श्री अमीन सायानी

राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन की 126वीं जयंती के अवसर पर बुधवार, 1 अगस्त, 2007 को पं. भीमसेन विद्यालंकार स्मृति दसवां ‘हिन्दीरत्न सम्मान’ गुजरातीभाषी और बोलचाल की हिन्दी को नया आयाम देने वाले तथा वाणी के धनी श्री अमीन सायानी को हिन्दी भवन सभागार में समारोहपूर्वक प्रदान किया गया। समारोह की अध्यक्षता सांसद एवं पूर्व उप-सभापति (राज्यसभा) श्रीमती नजमा हेपतुल्ला ने की और मुख्य अतिथि थे सांसद एवं जाने-माने अभिनेता श्री शत्रुघ्न सिन्हा। यह समारोह हिन्दी भवन के अध्यक्ष एवं कर्नाटक के राज्यपाल महामहिम श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी के सान्निध्य में संपन्न हुआ। समारोह का संचालन वरिष्ठ खेल-समीक्षक एवं लोकप्रिय उदघोषक श्री जसदेव सिंह ने किया।

हिन्दी भवन सभागार में जैसे ही माइक मशहूर कमेंटेटर श्री जसदेव सिंह के हाथ में आया, उन्होंने बताया कि कैसे कमेंटरी का चस्का लगते ही वह हिन्दी के दीवाने बन गए। उन्होंने कहा -“जुबान का जादू सिर चढ़कर बोलता है। लोग अमीन साहब को सुनते-सुनते बूढ़े हो गए, लेकिन उनकी आवाज़ आज भी जवान है।”

सांसद और मशहूर खलनायक श्री शत्रुघ्न सिन्हा ने सायानी साहब को भारतरत्न कहा। उन्होंने देर से आने के लिए माफी भी अपने अंदाज़ में मांगी – “मनोजकुमार ने एक बार मुझसे कहा था कि तुम अपनी लेटलतीफी के कारण आज की रामायण में शत्रुघ्न बने रह गए, समय से आए होते तो राम बन गए होते।” अमीन साहब को बधाई देते हुए उन्होंने मातृभाषा को संस्कार के लिए, राष्ट्रभाषा को व्यवहार के लिए और विदेशी भाषा को व्यापार के लिए आवश्यक बताया।

श्री शत्रुघ्न सिन्हा ने इस बात पर अफसोस जाहिर किया और कहा – “आज के नौजवानों की कोई बात बगैर अंग्रेजी के पूरी नहीं होती। माताएं भी कभी-कभी ब्रेन में हेडेक की बात करने लगती हैं। गनीमत है कि उन्हें घुटने में हेडेक नहीं होता। जिस हिन्दी को हिन्दुस्तानी कहते हैं, उसे ही अमीन साहब ने अपनाया। मैं तो खुद बिनाका गीतमाला की पैदाइश हूं। किसी चीज को कैसे पेश किया जाए, यह अमीन साहब से सीखा जा सकता है।”

सम्मान में श्री अमीन सायानी को श्रीमती नजमा हेपतुल्ला ने शाल ओढ़ाया और श्रीफल प्रदान किया। श्री शत्रुघ्न सिन्हा ने ताजे गुलाब के फूलों की माला पहनाई और प्रशस्ति-पत्र दिया। चतुर्वेदीजी ने वाग्देवी की प्रतिमा भेंट की तथा पं. भीमसेन विद्यालंकार के बड़े पुत्र श्री रामपाल विद्यालंकार ने सम्मान राशि प्रदान की। प्रशस्ति-पत्र का वाचन श्री महेशचंद्र शर्मा ने किया।

नजमाजी ने कहा- “मेरा और अमीन भाई का तीन पुश्तों का साथ है। जंगे आज़ादी में उनकी मां कुलसुम सायानी, जो कि गांधीजी की शिष्या थीं, ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। अमीन सायानी को देशभक्ति विरासत में मिली है और उनके कंठ में सरस्वती का वास है। हिन्दी और उर्दू हमारे देश की पैदावार हैं। एक सीधे हाथ से तो दूसरी उल्टे हाथ से लिखी जाती है। सभी को पता है की जब दोनों हाथ मिलते हैं तो ताली बजती है।”

