‘व्यंग्यश्री सम्मान’ 2012 – डॉ. हरीश नवल

नई दिल्ली – इस बार का प्रतिष्ठित ‘व्यंग्यश्री सम्मान-2012’ से चर्चित व्यंग्यकार डॉ. हरीश नवल को हिन्दी भवन सभागार में आयोजित एक भव्य समारोह में सम्मानित किया गया।

सोलहवें व्यंग्यश्री सम्मान से नवाज़े गए हरीश नवल को जाने-माने व्यंग्यकार डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने बधाई देने साथ व्यंग्य की समीक्षा करते हुए कहा कि जो व्यंग्यकार पुरस्कार प्राप्त करने के लिए लिखता है, वह सही व्यंग्यकार नहीं है। आज व्यंग्य खूब लिख जा रहा है, पढ़ा भी जा रहा है। आज मूर्तिभंजक समय है। ऐसे समय में व्यंग्य के जरिए जो बात कही जा रही है, उसका प्रभाव जनमानस पर गहरा पड़ता है। व्यंग्यश्री सम्मान प्रदान करने के लिए हिन्दी भवन का आभार व्यक्त करते हुए डॉ. हरीश नवल ने हिन्दी भवन के संस्थापक पं. गोपालप्रसाद व्यास को याद करते हुए उनसे संबंधित कुछ संस्मरणों के साथ-साथ स्वरचित दो व्यंग्य रचनाओं का पाठ भी किया।

बालस्वरूप राही ने व्यास जी को याद करते हुए ,व्यंग्य विधा पर कहा कि जितना पैनापन व्यंग्य में होता है, उतना और किसी विधा में नहीं होता। उन्होंने कहा कि डॉ. नवल ऐसे व्यंग्यकार है जिन्होंने सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक तथा हर प्रकार की विसंगतियों पर व्यंग्य लिखे हैं।

डॉ. अरुण दिवाकरनाथ वाजपेयी ने कहा कि साहित्य की शक्ति ने ही मुझे कुलपति पद पर बैठाया। जिस दिन भारत का साहित्यकार पीड़ा, दर्द एवं करूणा की आग में तपेगा उस दिन उसकी साधना सफल होगी। उन्होंने कहा कि कवि होना कठिन है, लेकिन कविता लिखना सरल है। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामदरश मिश्र ने अपना अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कहा कि जिस रूप में आज व्यंग्य नया रूप ले रहा है, उस प्रकार का मैं नहीं लिख सकता। व्यंग्य दो तरह का होता है। कुछ लोग व्यंग्मय हो जाते है, हर बात को व्यंग्य में कहते हैं। आज कुछ व्यंग्यकार क्रिएटिव श्रेणी के है, व्यंग्य लिखते हैं, मंच पर सुनाते है। विसंगतियों से बड़े दुखी हैं। जिन पर व्यंग्य लिखते हैं, सुरंग खोदकर उन्हीं के पीछे घूमते हैं।

समारोह का संचालन डॉ. प्रेम जनमेजय ने और हिन्दी भवन की न्यासी इन्दिरा मोहन ने सभी उपस्थित जनों के प्रति आभार प्रकट किया। इस सम्मान समारोह में देश के जानेमाने साहित्यकार, पत्रकार और समाज सेवी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।