लालाजी के कुत्ते

लालाजी ने कुत्ते पाले !
ये झबरे हैं, चितकबरे हैं,
कुछ थुल-थुल, कुछ मरगिल्ले हैं
बनते हैं बुलडॉग दोगले,
लेकिन सब देसी पिल्ले हैं।
ये टुकड़ों पर पलने वाले,
बोटी देख मचलने वाले।
अपने को ही छलने वाले,
महावीर हैं, बड़े उग्र हैं,
मन के मैले, तन के काले !
लालाजी ने कुत्ते पाले !

लालाजी ने कहा कि गाओ,
तो भूं-भूं भुंकियाने वाले।
लालाजी ने कहा कि रोओ,
तो कूं-कूं किकियाने वाले।
लालाजी ने कहा कि काटो,
तो पीछे पिल जाने वाले।
लालाजी ने कहा कि चाटो,
तो थूथरी हिलाने वाले।
घर के शेर, शहर के गीदड़,
पिटकर पूंछ हिलाने वाले,
लालाजी ने कुत्ते पाले !

लालाजी के सम्मुख इनका,
आओ, पूंछ हिलाना देखो।
लालाजी के घर पर इनका,
शेरों-सा गुर्राना देखो।
आओ ठाठ जनाना देखो।
लगते ही लकड़ी खुपड़ी पर,
पूछ दबा भग जाना देखो।

ये उनके ही संगी-साथी,
जो इनको नित टुकड़े डाले।
लालाजी ने कुत्ते पाले !

बुद्धिमान हैं, हर खटके पर
आंख खोल चौंका करते हैं।
समझदार हैं, पहले से ही
ये ताका मौका करते हैं।
बड़े विचारक, बात-बात में,
ये अपनी छौंका करते हैं।
पूंजी वालों के प्रहरी हैं
हमको सदा सताते साले,
लालाजी ने कुत्ते पाले !

(‘हास्य सागर’ से, सन् 1966)