सन 2002 का 'हिंदी रत्न सम्मान' कश्मीरी हिंदी के विद्वान प्रो. चमनलाल सप्रू को प्रदान किया गया।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में समाजसेवी एवं राजनीतिज्ञ श्री बृजमोहन ने कहा कि देश में अब ऐसा कोई साँचा नहीं बचा है जिसमें राजर्षि टण्डन जैसा व्यक्तित्व आ सके।
वरिष्ठ पत्रकार श्री जगदीश मित्तर शर्मा ने पंडित भीमसेन जी की हिन्दी के प्रति निष्ठा की प्रशंसा की तथा डॉ. वीरेन्द्र शर्मा ने प्रो. चमनलाल सप्रू का विस्तृत परिचय दिया।
हिन्दी भवन के संस्थापक पं. गोपाल प्रसाद व्यास ने ‘हिन्दीरत्न’ चमनलाल सप्रू को बधाई एवं आशीर्वाद दिया।
हिन्दी भवन के अध्यक्ष श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने सभी आगंतुकों का आभार व्यक्त किया। प्रशंसा वाचन श्री देवराजेन्द्र तथा हिन्दी भवन के निदेशक श्री शेरजंग गर्ग ने किया। समारोह के अंत में भारत के महामहिम उपराष्ट्रपति श्री कृष्णकांत के असामयिक निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त करने के साथ दो मिनट का मौन धारण किया गया।
इस सम्मान समारोह में राजधानी के कई साहित्यकार,लेखक, पत्रकार और हिंदी प्रेमियों की बड़ी संख्या में गरिमामयी उपस्थिति रही।