2 फरवरी 1959 को लखनऊ में जन्मे डॉ. गोपाल चंद्र मिश्र जी अग्नि सुरक्षा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में 43 वर्षों से ज़्यादा का अनुभव रखने वाले देश के प्रतिष्ठित विशेषज्ञ हैं। उन्होंने देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों जैसे-लखनऊ विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक (1977), नागपुर विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग में स्नातक (1982), और आरटीएम विश्वविद्यालय, नागपुर से इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर (1992) एवं इंजीनियरिंग में डॉक्टरेट (2002) की उपाधि प्राप्त की है।
डॉ. मिश्र ने यूके, जापान, नीदरलैंड और अमेरिका सहित विभिन्न देशों में अग्नि सुरक्षा, बचाव तकनीकों, खतरनाक पदार्थों के संचालन और आपदा प्रबंधन पर व्यापक अंतर्राष्ट्रीय प्रशिक्षण प्राप्त किया है। वे इंस्टीट्यूशन ऑफ़ फायर इंजीनियर्स (इंडिया) और इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स (इंडिया) के फेलो हैं। उन्होंने तीन पुस्तकों और कई शोध लेखों के माध्यम से अग्नि सुरक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
उनकी इसी उत्कृष्ट सेवा के लिए उन्हें राष्ट्रपति अग्निशमन सेवा पदक (विशिष्ट सेवा हेतु), राष्ट्रपति अग्निशमन सेवा पदक (सराहनीय सेवा हेतु) तथा इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स (इंडिया) द्वारा 2018 में "एमिनेंट इंजीनियर अवार्ड" से सम्मानित किया जा चुका है।
डी. लिट्. (मानद) की उपाधि से सम्मानित डॉ. गोविन्द व्यास हिन्दी के लोकप्रिय व्यंग्य-कवि हैं। अमेरिका, बैंकाक, नेपाल, ओमान, दुबई के साथ-साथ देश-विदेश के पाँच हज़ार से अधिक कवि-सम्मेलनों में काव्यपाठ। लाल किले के अखिल-भारतीय कवि-सम्मेलन एवं दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल से प्रसारित अधिकांश कवि-सम्मेलनों का संचालन। राजपाल एंड संस से प्रकाशित 'मेरे इस देश में' चर्चित काव्य-संग्रह, जिसकी भूमिका पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लिखी। स्व. जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में सक्रिय भागीदारी। दिल्ली विश्वविद्यालय में वरिष्ठ प्राध्यापक रहे और अब सेवानिवृत्त। देश की अनेक प्रतिष्ठित साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
वर्ष 1953 में जन्मे हरिशंकर बर्मन हैण्डलूम सिल्क व कॉटन उद्योग में एक चर्चित नाम हैं। हरिशंकर बर्मन जी एक ओर सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक सरोकारों से जुड़े हुए हैं तो दूसरी ओर स्वदेशी और स्वदेशी वस्त्रों के प्रचार और प्रसार में। हिन्दी भवन के अस्तित्व में आने से लेकर अब तक पूरी तरह हिन्दी और हिन्दी भवन की सेवा में संलग्न हैं।
1955 में जन्मीं डॉ. रत्नावली कौशिक को अपने पिता पं. गोपाल प्रसाद व्यास से साहित्यिक संस्कार और लेखन विरासत में मिले। देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर कहानियाँ एवं लेख प्रकाशित। अनेक टेलीविजन धारावाहिकों के संवाद एवं पटकथा-लेखन के साथ-साथ विज्ञापन की दुनिया में सक्रिय योगदान। दिल्ली विश्वविद्यालय में 35 वर्षों तक एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर अपनी सेवाएँ देने के बाद सेवानिवृत्त होकर हिन्दी भवन की सहमंत्री के रूप में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में संलग्न।
