हिन्दी में प्रभावशाली एवं उत्कृष्ट व्यंग्य-लेखन के लिए छठा ‘व्यंग्यश्री सम्मान’ श्री शंकर पुण्ताम्बेकर को वयोवृद्ध साहित्यकार श्री विष्णु प्रभाकर ने प्रदान किया।
श्री पुण्ताम्बेकर की चर्चित कृतियां हैं-‘विजिट यमराज की’,’बदनामचा’, ‘व्यंग्य अमरकोश’, ‘तीन व्यंग्य नाटक’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘दुर्घटना से दुर्घटना तक’, ‘मेरी फांसी’, ‘गिद्ध मंडरा रहा है’, ‘कट आउट’,‘तेरहवां डिनर’, ‘गुलेल (पांच खंड) ‘जंगल में’, और ‘पराजय की जुबली’ आदि । कुल मिलाकर एक हजार फुटकर व्यंग्य-रचनाएं।
‘व्यंग्यश्री सम्मान’ समारोह-2002 में विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री कमलेश्वर, मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. वेदप्रताप वैदिक एवं श्री प्रदीप पंत और श्री अनूप श्रीवास्तव ने अपने उदगार व्यक्त किए और उसके बाद काव्य-पाठ किया – सर्वश्री अल्हड़ बीकानेरी, सत्यपाल नांगिया तथा मृदुला अरुण ने। यह समारोह पंडित गोपालप्रसाद व्यास के सान्निध्य में संपन्न हुआ।
हिन्दी भवन सभागार में आयोजित इस समारोह में हिन्दी और व्यंग्यप्रेमियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति थी,जिनमें दिल्ली के अनेक साहित्यकार, पत्रकार और समाजसेवी आदि प्रमुख थे।