तन भी दुरुस्त, मन भी दुरुस्त,
टी.बी. का नहीं कुयोग प्रिये !
पच जाता दूध, दही, मक्खन,
खप जाता मोहनभोग प्रिये !
कहते हैं, ”कभी-कभी तो तुम
कुछ बात समझ की किया करो !
कुछ बात मान भी लिया करो !
इस हरदम की ही-ही-हू-हू
ठट्ठे मज़ाक को छोड़ो तुम,
लिख चुके बहुत परिहास, व्यास,
गंभीर तुकें अब जोड़ो तुम।”
कहते हैं, ”ऐसे गीत लिखो
जिनमें से आहें आती हों।
जिनसे उच्छ्वास उफनते हों,
दिल की धडकन बढ़ जाती हों,
तुम आंख मूंदकर सपनों में,
खो जाओ रे, सो जाओ रे !
घर के किस्से लिख लिए बहुत
अब कवि-दुनिया में आओ रे !”
” तो तुम्हीं कहो, पुष्पा की मां’
अब किस बज़ार में जाऊं मैं ?
गंभीर भाव के ये सौदे
कितने तक में कर आऊं मैं ?
या बिना भाव ही लिखूं-पढूं,
या बिना गले ही गाऊं मैं ?
या बिना चोट ही ‘हाय मरा !’
‘मर चला हाय !’ चिल्लाऊं मैं !
मैं बोलो किससे प्रेम करूं,
खुद ही पसंद कर ला दो न !
कैसे उससे व्यवहार करूं,
आता हो तो सिखला दो न !
किस तरह भरी जाती आहें,
किस तरह निगाहें मिलती हैं,
किस तरह भ्रमर मंडराते हैं,
तितली किस तरह मचलती है !
ये जान-बूझकर परवाने,
किस तरह शमा पर जलते हैं ?
क्यों मीठी नींद न सोते हैं,
करवट किसलिए बदलते हैं ?
दिल में परदेसी की कैसे
तसवीर उतारी जाती है ?
किस तरह प्रेम के चक्कर में
ये अक्कल मारी जाती है ?
अब किस ‘अनदेखी’ को बोलो,
सपनों की राह बुलाऊं मैं ?
सालियां भाभियां सब मोटी,
पलकों पर किसे बिठाऊं मैं ?
तुम जरा चली जाओ मैके,
अंदाज विरह का कर लूं मैं,
तारों से परिचय कर लूं मैं,
ठंडी सांसें कुछ भर लूं मैं !
तुम भी दिन में कुछ सो लेना,
जागेंगे रातों-रात प्रिये !
तारे ही तार बनेंगे तब,
कर लेंगे दो-दो बात प्रिये !
मैं तुम्हें लिखूंगा प्रेमपत्र,
तुम देना नहीं जवाब प्रिये !
दिल थोड़ा पत्थर कर लेना,
पहुंचेगा तुम्हें सबाब प्रिये !
फिर मैं चंदा में आंख फाड़तेरा ही रूप निहारूंगा,
कोई भी आती-जाती हो,
तुझको ही समझ पुकारूंगा ।
कुछ रोऊंगा, कुछ गाऊंगा,
कुछ जीतूंगा, कुछ हारूंगा।
धीरे-धीरे थोड़े दिन में
मैं अपने कपड़े फाडूंगा।
खादी के ये मोटे कपड़े,
फटते हैं तो फट जाने दो,
आलोचक खाए जाते हैं,
मुझको भी अब ‘फ़िट’ आने दो।
मैं बहुत हंस चुका हूं संगिनि,
मुझको अब इन पर रोने दो,
बनने दो जरा मुझे भारी,
गंभीर मुझे कुछ होने दो !”
तुम इनकी बातों में आए ?
बकने दो इन बजमारों को !
इस प्रेम-व्रेम के चक्कर में
फंसने दो दाढ़ीजारों को !
ये खोटी नीयत वाले हैं,
इनकी सोहबत मत किया करो !
दफ्तर से छुट्टी होते ही
सीधे घर को चल दिया करो।”