प्रो. चमनलाल सप्रू

राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन की 121वीं जयंती के अवसर पर पं. भीमसेन विद्यालंकार की स्मृति में स्थापित पॉंचवॉं ‘हिन्दीरत्न सम्मान’ कश्मीर के हिन्दीसेवी विद्वान प्रो. चमनलाल सप्रू को श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी और वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक श्री प्रभाष जोशी द्वारा प्रदान किया गया।

कार्यक्रम के प्रारंभ में कविवर गोपालसिंह नेपाली द्वारा रचित हिन्दी-वंदना का पाठ कवयित्री प्रभाकिरण जैन ने किया। समाजसेवी राजनेता श्री बृजमोहन ने कहा कि देश में अब ऐसा सांचा नहीं रह गया है जिसमें राजर्षि टंडन जैसे व्यक्तित्व ढल सकते हों। वरिष्ठ पत्रकार श्री जगदीश मित्तर शर्मा ने पंडित भीमसेनजी की हिन्दीनिष्ठा की भूरि-भूरि प्रशंसा की और डॉ. वीरेन्द्र शर्मा ने प्रो. चमनलाल सप्रू का विस्तृत परिचय दिया। हिन्दी भवन के संस्थापक पं.गोपालप्रसाद व्यास ने ‘हिन्दीरत्न’ चमनलाल सप्रू को बधाई और आशीर्वाद दिए। हिन्दी भवन के अध्यक्ष श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने समस्त आगंतुकों का आभार व्यक्त किया। प्रशस्ति वाचन श्री देवराजेन्द्र तथा संचालन हिन्दी भवन के निदेशक डॉ. शेरजंग गर्ग ने किया।

समारोह में राजधानी के अनेक साहित्यकार, पत्रकार एवं हिन्दीप्रेमी उपस्थित थे। जिनमें उल्लेखनीय हैं- सर्वश्री महेशचंद्र शर्मा, गोविन्द व्यास, इन्दिरा मोहन, शकुंतला आर्य, अजय भल्ला, वीरेन्द्र प्रभाकर, वीरेन्द्र सक्सेना एवं हरीशंकर बर्मन।

समारोह के अंत में भारत के महामहिम उप-राष्ट्रपति स्व. श्री कृष्णकांत के असामयिक निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया गया और शोक संवेदना व्यक्त करते हुए करते हुए कहा गया- “श्री कृष्णकांत पिछले चार दशकों से भारतीय राजनीति में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाए हुए थे। उनमें समाज के दबे-कुचले वर्गों के प्रति असीम संवेदना थी और समाज में व्याप्त अनेक दुर्बलताओं के समाधान के लिए वे निरंतर प्रयत्नशील रहते थे। वह जिस पद पर भी रहे उसकी गरिमा बढ़ाने में अपना अपूर्व योगदान किया।”

हिन्दीरत्न प्रो. चमनलाल सप्रू का संक्षिप्त परिचय

जन्मः- 22 जनवरी, 1935 श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर)

शिक्षाः- एम.ए. (चण्डीगढ़-पंजाब विश्वविद्यालय) हिन्दी पारंगत, सर्वोच्च उपाधि (केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा)

प्रो. चमनलाल सप्रू एक निष्ठावान हिन्दीप्रेमी एवं शिक्षक और कश्मीर के सांस्कृतिक इतिहास के अधिकारी विद्वान, चलता-फिरता विश्वकोश, लेखक, पत्रकार एवं कर्मठ सामाजिक कार्यकर्ता रहे हैं। उनके प्रयास से हिन्दी को जम्मू-कश्मीर के कॉलेजों में एक ऐच्छिक विषय के रूप में पढ़ाने की विधिवत व्यवस्था हुई। भारत सरकार द्वारा गठित बी.जी.खेर की अध्यक्षता में राजभाषा आयोग के समक्ष राज्य के हिन्दीप्रेमियों के प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व किया। इसके फलस्वरूप राज्य में विभिन्न स्तरों पर हिन्दी को यथोचित स्थान दिलवाया। इनके प्रयत्नों से आकाशवाणी के श्रीनगर केन्द्र से भी हिन्दी में प्रसारित राष्ट्रीय समाचार बुलेटिन रिले करवाया गया। प्रो. सप्रू ने कश्मीर की युवापीढ़ी के अनेक हिन्दी लेखकों,विद्वानों का मार्गदर्शन किया। कश्मीरीभाषी हिन्दी-लेखक सप्रूजी को कश्मीर का महावीरप्रसाद द्विवेदी कहते हैं।

पुरस्कार एवं सम्मानः-

• सौहार्द सम्मान (उ.प्र.सरकार)

• अहिन्दीभाषी हिन्दी-लेखक पुरस्कार (भारत सरकार)

• स्वर्णजयंती पुरस्कार (मैसूर हिन्दी प्रचार परिषद, बैंगलूर)

संपादनः-

गद्य-प्रवाह, पद्य-प्रवाह, षटदल, प्रतिनिधि पद्य-प्रवाह, गद्य-विभा, नीलजा, दीनानाथ नादिम अभिनंदन ग्रंथ, काशीनाथ दर रचनावली आदि पुस्तकों का संपादन।

पत्रिकाएं:-

• कश्यप (मासिक)।

• सतीसर (त्रैमासिक) ।

• कोशुर समाचार (मासिक बहुभाषी पत्रिका, हिन्दी खंड)

• श्रीनगर (कश्मीर) के दो विशेषांकों-प्रेमचंद विशेषांक तथा शेर-ए-कश्मीर विशेषांक।

प्रकाशनः-

• हिन्दी, अंग्रेजी, कश्मीरी और उर्दू में पन्द्रह पुस्तकें।

• ‘केसर और कमल’ तथा ‘संतूर के स्वर’ पुस्तकों पर राज्य एवं केन्द्र सरकार द्वारा पुरस्कार।

• श्री हरी भगवान दर्शन (यात्रावृत्त)

• सर्वभाषा कोश (कश्मीरी खंड), वितस्ता की वाणी।

• प्रतिनिधि कश्मीरी कहानियां

• कश्मीरी मुहावरे

• अभिनव हिन्दी व्याकरण तथा रचना

• कश्मीरी भाषा प्रवेश

• विस्थापन की कहानियां

• संघर्षमय

• आज और कल

अनुवादः- भारतीय कविता (भारतीय ज्ञानपीठ के वार्षिक संग्रहों के कश्मीरी खंड)

सम्प्रतिः- आजकल कश्मीर सांस्कृतिक संपदा पर अनुसंधान करने के साथ-साथ ‘कोशुर समाचार पत्रिका’ के अवैतनिक संपादक हैं।