हिन्दी भवन की न्यासी एवं दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्ष के रूप में सनातन, संस्कृति एवं हिंदी की सेवा में रत रहने वाली, श्रीमती इंदिरा मोहन जी, गत 44 वर्षों से हिन्दी भाषा और साहित्य के विभिन्न कार्यक्रमों के संयोजन एवं संचालन के महती कार्यों से जुड़ी रही हैं। इनके अब तक तीन गीत संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। इनके गीतों की यह धारा अनायास ही अध्यात्म की ओर मुड़ गई, जिसके फलस्वरूप "योगवाशिष्ठ अनुशीलन", "ओंकार-सार" एवं "श्री शंकरभाष्य-सार" के रूप में विशाल वेदांत ग्रंथों को जिज्ञासु साधकों के लिए बोधगम्य बनाने का प्रयास किया है। श्रीमती इंदिरा मोहन जी का कहना है कि "मैं गुरुदेव पं. गोपाल प्रसाद व्यास जी की महती अनुकम्पा से हिंदी भवन की पहली ईंट से जुड़ी हुई हूँ।"
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (ए.आई.आई.एम.एस.), दिल्ली के पूर्व निदेशक। दुनिया के जाने-माने अस्थिरोग विशेषज्ञ। गुजराती भाषी होते हुए हिन्दी भाषा और साहित्य में गहरी रुचि। चिकित्सा के क्षेत्र में योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा 'पद्मश्री' से अलंकृत। भारत के महामहिम राष्ट्रपति के पूर्व मानद सर्जन। देश ही नहीं, दुनिया के अनेक देशों में चिकित्सा विज्ञान के विषयों पर व्याख्यान। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की पुस्तकों के हिन्दी संस्करणों के लिए प्रयत्नशील।
भारतीय राजस्व सेवा (1975 बैच) मुख्य आयकर आयुक्त, दिल्ली तथा आयकर लोकपाल (तमिलनाडु, पांडिचेरी तथा चेन्नई मार्च-2013 तक) रहे। आयकर विभाग अहमदाबाद, नागपुर, अमृतसर और दिल्ली में इन्होंने एक दशक से अधिक राजस्व इकाई के लिए कार्य किया। श्री सुनील चोपड़ा ने अपने पूज्य पिता स्व. श्री मोहन चोपड़ा जो अपने समय के हिन्दी के प्रति अत्यंत निष्ठावान, सुप्रसिद्ध एवं सफल साहित्यकार थे, उनके द्वारा लिखित पुस्तकों का सात खंडों में 'मोहन चोपड़ा ग्रंथावली' का सफल संपादन किया।
सुशील कुमार गोयल जी वर्ष 1974 से केमिकल उद्योग से जुड़े हैं, इस क्षेत्र के प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। श्री पुरुषोत्तम हिंदी भवन न्यास समिति के सदस्य के रूप में न्यासी मंडल से जुड़े होने के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में भी अपनी सक्रिय सेवाएं दे रहे हैं:-
अध्यक्ष : सनातन धर्म महासभा (दिल्ली)
निर्वर्तमान अध्यक्ष : केमिकल एसोसिएशन (पंजीकृत) 1996-2016
चेयरमैन : कंफेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्स टीम कैट दिल्ली
उपाध्यक्ष : दिल्ली पिंजरापोल सोसायटी गौशाला
उपाध्यक्ष : नवश्री धार्मिक लीला कमेटी (पंजीकृत) लाल किला ग्राउंड
18 जुलाई, 1953 को दिल्ली के जाने माने संभ्रांत समाजसेवी परिवार में जन्मे विजय मोहन (72 वर्षीय) जी इस समय शालीमार ऑफसेट प्रेस के स्वामी एवं राष्ट्रीय विश्वास हिंदी पाक्षिक के संपादक हैं। अपने परिवार की समाज सेवी विरासत को संभालने वाले विजय मोहन जी सामाजिक प्रतिबद्धता वाले एक सजग व्यक्ति हैं। सामाजिक एवं सांस्कृतिक सरोकारों से जुड़े होने के साथ निम्नलिखित क्षेत्रों में अपनी महत्वपूर्ण सेवाएँ देकर, अपने परिवार की उस उज्ज्वल विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं:-
