राजर्षि टंडन की 129वीं जंयती की अवसर पर 1 अगस्त, 2010 को ‘हिन्दी भवन’ ने पं. भीमसेन विद्यालंकार स्मृति ‘हिन्दीरत्न सम्मान’ से तमिलनाडु में हिन्दी के प्रबल पक्षधर, अनुवादक और साहित्यकार श्री त. शि. क. कण्णन को एक भव्य समारोह में अलंकृत किया। समारोह के अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश श्री विकास श्रीधर सिरपुरकर, मुख्य अतिथि प्रसिद्ध आलोचक डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी, कर्नाटक के पूर्व राज्यपाल एवं हिन्दी भवन के अध्यक्ष श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी, श्री हरीशंकर बर्मन, डॉ. रत्ना कौशिक एवं हिन्दी भवन के मंत्री डॉ. गोविन्द व्यास ने श्री कण्णन को सम्मान स्वरूप एक लाख रुपये की सम्मान राशि का चेक, प्रशस्ति पत्र, वाग्देवी की प्रतिमा, रजत श्रीफल, शॉल और पुष्पहार प्रदान किए।
‘हिन्दीरत्न’ से सम्मानित श्री त. शि. क. कण्णन ने सम्मान ग्रहण करने के उपरांत अपने आभार वक्तव्य में कहा कि इन्द्र विद्यावचस्पति, प्रकाशवीर शास्त्री और क्षितीश वेदालंकार ने मुझे तमिलनाडु में हिन्दी का प्रचार करने के लिए प्रेरणा दी। सन् 1965 में जब तमिलनाडु में हिन्दी का विरोध पूरे जोरों पर था तब भी मैंने समाज और घर की परवाह न करके हिन्दी प्रचार का काम नहीं छोड़ा। मुझे बड़े दुःख के साथ कहना पड़ता है कि हिन्दीवाले ही दैनिक जीवन में हिन्दी का प्रयोग नहीं करते।
समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने अपने विद्वतापूर्ण संबोधन में श्री कण्णन को बधाई देते हुए कहा कि कण्णन हिन्दी ही नहीं, अपनी मातृभाषा तमिल की भी सेवा कर रहें हैं। देश की अन्य भाषाओं और बोलियों की रक्षा का भार हिन्दीभाषी क्षेत्र के लोगों पर अपेक्षाकृत ज्यादा है।
सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश श्री विकास श्रीधर सिरपुरकर ने अपने प्रभावशाली अध्यक्षीय वक्तव्य में राष्ट्रभाषा हिन्दी के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि हिन्दी के विकास के लिए भारतीय भाषाओं का सुदृढ़ होना बहुत आवश्यक है। टंडन जी की तरह ही कण्णन जी ने अपना पूरा जीवन हिन्दी को समर्पित कर दिया है। किसी दूसरी भाषा को सीखना या अपनाना अपनी भाषा का अपमान नहीं है। नदी, ज्ञान और भाषा का उद्गम नहीं देखा जाता, उसमें अवगाहन किया जाता है।
हिन्दी भवन के अध्यक्ष श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने श्री कण्णन की हिन्दीसेवा की सराहना करते हुए उन्हें बधाई दी और आगंतुकों का आभार व्यक्त किया। इस अवसर परं गांधी जी के अनन्य सहयोगी और हिन्दी तथा गुजराती के स्वनामधन्य साहित्यकार काका साहेब कालेलकर की 125वीं जयंती के अवसर पर उनके तैलचित्र का अनावरण भी किया गया।
समारोह के प्रारंभ में हिन्दी भवन के मंत्री और वरिष्ठ व्यंग्य-कवि डॉ. गोविन्द व्यास ने हिन्दीरत्न सम्मान की पृष्ठभूमि तथा टंडनजी एवं भीमसेन विद्यालंकारजी के व्यक्तित्व पर सारगर्भित वक्तव्य दिया। समारोह का संचालन संस्कृत के विद्वान डॉ. धर्मेन्द्र शास्त्री ने कुशलतापूर्वक किया।
समारोह में राजधानी के साहित्यकार, पत्रकार, बुद्धिजीवी, राज-समाजसेवी और हिन्दीप्रेमी बड़ी संख्या में मौज़ूद थे।