‘व्यंग्यश्री सम्मान’ 2009 – डॉ. प्रेम जनमेजय

नई दिल्ली । व्यंग्य-विनोद के शीर्षस्थ रचनाकार पं. गोपालप्रसाद व्यास के जन्मदिवस प्रतिवर्ष 13 फरवरी को दिए जाने वाला तेरहवां ‘व्यंग्यश्री सम्मान-2009’ सतत् व्यंग्य-लेखन और उसके विकास में विशिष्ट योगदान के लिए डॉ. प्रेम जनमेजय को दिया गया। सम्मान स्वरूप डॉ. जनमेजय को इकत्तीस हजार रुपये की नकद राशि, प्रशस्ति-पत्र, प्रतीक चिह्न, रजत श्रीफल, पुष्पगुच्छ एवं शाल आदि प्रदान किए गए। इस अवसर पर पं. गोपालप्रसाद व्यास पर उनकी छोटी बेटी डॉ. रत्ना कौशिक के निर्देशन में बनी वेबसाइट www.gopalprasadvyas.com का लोकार्पण भी किया गया।

समारोह के प्रारंभ में हिन्दी भवन के मंत्री डॉ. गोविन्द व्यास ने ‘व्यंग्यश्री सम्मान’ की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला। समारोह के संचालक प्रख्यात व्यंग्यकार डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने व्यंग्य-लेखन, पं. गोपालप्रसाद व्यास और डॉ. प्रेम जनमेजय के संबंध में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज व्यंग्य-लेखक टखने तक पानी में तैरने की प्रतियोगिता कर रहे हैं। डॉ. जनमेजय ने सतत व्यंग्य-लेखन में तो योगदान दिया ही है, उससे बड़ा काम उन्होंने ‘व्यंग्य-यात्रा’ पत्रिका का कुशल संपादन करके किया है। 18 मार्च, 1949 को जन्मे डॉ. प्रेम जनमेजय की अब तक नौ व्यंग्य-कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं-

1. राजधानी में गंवार

2. बेशर्ममेव जयते

3. पुलिस ! पुलिस

4. मैं नहीं माखन खायो

5. आत्मा महाठगिनी

6. मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएं

7. शर्म मुझको मगर क्यों आती !

8. डूबते सूरज का इश्क और

9. कौन कुटिल खल कामी।

समारोह की अध्यक्ष वरिष्ठ आलोचक डॉ. निर्मला जैन ने अपने वक्तव्य में कहा कि पं. गोपालप्रसाद व्यास ने अंग्रेजी और उर्दू के गढ़ दिल्ली में हिन्दी की अलख जगाई और समूची दिल्ली ही नहीं, पूरे हिन्दुस्तान में हिन्दी व्यंग्य-विनोद का परचम लहराया। उन्होंने कहा कि व्यंग्य लेखक अपने समय का प्रखर समीक्षक होता है।

‘व्यंग्यश्री’ से सम्मानित डॉ. जनमेजय ने सम्मान स्वीकार करते हुए कहा कि यदि किसी लेखक का लक्ष्य पुरस्कार पाना है तो वह लेखक किसी लाक्षागृह में रह रहा है और उसे भस्म होने से कोई नहीं बचा सकता। आज व्यंग्य-लेखन समय की विसंगतियों से लड़ने का औज़ार है। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल पर केन्द्रित ‘व्यंग्य यात्रा’ के विशेषांक का लोकार्पण भी किया गया।

हिन्दी भवन के अध्यक्ष श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने आशीर्वचन देते हुए व्यासजी का स्मरण किया और डॉ. जनमेजय को बधाई दी।

हिन्दी और व्यंग्यप्रेमियों से खचाखच भरे हिन्दी भवन सभागार में दिल्ली के अनेक साहित्यकार, पत्रकार और समाजसेवी उपस्थित थे।