राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन

राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन भारतीय इतिहास में एक ऐसे महापुरुष के रूप में स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं, जिन्होंने न केवल हिंदी भाषा के विकास और प्रतिष्ठा में अद्वितीय योगदान दिया, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय राजनीति में भी अपनी अमूल्य भूमिका निभाई। उनकी दूरदृष्टि और हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति अटूट निष्ठा ने ही ‘हिंदी भवन’ की प्रेरणा दी, जो उनके भाषाई एकता और विकास के स्वप्न का जीवंत स्मारक है। भारतीय समाज और उसकी सांस्कृतिक धरोहर के प्रति उनका प्रेम और समर्पण अतुलनीय था। टंडन जी को उनके संत जैसे जीवन, उच्च नैतिक मूल्यों और निस्वार्थ समाज सेवा के लिए आदरपूर्वक “राजर्षि” की उपाधि प्रदान की गई थी। उनका कर्मठ जीवन अनगिनत लोगों के लिए प्रेरणा का शाश्वत स्रोत बना रहेगा।

पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म 1 अगस्त, 1882 को प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा यहीं संपन्न हुई और अपने विद्यार्थी जीवन से ही उन्होंने हिंदी के प्रति असीम प्रेम और गहरा आदर प्रकट करना आरंभ कर दिया था। टंडन जी का दृढ़ मानना था कि हिंदी मात्र एक भाषा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता की आत्मा है। वह हिंदी को उस अटूट धागे के समान मानते थे जो भारत की विविध संस्कृतियों को एकता के सूत्र में पिरोता है। उनका यह मानना था कि सभी भारतीय भाषाओं का विकास राष्ट्रीय एकता के लिए अनिवार्य है और हिंदी इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

टंडन जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक निष्ठावान और प्रमुख सदस्य थे और स्वतंत्रता संग्राम में उनकी सक्रिय भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। वे असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन सहित कई महत्वपूर्ण आंदोलनों का अभिन्न हिस्सा रहे और अपने ओजस्वी लेखन व प्रेरणादायक भाषणों से समाज को जागरूक करने का महत्वपूर्ण कार्य बखूबी किया। उनका अटूट विश्वास था कि हिंदी को राष्ट्रभाषा का गौरवपूर्ण दर्जा देकर भारतीय स्वतंत्रता और एकता को अटूट मजबूती प्रदान की जा सकती है। उन्होंने देवनागरी लिपि को राष्ट्रलिपि के रूप में स्थापित करने के लिए भी पुरजोर प्रयास किए और विभिन्न प्रांतीय भाषाओं के बीच समन्वय स्थापित करने की वकालत की।

उनके बहुमूल्य साहित्यिक योगदान के बिना हिंदी साहित्य का अध्ययन सर्वदा अधूरा रहेगा। टंडन जी ने असंख्य लेख, विचारोत्तेजक निबंध और प्रभावशाली भाषणों के माध्यम से न केवल हिंदी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि समाज और राष्ट्र के प्रति लोगों को कर्तव्यपरायण और जागरूक भी किया। उनके गहन विचारों और उत्कृष्ट रचनाओं में समाज के प्रति उनकी अटूट संवेदनशीलता स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होती है। टंडन जी के लेखों में उस समय के ज्वलंत सामाजिक और जटिल राजनीतिक मुद्दों की गहरी समझ और उनकी व्यावहारिक समाधानपरक दूरदृष्टि स्पष्ट रूप से झलकती है।

प्रमुख साहित्यिक योगदान और रचनाएँ

राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन के अनेक विचारपूर्ण लेख और सारगर्भित निबंध उनके गहन चिंतन और प्रगतिशील सामाजिक दृष्टिकोण को प्रभावी ढंग से प्रदर्शित करते हैं। उनके कुछ प्रमुख साहित्यिक योगदान में विभिन्न ज्वलंत सामाजिक मुद्दों, अटूट राष्ट्रीय एकता और हिंदी भाषा की गरिमा व प्रतिष्ठा पर केंद्रित उत्कृष्ट आलेख शामिल हैं। उनके प्रेरणादायक भाषण और विचारोत्तेजक निबंध पढ़कर यह सहजता से समझा जा सकता है कि समाज के समग्र उत्थान और राष्ट्र की सर्वांगीण प्रगति के लिए उनकी दूरदर्शिता कितनी स्पष्ट और भविष्योन्मुखी थी।

हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना

टंडन जी ने दूरदर्शितापूर्ण हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना करके हिंदी भाषा और साहित्य के व्यापक प्रचार-प्रसार में एक अमूल्य और अविस्मरणीय योगदान दिया। यह प्रतिष्ठित सम्मेलन हिंदी भाषा को निरंतर प्रोत्साहित करने और उसमें समयानुकूल नवाचार लाने का एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय केंद्र बना। इस प्रतिष्ठित सम्मेलन के माध्यम से उन्होंने अनेक प्रतिभाशाली साहित्यकारों को एक साझा मंच प्रदान किया, जिससे हिंदी साहित्य को एक नवीन और समृद्ध आयाम मिला। उन्होंने सम्मेलन के माध्यम से अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों को भी सम्मानित किया और भाषाई सद्भाव को बढ़ावा दिया।

भारत रत्न से सम्मानित

वर्ष 1961 में पुरुषोत्तम दास टंडन को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से विभूषित किया गया। इस प्रतिष्ठित सम्मान को प्राप्त कर उन्होंने न केवल अपने अथक कार्यों का राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान प्राप्त किया, बल्कि उन्होंने हिंदी भाषा के प्रति अपने अटूट समर्पण और गहरी देशभक्ति का एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। इस प्रतिष्ठित पुरस्कार ने उनके द्वारा किए गए वर्षों के अनवरत प्रयासों को राष्ट्रीय मान्यता प्रदान की और हिंदी के प्रति उनके अमूल्य योगदान को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।

टंडन जी का संपूर्ण जीवन और उनके महान कार्य एक अनमोल प्रेरणास्पद धरोहर हैं। उन्होंने न केवल एक प्रखर भाषा प्रेमी के रूप में, बल्कि एक कुशल दूरदर्शी राजनेता और प्रगतिशील समाज सुधारक के रूप में भारतीय समाज को नई दिशा प्रदान की। उनकी लेखनी में अद्भुत गहराई और मानवीय संवेदनशीलता स्पष्ट रूप से झलकती है जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। उनका महान कृतित्व और व्यक्तित्व आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का अक्षय स्रोत बना रहेगा। राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन का अद्वितीय योगदान वास्तव में अतुलनीय है, जिसने न केवल हिंदी भाषा की अपार महत्ता को राष्ट्रीय पटल पर प्रकट किया, बल्कि भारतीय समाज को प्रगति की एक नई दिशा भी प्रदान की।

टंडन जी के उदात्त जीवन और महान कार्यों से हमें यह गहनता से समझने में अमूल्य सहायता मिलती है कि किस प्रकार एक व्यक्ति अपनी दृढ़ सोच, अटूट निष्ठा और निस्वार्थ समर्पण के माध्यम से समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है। उनके महान प्रयासों और उदात्त आदर्शों को स्मरण करते हुए हम यह गहराई से अनुभव करते हैं कि समाज की सच्ची प्रगति भाषा और संस्कृति के संरक्षण में ही निहित है। राजर्षि टंडन ने अपने जीवन से यह अकाट्य रूप से सिद्ध कर दिखाया कि हमारी भाषाएं हमारी अमूल्य पहचान और समृद्ध संस्कृति का अटूट आधार हैं।