न कोई गालिब, न तुलसीदास होगा……..
हिन्दी काव्य की वाचिक परंपरा के उन्नायक एवं हिन्दी भवन के संस्थापक पंडित गोपालप्रसाद व्यास की आठवीं पुण्यतिथि के अवसर पर मंगलवार, 28 मई, 2013 को हिन्दी भवन सभागार में आयोजित ‘काव्ययात्राः कवियों के मुख से’ कार्यक्रम के अंतर्गत गीत, ग़ज़ल और लोकगीतों के वरिष्ठ एवं लोकप्रिय रचनाकार अंसार कम्बरी एवं प्रमोद तिवारी ने सभागार में उपस्थित सभी काव्यप्रेमी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम से पूर्व श्री रामनिवास जाजू ने आमंत्रित कवियों को पुष्पगुच्छ प्रदान किए तथा हिन्दी भवन के न्यासी श्री महेशचन्द्र शर्मा एवं डॉ0 रत्ना कौशिक ने क्रमशः प्रतीक चिह्न भेंट किए।
समारोह के प्रारंभ में हिन्दी भवन के मंत्री एवं वरिष्ठ व्यंग्य कवि डॉ0 गोविन्द व्यास ने इस काव्य संध्या के विषय में जानकारी दी तथा विशिष्ठ अतिथि एवं आमंत्रित कवियों का संक्षिप्त परिचय देते हुए इस काव्य संध्या का संचालन आलोक श्रीवास्तव को सौंप दियाः-
प्रसिद्ध गीतकार प्रमोद तिवारी ने काव्य संध्या का प्रारंभ करते हुए कहाः-
कभी शीशा नहीं होता, कभी पत्थर नहीं होता,
जिसे अक्सर समझते हैं, वही अक्सर नहीं होता।
हवाएं काटकर कंधे से कब का ले गई होतीं,
तेरी जुल्फों के साये में जो मेरा सर नहीं होता।
बड़े आराम से मैं कत्ल हो जाता मोहब्बत में
अगर उस रोज तेरे हाथ में खंजर नहीं होता।
कहीं सूखे हुए तालाब सा यूं ही पड़ा होता,
अगर नदियां नहीं मिलती, कोई सागर नहीं होता।
……………..
ये नज़र नज़र का ही खेल है,
जो तू दिल से होकर गुजर गया।
इन्हीं सीढ़ियों से चढ़ा था तू,
इन्हीं सीढ़ियों से उतर गया।
मैं तो फूल था किसी पेड़ का,
ये तो आंधियां ही बताएंगी,
मैं किधर गया,वो किधर गया।
……………..
जख्म भले ही अलग-अलग हो, लेकिन दर्द बराबर हैं,
कोई फर्क नहीं पड़ता है, तुम सह लो या मैं सह लूं।
आंखों की दहलीज पे आके, सपना बोला आंसू से,
घर तो आखिर घर होता है, तुम रह लो या मैं रह लूं।
धूप का जंगल, नंगे पांव, एक बंजारा करता क्या,
रेत का दरिया, रेत के झरने, प्यास का मारा करता क्या।
बादल-बादल आग लगी थी, छाया तरसे छाया को,
पत्ता-पत्ता सूख चुका था, पेड़ बेचारा करता क्या।
……………..
यूं ही लड़ते रहे भाषा को लेकर,
न कोई गालिब, न तुलसीदास होगा।
मेरे घर मंथरा है, कैकयी है,
मुझे भी एक दिन बनवास होगा।
……………..
मैं तुझे लाजवाब कर दूंगा,
तुझको झूकर गुलाब कर दूंगा।
बच के रहना हवा का झोंका हूं,
मैं तुझे बेनकाब कर दूंगा।
मुझको नजरे उठाके देखो तो,
तेरी आंखे शराब कर दूंगा।
धड़कते, सांस लेते, रुकते-चलते मैंने देखा है,
कोई तो है जिसे अपने में पलते मैंने देखा है।
तुम्हारे खून से मेरी रंगों में ख्वाव रौशन है,
तुम्हारी आदतों में खुद को ढलते मैंने देखा है।
मुझे मालूम है उनकी दुआएं साथ चलती हैं,
सफर की मुश्किलों को हाथ मलते मैंने देखा है।