श्री जसदेव सिंह

राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन की 122वीं जयंती पर अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त हिन्दी-कमेंटेटर पंजाबीभाषी श्री जसदेव सिंह को पं. भीमसेन विद्यालंकार स्मृति छठा ‘हिन्दीरत्न सम्मान’ समारोह के मुख्य अतिथि केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री डॉ. मुरलीमनोहर जोशी ने प्रदान किया।

श्री जोशी ने अपने वक्तव्य में कहा- “हिन्दी को देश की ही नहीं, अपितु विदेशों में भी लोकप्रिय बनाने का कार्य श्री जसदेव सिंह ने अपनी आकर्षक कमेंट्री के द्वारा किया है।”

श्री जसदेव सिंह को पं.भीमसेन की धर्मपत्नी श्रीमती वेदकुमारी ने सम्मान राशि प्रदान की तो सांसद विजयकुमार मल्होत्रा ने उन्हें चंदन की माला पहनाई। डॉ. कृष्णदत्त पालीवाल और श्री अजय भल्ला ने राजर्षि टंडन, पं. भीमसेन विद्यालंकार एवं श्री जसदेव सिंह के हिन्दी में योगदान को रेखांकित किया। हिन्दी भवन के मंत्री डॉ. गोविन्द व्यास ने आगतुकों को हिन्दी भवन की प्रतिबद्धता एवं गतिविधियों से परिचित कराया।

हिन्दीरत्न सम्मान समारोह में बड़ी संख्या में साहित्यकार, बुद्धिजीवी एवं हिन्दीप्रेमी उपस्थित थे। जिनमें प्रमुख हैं- सर्वश्री रामनिवास लखोटिया, सोम ठाकुर, शरनरानी बाकलीवाल, डॉ. संतोष माटा, शरददत्त, रामकिशोर द्विवेदी, सुरेन्द्र शर्मा, राजेन्द्र उपाध्याय, इन्दिरा मोहन, अमर गोस्वामी, गिरीश पंकज एवं डॉ. हरिसिंह पाल आदि। समारोह का संचालन डॉ. शेरजंग गर्ग ने किया।

हिन्दीरत्न श्री जसदेव सिंह का संक्षिप्त परिचय

जन्मः- 18 मई, 1931 बौंली (राजस्थान)

शिक्षाः- बी.ए., एल.एल.बी., हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी पर समान अधिकार।

पदः- शुरु में आकाशवाणी में और सेवाकाल के अंत में दूरदर्शन में विभिन्न पदों को सुशोभित किया। 1984 में चौंतीस साल कार्य करने और विश्वव्यापी ख्याति अर्जित करने के बाद दूरदर्शन में उप महानिदेशक (खेल) के पद से सेवानिवृत्त हुए।

जसदेव सिंह अब तक विश्व के एकमात्र प्रसारक तथा लेखक हैं जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति ने अपने सर्वोच्च सम्मान ‘ओलम्पिक अवार्ड’ से नवाज़ा है। स्मरणीय है कि यह अंतर्राष्ट्रीय सम्मान पहली बार किसी भारतीय और वह भी हिन्दी-कमेंटेटर को प्राप्त है। हिन्दी अकादमी, दिल्ली ने भी उनकी सेवाओं के लिए अलंकृत किया। वे अब तक के ऐसे पहले एशियाई प्रसारक हैं जिन्हें विदेश में (1991 में श्रीलंका में) रेडियो कमेंटेटरों को प्रशिक्षित करने हेतु आमंत्रित किया गया। प्रसारण की दृष्टि से जसदेव सिंह घर-घर में जाना-पहचाना नाम है। कमेंट्री के लिए जसदेव सिंह की बारी आते ही श्रोता अंग्रेजी की कमेंट्री बदलकर हिन्दी की कमेंट्री सुनने लगते हैं। देश की समस्त भाषाओं के समाचार पत्रों में जसदेव सिंह के विषय में निरंतर छपता रहता है। आजकल राष्ट्रीय दैनिक ‘जागरण’ में जसदेव सिंह का स्तंभ प्रकाशित हो रहा है। जिसमें वे ज्वलंत प्रश्नों पर अपने सुचिन्तित मंतव्य व्यक्त करते रहते हैं। इसके अलावा ‘सरिता’ में भी खेल-पृष्ठ लिख रहे हैं। उनकी भाषा में सामाजिक संस्कृति की गूंज सर्वत्र सुनाई पड़ती है। गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस की कमेंट्रियों के अलावा अजमेर में ख्वाजा ग़रीब नवाज़ का उर्स, मथुरा में जन्माष्टमी उत्सव, ननकाना साहिब (पाकिस्तान) में गुरु नानक जयंती समारोह, 1983 में भारत-सोवियत संयुक्त अंतरिक्ष उड़ान आदि की कमेंट्रियां और सैकड़ों राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों ने जसदेव सिंह को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्रदान की है।

जसदेव सिंह सूरीनाम में सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि मंडल के सदस्य रहे हैं। देश की लगभग समस्त पत्र-पत्रिकाओं में जसदेव सिंह की रचनाएं छपती रही हैं। ‘धर्मयुग’, ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’, ‘नवभारत टाइम्स’ और ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ में वे वर्षों तक नियमित स्तंभ लिखते रहे। जसदेव सिंह की आत्मकथा ‘मैं जसदेव सिंह बोल रहा हूं’ उनके दीर्घ अनुभवों, संघर्षों, खट्टी-मीठी यादों, सफलताओं और उत्कर्षों का रोमांचकारी दस्तावेज़ है। जसदेव सिंह के हिन्दीप्रेम को रेखांकित करते हुए प्रख्यात साहित्यकार कमलेश्वर की यह टिप्पणी अत्यंत महत्वपूर्ण है-“जसदेव सिंह यह पुस्तक अंग्रेजी में भी लिख सकते थे, लेकिन उन्होंने इसे हिन्दी में लिखकर हिन्दी के प्रति अपना समर्थन दिखाया है। उनके इस निर्णय के लिए मैं उन्हें खासतौर से बधाई देता हूं। कहना होगा कि वरिष्ठ प्रसारक, कुशल वक्ता, सुपरिचित लेखक, चिंतक जसदेव सिंह आज भी पूर्णतः सक्रिय हैं।