व्यंग्य-विनोद के शीर्षस्थ रचनाकार पं. गोपालप्रसाद व्यास के जन्म दिन पर दिया जाने वाला प्रतिष्ठित ‘व्यंग्यश्री सम्मान-2012’ राजधानी के लेखकों, पत्रकारों और राज-समाजसेवियों के बीच वरिष्ठ और चर्चित व्यंग्यकार डॉ. हरीश नवल को हिन्दी भवन सभागार में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रदान किया गया। इस सोलहवें व्यंग्यश्री सम्मान से डॉ. नवल को हि. प्र. विश्वविद्यालय के कुलपति श्री अरुण दिवाकरनाथ वाजपेयी, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामदरश मिश्र, वरिष्ठ कवि बालस्वरूप राही, हिन्दी भवन के कोषाध्यक्ष श्री हरीशंकर बर्मन, डॉ. पी. के. दवे (पूर्व निदेशक, एम्स) एवं डॉ. रत्ना कौशिक ने क्रमशः प्रशस्ति पत्र, शाल, पुष्पहार, रजतश्री फल, वाग्देवी की प्रतिमा और इक्यावन हजार रुपये की राशि देकर विभूषित किया।
जाने-माने व्यंग्यकार डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने हरीश नवल को बधाई देते हुए व्यंग्य की समीक्षा करते हुए कहा कि जो व्यंग्यकार पुरस्कार प्राप्त करने के लिए लिखता है, वह सही व्यंग्यकार नहीं है। आज व्यंग्य खूब लिख जा रहा है, पढ़ा भी जा रहा है। आज मूर्तिभंजक समय है। ऐसे समय में व्यंग्य के जरिए जो बात कही जा रही है, उसका प्रभाव जनमानस पर गहरा पड़ता है। व्यंग्यश्री सम्मान प्रदान करने के लिए हिन्दी भवन का आभार व्यक्त करते हुए डॉ. हरीश नवल ने हिन्दी भवन के संस्थापक पं. गोपालप्रसाद व्यास को याद करते हुए उनसे संबंधित कुछ संस्मरणों के साथ-साथ स्वरचित दो व्यंग्य-पाठ भी किए।
बालस्वरूप राही ने व्यासजी का स्मरण करते हुए तथा व्यंग्य विधा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जितना पैनापन व्यंग्य में होता है, उतना और किसी विधा में नहीं होता। उन्होंने कहा कि डॉ. नवल ऐसे व्यंग्यकार है जिन्होंने सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक तथा हर प्रकार की विसंगतियों पर व्यंग्य लिखे हैं।
डॉ. अरुण दिवाकरनाथ वाजपेयी ने कहा कि साहित्य की शक्ति ने ही मुझे कुलपति पद पर बैठाया। जिस दिन भारत का साहित्यकार पीड़ा, दर्द एवं करूणा की आग में तपेगा उस दिन उसकी साधना सफल होगी। उन्होंने कहा कि कवि होना कठिन है, लेकिन कविता लिखना सरल है। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामदरश मिश्र ने अपना अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कहा कि जिस रूप में आज व्यंग्य नया रूप ले रहा है, उस प्रकार का मैं नहीं लिख सकता। व्यंग्य दो तरह का होता है। कुछ लोग व्यंग्मय हो जाते है, हर बात को व्यंग्य में कहते हैं। आज कुछ व्यंग्यकार क्रिएटिव श्रेणी के है, व्यंग्य लिखते हैं, मंच पर सुनाते है। विसंगतियों से बड़े दुखी हैं। जिन पर व्यंग्य लिखते हैं, सुरंग खोदकर उन्हीं के पीछे घूमते हैं।
समारोह का संचालन डॉ. प्रेम जनमेजय ने पंडित गोपालप्रसाद व्यास और डॉ. हरीश नवल के व्यक्तित्व और कृतित्व को रेखाकिंत करते हुए कुशलतापूर्वक किया। इस अवसर पर सर्वश्री शेरजंग गर्ग, अशोक चक्रधर, प्रदीप पंत, वीरेन्द्र प्रभाकर, नूतन कपूर,अमरनाथ अमर, महेशचन्द्र शर्मा, संतोष माटा, मनोहर पुरी, बाबूलाल शर्मा, आशा जोशी, वीना गौड़, पुरुषोत्तम वज्र, सतीश सागर, बृजमोहन शर्मा, रामनिवास लखोटिया, इन्दिरा मोहन, सर्वेश चंदौसवी, ममता आशुतोष, रोशनलाल अग्रवाल, आशीष कंधवे, रघुनंदन शर्मा तुषार और राजधानी के अनेक लेखक पत्रकार तथा राज-समाज सेवी समारोह में उपस्थित थे। अंत में हिन्दी भवन की न्यासी इन्दिरा मोहन ने सभी उपस्थित जनों को इस अवसर पर सम्मिलित होने के लिए आभार प्रकट किया।