व्यासजी के निधन से ब्रज और हिन्दी साहित्य के एक युग का पटाक्षेप अर्धशताब्दी से अधिक समय तक काव्य, साहित्य और हास्य-व्यंग्य की कीर्ति-पताका फहराने वाले पत्नीवाद के प्रवर्तक, हास्यरसावतार, विद्वान साहित्यकार, कवि और पत्रकार श्री गोपालप्रसाद व्यास के निधन से ब्रज और हिन्दी साहित्य के एक युग का पटाक्षेप होगया है, किन्तु वह अपने जीवंत व्यक्तित्व और कृतित्व से सदैव अमर रहेंगे। व्यासजी का व्यक्तित्व अदभुत, अनुपम और अप्रतिम था। उन जैसा व्यक्तित्व न तो भूगर्भ की गहराइयों में है, न धरती के धरातल पर और न ही अंतरिक्ष की उड़ान में। उनका शब्द-ज्ञान और अर्थ-ज्ञान ऐसा था कि उसके समक्ष हर कोई पराजित हो जाए। उनके शब्द और अर्थ बड़े विचित्र होते थे। ऐसे कि कोई उन्हें ठीक से न समझ पाए तो अर्थ का अनर्थ हो जाए। उनके एक-एक शब्द में तीखी मार होती थी। शब्द-ज्ञान और अर्थ-ज्ञान की यह संपत्ति उन्होंने बड़े अनुभवों से प्राप्त की थी, बहुत कुछ खोकर और खाकर प्राप्त की थी। भले ही यह ठोकर खाकर प्राप्त हुई हो या मथुरा की रबड़ी खाकर आई हो। भंग-भवानी की तरंग से आई हो या उछालें लेती उमंग से आई हो अथवा किसी मधुर सत्संग से आई हो। व्यासजी अंतिम समय तक कर्मठ रहे। दिखाई और सुनाई न देने पर भी साहित्य-सृजन निर्बाध रहा। व्यासजी ने अपने विरोधियों से बैर न मानकर उन्हें हंसते-हंसते झेला और ऐसे खिलाया जैसे मदारी बीन बजाकर सांप को खिलाता है। वह कहते थे-उसको धिक्कार है जिसके दस-पांच विरोधी-शत्रु न हों। व्यासजी का व्यक्तित्व महान था और कृतित्व भी जो सदैव अमर रहेगा।
(मोहनस्वरूप भाटिया,वरिष्ठ पत्रकार)