शुक्रवार, 27 अप्रैल को हिन्दी भवन द्वारा विशुद्ध कविता प्रेमी श्रोताओं के लिए ‘रसवंती काव्य संध्या’ का आयोजन किया गया। इसी अवसर पर यशस्वी साहित्य साधक श्री रामनिवास जाजू का समग्र कविता-संग्रह ‘अंतरिक्ष’ का लोकार्पण सर्वश्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी, राजनारायण बिसारिया, बालस्वरूप राही, गोविन्द व्यास, जनाब अनीस अहमद, इमरोज तथा मीरा जौहरी ने किया।
दिन हो जाता शाम को थककर चकनाचूर,
कर लेता है रात की शर्तें सब मंजूर। ,
पनप रहा है देश में ये कैसा उद्योग,
ढ़ोते जिंदाबाद के नारे मुर्दे लोग।
मुंबई से पधारे गज़लकार श्री राजेश रेड्डी का कहना था-
आप इन हाथों की चाहें तो तलाशी ले लें,
मेरे हाथों में लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं।
हमने देखा है कई ऐसे खुदाओं को यहां,
जो समझते हैं सचमुच का खुदा कुछ भी नहीं।
यदि आंसू को तुम पानी कहते हो,
तो गंगाजल अपमानित होता है।
पीड़ा ब्रहमा की आदि भावना है,
आंसू ही उसका पहलाबेटा है।
वह अंतरात्मा से धावित पोषित,
उसने प्रभु का आशीष समेटा है।
यदि भरी आंख पर मुस्काते हो तुम,
तो सिंधु अटल अपमानित होता है।
आने वाले हैं ऐसे दिन आने वाले हैं,
जो आंसू पर भी पहरे बैठाने वाले हैं।
भूलों का कुर्त्ता पहने शामें घबराएंगी,
बंद हुई अपने में बेहद अकुलाएंगी।
गंध तितलियों पर खतरे मंडराने वाले हैं।
देर रात तक चली इस काव्य-संध्या का कुशल संचालन जाने-माने कवि श्री नरेश शाण्डिल्य ने किया। धन्यवाद हिन्दी भवन के अध्यक्ष श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने किया।