नई दिल्ली। व्यंग्य-विनोद के शीर्षस्थ रचनाकार, वाचिक परंपरा के उन्नायक, अपने समय के प्रतिष्ठित पत्रकार, ब्रज साहित्य के मर्मज्ञ, हिन्दी भवन के संस्थापक एवं हिन्दीसेवी पं. गोपालप्रसाद व्यास की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित ‘व्यंग्यश्री सम्मान’ राजधानी के लेखकों, पत्रकारों और राज-समाज सेवियों के बीच वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री सुभाष चन्दर को हिन्दी भवन सभागार में एक भव्य समारोह में प्रदान किया गया।
इस बीसवें व्यंग्यश्री सम्मान से श्री सुभाष चन्दर को वरिष्ठ साहित्यकार एवं आलोचक डॉ. विशवनाथ त्रिपाठी, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शेरजंग गर्ग, सुपरिचित व्यंग्यकार डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी, चर्चित व्यंग्यकार श्री आलोक पुराणिक, हिन्दी भवन के मंत्री डॉ. गोविन्द व्यास, हिन्दी भवन के न्यासी श्री रामनिवास लखोटिया, श्रीमती इन्दिरा मोहन एवं श्री हरीशंकर बर्मन ने रजत श्रीफल, प्रशस्ति पत्र, शाल, पुष्पहार, वाग्देवी की प्रतिमा और एक लाख ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह रुपये की राशि देकर विभूषित किया।
श्री आलोक पुराणिक ने श्री सुभाष चन्दर को ‘व्यंग्यश्री’ मिलने पर बधाई दी तथा उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आलोचक कहते हैं कि सुभाष व्यंग्यकार हैं और व्यंग्यकार कहते हैं कि वह आलोचक है। जबकि सुभाष चन्दर ने दोनों ही क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किया है। उनकी कृति ‘हिन्दी व्यंग्य का इतिहास’ अविस्मरणीय कृति है।
वरिष्ठ व्यंग्यकार पद्मश्री डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने सुभाष चन्दर को बधाई देते हुए कहा कि बेहतर लेखक होने के लिए बेहतर मनुष्य होना भी जरूरी है। जब तक आप ने अपने पूर्वजों के लेखन को नहीं पढ़ा तब तक आप अच्छे लेखक बन ही नहीं सकते। सुभाष चन्दर ने बहुत लिखा है अगर नहीं भी लिखते तो भी उनकी एक पुस्तक ‘हिन्दी व्यंग्य का इतिहास’ ने उनको इतिहासकार बना दिया है। उन्होंने आलोचना और व्यंग्य दोनों को समृद्ध किया है। उनके खाते में जहां हिन्दी व्यंग्य का इतिहास जैसी कृति है, वही अक्कड़-बक्कड़ जैसा बेहतरीन व्यंग्य उपन्यास भी है। उन्होंने सरोकारों के नाम पर व्यंग्य को अपठनीय बनाने की कोशिश पर भी प्रहार किया।
श्री सुभाष चन्दर ने हिन्दी भवन के संस्थापक पं. गोपालप्रसाद व्यास को नमन करते हुए कहा कि हास्य से अगर हम दूरी बनाकर रखते हैं तो साहित्य में जगह बनाती हुई विधा के साथ हम अन्याय करते हैं। व्यंग्यश्री सम्मान प्रदान करने के लिए उन्होंने हिन्दी भवन का आभार व्यक्त किया तथा अपनी एक रचना का पाठ भी श्रोताओं के सम्मुख किया।
वरिष्ठ साहित्यकार एवं आलोचक डॉ. विशवनाथ त्रिपाठी ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में पंडित गोपालप्रसाद व्यास को स्मरण करते हुए कहा कि जो सृजक होता है वह जब बोलता है तो उसका भाषण भी रचना होती है। मिथ्या सर्वत्र दिखाई देता है, सत्य दिखाई नहीं देता। आज का बाजार अद्वैत है। सम्माननीय को सम्मानित करना बड़ा मुशिकल काम है। पढ़ने, समझने और विकास करने की एक उम्र होती है।
वरिष्ठ साहित्यकार एवं आलोचक डॉ. विशवनाथ त्रिपाठी ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में पंडित गोपालप्रसाद व्यास को स्मरण करते हुए कहा कि जो सृजक होता है वह जब बोलता है तो उसका भाषण भी रचना होती है। मिथ्या सर्वत्र दिखाई देता है, सत्य दिखाई नहीं देता। आज का बाजार अद्वैत है। सम्माननीय को सम्मानित करना बड़ा मुशिकल काम है। पढ़ने, समझने और विकास करने की एक उम्र होती है।
श्री रामनिवास लखोटिया के सान्निध्य में आयोजित इस समारोह का प्रारंभ हिन्दी भवन की न्यासी डॉ. रत्ना कौशिक ने किया तथा कुशल संचालन युवा व्यंग्यकार श्री नीरज बधवार ने किया। धन्यवाद ज्ञापन श्री रामनिवास लखोटिया ने किया। इस अवसर पर राजधानी के साहित्यकार, पत्रकार, हिन्दीसेवी एवं राज-समाजसेवी काफी संख्या में उपस्थित थे। जिनमें प्रमुख हैं सर्वश्री प्रदीप पंत, प्रेम जनमेजय, रोशनलाल अग्रवाल, रामनिवास जाजू, महेशचन्द्र शर्मा, संतोष माटा, निधि गुप्ता, अतुल प्रभाकर, रघुनंदन शर्मा ‘तुषार’, महिमानंद द्विवेदी, सुशीलकुमार गोयल, आशीष कंधवे, अशोक वशिष्ठ, हरिसिंह पाल, अरविन्द कुमार, भारत भारद्वाज, किशोर कुमार कौशल, रवीन्द्र नागर, भरत तिवारी, बी. एल. गौड़, वेद व्यथित, ओम सपरा, रामगोपाल शर्मा, सुरेश उनियाल, सुधांशु शिल्पा माथुर, सत्यपाल सुष्म, अनिल मीत, सुशील सिद्धार्थ, सविता शर्मा, ममता शर्मा, नरेश शांडिल्य, शशिकांत, वीरेन्द्र सक्सेना, सुषमा भंडारी, अर्चना चतुर्वेदी, अभिषेक अभि आदि।