दिन’, ‘कुछ ज़मीन पर-कुछ हवा में’ (हास्य-व्यंग्य) आदि । हिंदी व्यंग्यात्मक उपन्यास परंपरा में उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई हैं । आधुनिक हिंदी कथा-साहित्य में विशेष योगदान देने के लिए कई पुरस्कारों व सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है। जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार (वर्ष 1969), पद्मभूषण सम्मान ( वर्ष 2008), ज्ञानपीठ पुरस्‍कार ( वर्ष 2009) आदि प्रमुख हैं।

‘व्यंग्यश्री सम्मान’ समारोह-1999 का उदघाटन पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने किया।

सर्वश्री राजेन्द्र यादव, मनोहरश्याम जोशी, रवीन्द्र वर्मा, अलका पाठक और डॉ. हरीश नवल की उपस्थिति उल्लेखनीय थी। समारोह की अध्यक्षता की वरिष्ठ साहित्यकार श्री भीष्म साहनी ने। समारोह का संचालन श्री देव राजेन्द्र ने किया।

हिन्दी भवन सभागार में आयोजित इस भव्य समारोह में हिन्दी और व्यंग्यप्रेमियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति थी,जिनमें दिल्ली के अनेक साहित्यकार, पत्रकार और समाजसेवी आदि प्रमुख थे।