यादों में

व्यासजी हमारे बीच नहीं रहे। लेकिन उनके चाहने वालों के दिलों में वह आज भी बसे हुए हैं। उनके न रहने पर भी हम सब उन्हें अपने बीच महसूस कर सकते हैं, उनकी स्मृति-रक्षा के लिए किए गए कुछ कार्यों से। दिल्ली नगर निगम द्वारा उनकी याद में जिस पार्क में व्यासजी कभी टहला करते थे, व्यास-निवास के सामने एक ‘व्यास वाटिका’ का निर्माण किया गया है। गुलमोहर पार्क के जिन मार्गों पर व्यासजी के पद-चिह्‌न अंकित हुए थे, उस मार्ग को आज पं. गोपालप्रसाद व्यास मार्ग के रूप में जाना जाता है।

राजधानी दिल्ली के हिन्दी भवन की ईंट-ईंट पर व्यासजी की छाप हर हिन्दीप्रेमी महसूस करता है। हिन्दी भवन में प्रतिष्ठित उनकी जीवन्त और भव्य प्रतिमा, जिसे प्रसिद्व मूर्तिकार श्री राम सुतार ने गढ़ा है, को देखकर हर हिन्दीप्रेमी उन्हें अपने बीच पाता है। व्यासजी के जन्मदिन 13 फरवरी को उनकी स्मृति में हिन्दी के प्रतिष्ठित व्यंग्यकार को दिए जाने वाला ‘व्यंग्यश्री सम्मान’ आज व्यंग्य-विधा सर्वोच्च सम्मान है। व्यासजी के ‘यत्र-तत्र-सर्वत्र’, ‘नारदजी ख़बर लाए हैं’, ‘बात-बात में बात’, ‘चकाचक’ जैसे लोकप्रिय स्तम्भ तथा उनके व्यंग्य लेख एवं कविताएं आज भी लोगों को सम्मोहित करती हैं।