‘मधुर शास्त्री

हिन्दी भवन एवं दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संयुक्त तत्वावधान में वरिष्ठ गीतकार ‘मधुर शास्त्री स्मृति सभा’ का आयोजन 6 अक्टूबर, 2006 को हिन्दी भवन के धर्मवीर संगोष्ठी कक्ष में किया गया। स्वर्गीय मधुर शास्त्री को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए हिन्दी भवन के मंत्री एवं व्यंग्य कवि डॉ. गोविन्द व्यास ने कहा- “लगता नहीं है कि वह (शास्त्रीजी) हमारे बीच नहीं रहे। शास्त्रीजी का अभाव हमें कई वर्षों तक सालेगा। मुझ पर उनका आशीष मेरे बाल्यकाल से ही रहा। विनम्रता और साधना की जीती-जागती प्रतिमूर्ति अचानक हमारे बीच से चली गई। उनके जाने से एक अच्छी, सच्ची और पुनीत कविता के कपाट बंद हो गए।”

सुप्रसिद्ध गीतकार बालस्वरूप राही ने शास्त्रीजी को अपनी भावांजलि अर्पित करते हुए कहा-“शास्त्रीजी बहुतों के अभिन्न थे। वह अन्य मंचीय कवियों की तरह सफल कवि थे, लेकिन मंचों की शर्तों से उन्होंने कभी कोई समझौता नहीं किया।”

वरिष्ठ कवि और सांसद श्री उदयप्रताप सिंह ने शास्त्रीजी को अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हुए कहा- “अच्छे कवि-सम्मेलनों में शास्त्रीजी को आमंत्रित किया जाता था। गीत के मामले में वह सचमुच शास्त्री थे। वर्तमान में गीत की दुर्दशा और उपेक्षा को लेकर उनके मन में बड़ी पीड़ा थी। हमारे यहां साहित्यकारों को इतना सम्मान नहीं दिया जाता, जितना राजनीतिज्ञों को दिया जाता है, लेकिन शास्त्रीजी ने इसकी परवाह कभी नहीं की। वह मधुर भी थे और शास्त्री भी।”

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शेरजंग गर्ग ने अपने अभिन्न मित्र मधुर शास्त्री को इन शब्दों में याद किया- “मधुर शास्त्री में प्रेम कूट-कूटकर भरा था। गीत के प्रति वह हमेशा सजग और चिंतित रहते थे। गीत को जितना सम्मान मिलना चाहिए, उतना उसे मिल नहीं रहा है, इस बात को लेकर शास्त्रीजी काफी दुखी रहते थे। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वह कभी क्रुद्ध नहीं हुए। वह हर बात को सहज भाव से लेते थे। ”

कवि श्री बलदेव वंशी ने शास्त्रीजी के प्रति अपने उदगार व्यक्त करते हुए कहा- “जो बड़ा व्यक्ति होता है, उसकी छोटी-छोटी बातों में बड़ा सार होता है। शास्त्रीजी की बातों से मैंने बहुत कुछ सीखा। उनकी कविता में बिम्ब और छंद का पूर्ण समावेश था। मैं उनको दृष्टा कवि मानता हूं। वह भविष्यदृष्टा भी थे और दूरदृष्टा भी।”

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. श्यामसिंह शशि ने शास्त्रीजी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा- “आज हम भीतर से टूटन महसूस कर रहे हैं। शास्त्रीजी गीतों के राजकुमार थे। गीत उनकी आत्मा में रचा-बसा था।” मधुर शास्त्री की स्मृति सभा में पारित शोक प्रस्ताव में कहा गया-“सरलता, सहजता और सरसता की प्रतिमूर्ति हिन्दी के वरिष्ठ गीतकार मधुर शास्त्री हमारे बीच नहीं रहे। 3 अक्टूबर, 2006 मंगलवार का दिन हिन्दी जगत और हिन्दी-गीत के लिए अमंगलकारी सिद्ध हुआ। शास्त्रीजी सबके प्रिय, सबके हितकारी थे। सौमनस्यता और हार्दिकता उनमें कूट-कूटकर भरी हुई थी। हिन्दी-गीत को उन्होंने अपनी मौलिक संवेदना और कोमलकांत पदावली से सजाया और संवारा। भारतीय मनीषा के संवाहक थे मधुर शास्त्री। यथानाम तथा गुण, शास्त्रीजी ने पूरी मधुरता के साथ आजीवन सबको निबाहा। शास्त्रीजी का शरीर भले ही पंचतत्व में विलीन हो गया हो, लेकिन उनका स्वर एवं साहित्य सदैव उनकी याद दिलाता रहेगा।”

शास्त्रीजी की स्मृति सभा में हिन्दी के जाने-माने साहित्यकार, पत्रकार, हिन्दीसेवी और कवि मौजूद थे। जिनमें प्रमुख थे -सर्वश्री महेशचन्द्र शर्मा, रामशरण गौड़, असीम शुक्ल, इन्दिरा मोहन, संतोष माटा, सरला भटनागर, रमाशंकर दिव्यदृष्टि, अनिल जोशी, आनंद वल्लभ, श्रवण राही, रमाकांत शुक्ल, रामकुमार कृषक, हरिसिंह पाल आदि।