विष्णु प्रभाकर

शीर्षस्थ रचनाकार स्व. विष्णु प्रभाकर की स्मृति में शुक्रवार, 17 अप्रैल, 2009 की संध्या हिन्दी भवन और चित्र-कला-संगम के संयुक्त तत्वावधान में एक सभा का आयोजन किया गया। इस स्मृति सभा में राजधानी के अनेक साहित्यकार, पत्रकार और राज-समाजसेवी शामिल हुए।

विष्णुजी का स्मरण करते हुए डॉ. निर्मला जैन ने विष्णुजी को अजातशत्रु बताया और कहा कि विष्णुजी अपने लेखन और जीवन में आदर्शवादी थे। उन्हें श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हुए हिन्दी भवन के मंत्री डॉ.गोविन्द व्यास ने कहा कि विष्णुजी के चले जाने से साहित्य की सात्विकता को क्षति पहुंची है।

मीडियाकर्मी राजनारायण बिसारिया ने विष्णुजी को याद करते हुए कहा कि उन्होंने बड़े साहित्यकार होने के बावजूद खुद को कभी बड़ा नहीं माना। वह जीवन-मूल्यों के उन्नायक, कलमजीवी और भारतीयता के प्रतीक थे। हिन्दी भवन के अध्यक्ष त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने विष्णुजी को एक आदर्श पुरुष बताते हुए कहा कि हिन्दी भवन उनके अप्रकाशित साहित्य और पत्र-व्यवहार के प्रकाशन में हर संभव सहयोग प्रदान करेगा। डॉ. बालस्वरूप राही ने विष्णुजी को याद करते हुए कहा कि विष्णुजी ने जीवन में कभी कोई समझौता नहीं किया। वह नई पीढ़ी के रोल मॉडल थे। कादम्बिनी के पूर्व सम्पादक राजेन्द्र अवस्थी ने विष्णुजी को साहित्य की धरोहर बताया।

विष्णु प्रभाकर की स्मृति सभा में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को रेखांकित करते हुए यह शोक-प्रस्ताव पारित किया गया-

गांधीवादी विचारधारा और जनतांत्रिक मूल्यों में अटूट विश्वास रखने वाले शीर्षस्थ रचनाकार विष्णु प्रभाकर नहीं रहे। सच्चे मायनों में वे साहित्य के गांधी थे। उनके लेखन और जीवन को किसी बने बनाए सांचे में नहीं रखा जा सकता। पिछली तीन-चौथाई शताब्दी में हिन्दी ही नहीं, भारतीय भाषाओं के लेखकों में शायद ही कोई ऐसा लेखक होगा जो विष्णुजी के सम्पर्क में आया हो और उनसे प्रभावित नहुआ हो। उन्हें दक्षिण भारत की हिन्दी-प्रचार-संस्थाओं में वही मान और स्थान प्राप्त था, जो उत्तर भारत के हिन्दी समाज में।

ढलती रात, स्वप्नमयी, हत्या के बाद, प्रकाश और परछाइयां,डॉक्टर, अशोक, संघर्ष के बाद, अर्द्धनारीश्वर, धरती अभी घूम रही है, पाप का घड़ा, होरी जैसी कृतियों के लेखक विष्णुजी ने बांग्ला के प्रसिद्ध कहानीकार शरत्‌चन्द्र की जीवनी ‘आवारा मसीहा’ लिखकर कीर्तिमान स्थापित किया। ‘आवारा मसीहा’ प्रचलित अर्थों में शरत्‌चन्द्र की जीवनी नहीं है, बल्कि एक मूर्धन्य कथाकार के व्यक्तित्व की प्रामाणिक खोज है। इसे लिखकर विष्णुजी अमर होगए।

गांधीवाद के प्रति उनकी आस्था उनके लेखन में ही नहीं, उनके व्यक्तित्व, विचारों और वेशभूषा में भी झलकती थी। नई पीढ़ी के लेखकों के प्रति उनका स्नेहमयी व्यवहार अतुलनीय था। उन्हें साहित्य-सेवा के लिए पद्मभूषण और भारतीय ज्ञानपीठ के मूर्तिदेवी सम्मान से विभूषित किया गया।

हिन्दी भवन परिवार विष्णुजी के चले जाने से अत्यन्त शोकमग्न है और परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना करता है कि वह उनकी आत्मा को शांति और सदगति प्रदान करें तथा विष्णुजी के परिजनों को इस महाशोक से उबरने की शक्ति दें। विष्णुजी की स्मृति को हम सबके शत-शत नमन !

ओ3म्‌ शांतिः शांतिः शांतिः।

विष्णुजी की स्मृति सभा में मन्नू भंडारी, अरविन्द कुमार, वीरेन्द्र प्रभाकर, प्रदीप पंत, नरेश शांडिल्य, दयानंद वर्मा, रमा सिंह, डॉ. रत्ना कौशिक, डॉ. संतोष माटा आदि ने भी अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित किए।