हिन्दी भवन एवं ‘कथादेश’ पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में वरिष्ठ कथाकार शैलेश मटियानी की स्मृति सभा 30 अप्रैल, 2001 को हिन्दी भवन के संगोष्ठी कक्ष में आयोजित की गई।
कथाकार शैलेश मटियानी के निधन पर हुई स्मृति सभा में कथाकार राजेन्द्र यादव ने कहा- “शैलेश मटियानी के निधन से एक दिग्गज कथाकार हमारे बीच से उठ गया। स्वतंत्र होकर लिखने वालों की पीढ़ी के वे अंतिम व्यक्ति थे। एक पहाड़ सदृश्य अड़ियल व्यक्तित्व लिए शैलेश मटियानी का संपूर्ण जीवन चमत्कारपूर्ण रहा।”
उन्होंने कहा-“मटियानी लेखकीय स्वतंत्रता की प्रबल आकांक्षा लिए हुए व्यक्ति थे। संघर्ष शब्द उनके जीवन का पर्याय है।”उन्होंने ‘लेखक मटियानी’ और ‘विचारक मटियानी’ में भेद किया। उन्होंने कहा- “रचनात्मक लेखन के क्षेत्र में शैलेश मटियानी ने कभी समझौते नहीं किए। विचारक मटियानी से सदा मेरी असहमति रही। शायद उनके अध्यात्म के प्रति अनुराग के पीछे उनकी असुरक्षा की भावना रही।” श्री यादव ने कहा-“पिछले नौ साल से मटियानी ‘पूर्व घोषित मृत्यु का रोजनामचा’ लिख रहे थे। बेटे की मौत ने उन्हें मानसिक विघटन की स्थिति में ला दिया था। किसी संस्था या संगठन ने मटियानी को याद नहीं किया।”
कथाकार कमलेश्वर ने शैलेश मटियानी को पूरक रचनाकार मानते हुए कहा- “जिन चीजों को हमने और औरों ने नहीं लिखा, वह मटियानीजी ने लिखा। हाशिए ही नहीं, हाशिए के बाहर के लोगों को भी मटियानीजी ने अपनी लेखनी में जगह दी। मटियानीजी में अदभुत जिजीविषा थी जो रचनात्मक स्तर पर भी उनमें मौजूद थी।”
प्रसिद्ध आलोचक डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा- “शैलेश मटियानी साहित्य पर पूरी तरह भरोसा करते थे।” कथाकार पंकज सिंह ने कहा- “दुर्भाग्य से हम लोग ऐसे समाज में हैं जो अपनी दैवी प्रतिभाओं का भी सम्मान नहीं करता है। अगर एक लेखक को अपना सारा जीवन लेखन में लगा देने के बाद भी रोटी के लिए समझौते करने पड़ें तो यह लेखक-समाज के लिए एक शर्मनाक स्थिति है।” उन्होंने लेखक-समाज से ऐसी व्यवस्था करने का आग्रह किया ताकि कोई भी जरूरतमंद लेखक कम से कम अपने जीवन के अंतिम दिनों में सम्मानपूर्वक जी सके। इब्बार रब्बी ने साहित्य जगत में चलने वाली राजनीति की तीखी निंदा करते हुए कहा- “हिन्दी में आपको अगर स्थान पाना है तो आपको अंग्रेजी आना जरूरी है।” राजनीति से बनने वाले माहौल पर उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि अगर आपको शैलेश मटियानी नहीं चाहिए तो आपको कैसा गोर्की चाहिए। सत्ता और अवसर का तर्क इस्तेमाल करने वाले वामपंथियों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा- “हमारे भोले-भाले वामपंथी विश्व हिन्दी सम्मेलन में इन्हीं तर्कों के सहारे भाग लेने लंदन जाते हैं।
पत्रकार विभांशु दिव्याल ने मटियानी को साकार विपक्ष माना। उन्होंने कहा – “वामपंथी-दक्षिणपंथी हर किसी का मटियानीजी ने विरोध किया। तमाम असहमतियों के बावजूद मटियानी जी ने सबका सम्मान भी पाया था।”
सर्वश्री विष्णुचंद्र शर्मा, हिमांशु जोशी, क्षितिज शर्मा, हरिपाल त्यागी, शेरजंग गर्ग, प्रकाश मनु, अमर गोस्वामी सहित कई अन्य लेखकों ने शैलेश मटियानी को अपनी श्रद्धांजलि दी। संचालन महेश दर्पण ने किया।