जनता को ऑपरेटिव बैंक लि. के अध्यक्ष
दिल्ली स्टेट कोऑपरेटिव यूनियन लि. के महासचिव
दिल्ली स्टेट को ऑपरेटिव बैंक लि. के निदेशक
दिल्ली अर्बन कोऑपरेटिव बैंक्स फेडरेशन के अध्यक्ष
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव
रजिस्ट्रार, दिल्ली सरकार की एजुकेशन फंड कमेटी के सदस्य
8 अगस्त, 1975 को दरभंगा (बिहार) में जन्म लेने वाले संतोष कुमार का मन हिंदी में खूब रमता है। उनकी गहरी रुचि हिंदी की कविताओं को पढ़ने और लिखने में है। हिंदी भवन के न्यासी सदस्य के रूप में अपनी सेवाएँ देने वाले संतोष कुमार जी इस समय मुख्य अभियंता, दिल्ली नगर निगम के रूप में कार्यरत हैं। उनकी शिक्षा प्राप्ति के अनेक सोपान हैं:-
स्नातक (विद्युत इंजीनियरिंग), बी.आई.टी. सिंदरी (झारखंड)
स्नातकोत्तर डिप्लोमा (ऊर्जा प्रबंधन) हैदराबाद विश्वविद्यालय
प्रमाणित ऊर्जा प्रबंधक व लेखा परीक्षक, ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा
4 सितम्बर, 1973 में जन्मी निधि गुप्ता हिन्दी भवन में नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती हैं। वर्तमान में वे डेसेन प्राइवेट लिमिटेड की अध्यक्षा हैं - जो भारत और विदेशों में मुख्य रूप से बिजली क्षेत्र में एक अग्रणी परामर्श इंजीनियरिंग और टर्नकी अनुबंध कंपनी है। यह भारत के लगभग सभी राज्यों को कवर करते हुए लगभग 50,000 मेगावाट की उत्पादन क्षमता के लिए कोयला/लिग्नाइट फायर के साथ-साथ गैस/तरल ईंधन आधारित सरल और संयुक्त चक्र बिजली परियोजनाओं के इंजीनियरिंग और निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है। अपनी औद्योगिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ हिन्दी के प्रति आपकी आस्था और समर्पण प्रशंसनीय है।
14 मई, 1966 में जन्मी प्रभा जाजू वर्तमान में 'विमलेश इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड' की डायरेक्टर हैं। वे गौरवशाली संस्थान 'हिन्दी भवन' की न्यासी होने के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक आयोजनों के संयोजन व संचालन में दक्ष हैं। वे प्रतिष्ठित महिला संस्था 'महिला मंगल' की बहुचर्चित पत्रिका 'मंजूषा' की संपादिका हैं और 'दिल्ली प्रादेशिक माहेश्वरी महिला संगठन' में भी सचिव के रूप में कार्यरत हैं।
वर्ष 1968 में जन्में नवनीत सरीन हिन्दी भवन में नई पीढ़ी के चेहरे हैं। वे एक सफल उद्यमी हैं और वाणिज्य के क्षेत्र में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान है।
7 सितंबर, 1963 को दिल्ली के प्रसिद्ध शिक्षाविदों के परिवार में जन्म लेने वाली अनु सिंह ने अपनी शिक्षा मॉडर्न हाई स्कूल और सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से प्राप्त की। वर्तमान में वह दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ़ वोकेशनल स्टडीज़ के इतिहास विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।
उनकी अभिरुचि केवल आधुनिक और समकालीन भारतीय इतिहास, पर्यावरणीय अध्ययन, जलवायु परिवर्तन के साथ ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और उससे जुड़ी लोक परंपराओं में भी गहरी रुचि है। इनके अध्ययन का दायरा बहुत व्यापक है।