हिन्दी भवन के पूर्व अध्यक्ष स्व. धर्मवीर (आई. सी. एस.) की स्मृति में विश्वविख्यात कलाकार, अनूठे गायक और संगीतकार शेखर सेन ने अपने एकल नाट्य ‘तुलसी’ की 118वीं प्रस्तुति हिन्दी भवन सभागार में 24 नवम्बर, 2011 को प्रस्तुत की। गोस्वामी तुलसीदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित इस ज्ञानवर्धक नाट्य मंचन को देखकर उपस्थित जनसमुदाय भावविभोर हो गया।
श्री शेखर सेन ने कार्यक्रम का शुभारंभ रामचरित मानस की चौपाइयों से किया। तदुपरांत छंद, सोरठे, सवैये और दोहों की प्रासंगकिता को उजागर करते हुए बहुत सी ऐसी जानकारियां दी जो कि साधारणतः लोगों को विदित ही नहीं है। जैसे उनका हनुमानजी से साक्षात्कार, रामचरित मानस के लेखन पर विरोधियों का षडयंत्र, रामलीला की प्रस्तुतियों का प्रचलन किस प्रकार और कब से हुआ। गुरुकुल में किन-किन गुरुओं से उन्होंने व्याकरण और ज्योतिष-शास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया। रामचरित मानस के बालकांड से लेकर लंकाकांड तक की सुमधुर व्याख्या करते हुए उन्होंने जगह-जगह कबीर और रहीम से हुई अपनी मुलाकातों का उल्लेख भी किया। पूरी नाट्य श्रृंखला में उन्होंने 36 प्रकार के काव्य-दृश्यों को अपने मधुर संगीत में बांधकर चित्रित किया।
मुख्य अतिथि के रूप में श्री अशोक चन्द्रा (चेयरमेन, डीपीएस सोसायटी) एवं श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी के सान्निध्य में आयोजित इस नाट्य मंचन में श्री शेखर सेन ने तुलसी के चिंतन, दर्शन, श्रृंगार एवं सामाजिक सरोकार को अपनी प्रस्तुति कौशल द्वारा जीवंत कर दिया। इस आयोजन का कुशल संचालन हिन्दी भवन की न्यासी डॉ. रत्ना कौशिक ने किया और धन्यवाद ज्ञापन हिन्दी भवन के मंत्री एवं प्रसिद्ध व्यंग्य कवि डॉ. गोविन्द व्यास ने किया। खचाखच भरे सभागार में राम-रस का भरपूर आनंद प्राप्त करने के लिए राजधानी के साहित्यकार, पत्रकार, सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट के न्यायाधीश, बुद्धिजीवी एवं हिन्दीप्रेमी भारी संख्या में मौजूद थे। जिनमें प्रमुख हैं सर्वश्री न्यायमूर्ति वी. एस. सिरपुरकर, प्रो. निर्मला जैन, वीरेन्द्र प्रभाकर, महेशचन्द्र शर्मा, इन्दिरा मोहन, गीता चन्द्रन, डॉ. पी. के. दवे, राजेन्द्र मोहन, संतोष माटा, बिशननारायण टंडन, आशीष कंधवे, राजनारायण बिसारिया, उषा पुरी, अरुणकुमार जैमिनी, शशिकांत आदि।