‘व्यंग्यश्री सम्मान’ 2003 – श्री लतीफ घोंघी

हिन्दी के वरिष्ठ एवं व्यंग्य-साहित्य में तीस से अधिक पुस्तकें लिखने वाले श्री लतीफ घोंघी को सातवां ‘व्यंग्यश्री सम्मान’ प्रख्यात साहित्यकार डॉ. रामदरश मिश्र ने प्रदान किया। मुख्य वक्ता थे वरिष्ठ पत्रकार श्री आलोक मेहता।

इस अवसर पर श्री प्रदीप पंत और डॉ. प्रेम जनमेजय ने अपने-अपने आलेख पढ़े। सर्वश्री सुरेन्द्र शर्मा, विनय विश्वास, आलोक पुराणिक और प्रभाकिरण जैन ने व्यंग्य-रचनाओं का पाठ किया। समारोह पं. गोपालप्रसाद व्यास के सान्निध्य में संपन्न हुआ। हिन्दी साहित्य में परसाई ने व्यंग्य को उसकी विपन्न स्थितियों से निकालकर उसे ऊंचा उठाने का जो दुष्कर कार्य किया , उस परम्परा में वही कार्य लतीफ घोंघी ने हास्य के लिए किया।

हिन्दी व्यंग्य के एक महत्वपूर्ण पुरोधा श्री लतीफ घोंघी की अनेक चर्चित कृतियां हैं- ‘तिकोने चेहरे’,’उड़ते उल्लू के पंख’, ‘मृतक से क्षमा-याचना सहित’, ‘बीमार न होने का दुःख’,’तीसरे बंदर की कथा’, ‘संकटलाल जिंदाबाद’, ‘मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएं’, ‘बब्बू मियॉं कब्रिस्तान में’, ‘किस्सा दाढ़ी का’, ‘जूते का दर्द’, ‘सोने का अंडा’, ‘चोरी न होने का दुःख’, ‘मुर्दा-नामा’, ‘मेरी मौत के बाद’, ‘बुद्धिजीवी की चप्पलें’, ‘बधाइयों के देश में’, ‘लॉटरी का टिकट’, ‘व्यंग्य की जुगलबंदी’, ‘सड़े हुए दांत’, ‘क्षमा करना, हम दुःखी हैं’, ‘ज्ञान की दुकान’, ‘बुद्धिमानों से बचिये’, ‘मेरा मुख्य अतिथि हो जाना’, ‘ईमानदारी की गोलियां’ तथा ‘मेरी प्रिय व्यंग्य-रचनाएं’ आदि ।

हिन्दी भवन सभागार में आयोजित इस समारोह में हिन्दी और व्यंग्यप्रेमियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति थी,जिनमें दिल्ली के अनेक साहित्यकार, पत्रकार और समाजसेवी आदि प्रमुख थे।