व्यासजी की दृष्टि में

भाषा, साहित्य और समाज के प्रति व्यासजी की दृष्टि परम्परावादी होते हुए भी आधुनिक थी। उन्होंने परम्परा को संरक्षित करने के साथ-साथ अपने रचनाकर्म को आधुनिकता से जोड़ा था। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी व्यासजी का कृतित्व भी बहुआयामी था। साहित्य, संस्कृति और कला के प्रति उनकी दृष्टि बहुत सजग और सुस्पष्ट थी। व्यासजी ने अपनी पद्य और गद्य की कृतियों की जो भूमिकाएं लिखीं हैं उनसे उनके व्यापक दृष्टिकोण का पता चलता है। आइये, व्यासजी के दृष्टिकोण को जानने के लिए पढ़ें इस खंड के लेखों को।