अमीन सायानी ने जैसे ही अपने खास अंदाज़ में ‘बहनों और भाइयो’ कहा तो सभागार तालियों से गूंज उठा। यह वही आवाज़ थी जिसने लोगों को बरसों से दीवाना बना रखा है। उन्होंने कहा -“रेडियो प्रोग्राम सुनाई पड़ने के बजाय दिखाई पड़े तो मज़ा आता है। जसदेव सिंह में यही कला है। उन्होंने रेडियो के ज़रिए हमें मैच दिखा दिए।” अपने बचपन के संस्मरणों से लेकर अब तक की दास्तान सुनाते हुए उन्होंने कई रोचक किस्से भी सुनाए। उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें पहला कमर्शल करने को मिला। कैसे मेहनताने के तौर पर ओवलटीन का डिब्बा मिला करता था।

समारोह के अंत में कर्नाटक के राज्यपाल एवं हिन्दी भवन के अध्यक्ष श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने श्री अमीन सायानी को बधाई देते हुए कहा कि वे अमीन सायानी के युवावस्था से प्रशंसक रहे हैं। हिन्दी भवन के मंत्री डॉ. गोविन्द व्यास ने धन्यवाद देते हुए कहा कि अमीन सायानी गंगा-जमुनी संस्कृति के प्रतीक हैं। वह हमारी सांझी सभ्यता की अमूल्य धरोहर हैं।

समारोह में सर्वश्री सुभाष आर्य, रामनिवास लखोटिया, पी.के.दवे, राजेन्द्र मोहन, हरी बर्मन, इन्दिरा मोहन, संतोष माटा, अजय भल्ला आदि उपस्थित थे।

हिन्दीरत्न श्री अमीन सायानी का संक्षिप्त परिचय

जन्मः- 1932

श्री अमीन सायानी का अपने बड़े भाई और गुरु हमीद सायानी के मार्गदर्शन में 8 वर्ष की उम्र से ही ऑल इंडिया रेडियो, मुंबई के अंग्रेजी प्रसारण के जरिये रेडियो से संबंध जुड़ा। मां श्रीमती कुलसुम सायानी स्वतंत्रता सेनानी तथा गांधीजी की शिष्या थीं। वह नव-साक्षरों के लिए पाक्षिक पत्रिका ‘रहबर’ निकालती थीं। जिसका संपादन, प्रकाशन (और बाद में) मुद्रण भी तीनों लिपियों (हिन्दी, उर्दू और गुजराती) में सायानी निवास से होता था। लेकिन इसकी भाषा सरल हिन्दुस्तानी होती थी। अमीन की हिन्दुस्तानी भाषा-ज्ञान की बुनियादी ज़मीन इसी पत्रिका के द्वारा तैयार हुई।

सन्‌ 1950 में रेडियो सीलोन के हिन्दी-कार्यक्रमों के लिए अमीन उसकी व्यावसायिक सेवाओं के लिए भारतीय प्रतिनिधि के रूप में जुड़े। तब से लेकर अब तक अमीन रेडियो प्रसारण की सर्जनात्मक, विस्तारक तथा सामाजिक भूमिका तय करने वाले अग्रणी पथ-प्रदर्शकों में रहे हैं।

सन्‌ 1970 में जब आकाशवाणी की व्यावसायिक सेवा ‘विविध भारती’ की शुरूआत हुई तो सबसे पहली ज़ादुई आवाज़ अमीन सायानी की ही थी जो बाद में देश-देशांतर में गूंजती रही।

इंग्लैड, अमेरिका, कनाडा, संयुक्त अरब अमीरात, मारीशस, फिजी, दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड आदि देशों को भी वे भारतीय रेडियो के कार्यक्रम निर्यात कर रहे हैं।

सन्‌ 1992 में रेडियो विज्ञापन के क्षेत्र में अमीन की असाधारण सेवाओं के लिए ‘इंडियन सोसायटी ऑफ एडवर्टाइजर्स’ ने उन्हें स्वर्णपदक से सम्मानित किया। उनके सर्वाधिक लोकप्रिय कार्यक्रम सिबाका गीतमाला (जो पहले बिनाका गीतमाला नाम से विख्यात था) को एडवर्टाइजिंग क्लब बॉम्बे ने 20वीं शताब्दी का सबसे विशिष्ट रेडियो कार्यक्रम घोषित किया तथा उसे ‘गोल्डन एबी’ के सम्मान से नवाज़ा। टेलीविजन के लिए उन्होंने सिबाका गीतमाला की 31 श्रृंखलाओं का एक यादगार कार्यक्रम बनाया और प्रस्तुत किया है। इसी तरह दूरदर्शन के कई विशेष कार्यक्रमों के वे उदघोषक-संचालक रहे हैं। उनके कार्यों की विस्तृत जानकारी उनकी वेबसाइट पर देखी व सुनी जा सकती है।