यादों के झरोखों से

पं. गोपालप्रसाद व्यास समर्पित हिन्दीसेवी, हास्य-व्यंग्य के प्रमुख हस्ताक्षर, गद्य और पद्य पर समान रूप से अधिकार रखने वाले, पैंतालीस वर्षों तक निरंतर ‘नारदजी खबर लाए हैं’ और ‘यत्र-तत्र-सर्वत्र’ जैसे स्तंभ के लेखक, हास्य रसावतार के जन-सम्मान को प्राप्त करने वाले पं. गोपालप्रसाद व्यास को याद करना हजारों मीठी, लुभावनी, सुहानी, झकझोरने वाली प्रेरक यादों से गुज़रना है। मेरे लिए निजी तौर पर व्यासजी एक बुजु़र्ग, एक आत्मीय वरिष्ठ मित्र, आत्मीयता से सरोबार व्यक्तित्व की हैसियत रखते थे। उन्होंने मुझे आग्रहपूर्वक हिन्दी भवन में निदेशक के रूप में कार्य करने का न्यौता दिया था। थोड़ी-सी हैरानी ज़रूर हुई, मगर उनके आग्रह को आदेश मानकर इस दायित्व को ग्रहण कर लिया। व्यासजी के समान मेरे लिए भी हिन्दी एक कमज़ोरी और एक शक्ति रही है। मैंने भी व्यासजी की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं के अनुरूप हिन्दी भवन को अपना यत्किंचित योगदान दिया। कहना चाहूंगा कि व्यासजी ने मेरी प्रत्येक कोशिश को अपना आशीर्वाद एवं सराहना मुक्तकंठ से प्रदान की थी। मैंने व्यासजी को जब-जब देखा उनकी मस्ती, उनकी जीवंतता, हिन्दीप्रेम ,भाषा-मर्मज्ञता, काव्य-कौशल, विनोदप्रियता, स्पष्टवादिता ने प्रभावित किया। उनका जाना भाषा और साहित्य के विशाल स्तंभ के ढहने के अलावा मेरे लिए निजी तौर पर भी बहुत भारी क्षति है। मैं उनकी यादों को प्रणाम करता हूं।

(डॉ. शेरजंग गर्ग, आजकल से साभार)