लाल बहादुर शास्त्री। नाम ही कितना गरिमामय, कितना प्रेरणादायक! स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री, जिनकी सादगी, निष्ठा और देशभक्ति ने उन्हें जन-जन के हृदय में अमर कर दिया। लेकिन शास्त्री जी की महानता केवल उनकी राजनीतिक कुशलता या नेतृत्व क्षमता तक सीमित नहीं थी। वे एक ऐसे विचारक थे, जिन्होंने हिन्दी भाषा के प्रति अगाध प्रेम और गहरा सम्मान रखा, और इसे राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी प्रेरणादायक यात्रा में हिंदी के प्रति उनका समर्पण एक महत्वपूर्ण अध्याय है।
यह सर्वविदित है कि लाल बहादुर शास्त्री ‘श्री पुरुषोत्तम हिन्दी भवन न्यास समिति’ के संस्थापक अध्यक्ष थे। हिंदी के प्रति उनकी गहरी निष्ठा और इसके राष्ट्रीय महत्व की उनकी समझ ही इस प्रतिष्ठित संस्थान की स्थापना की आधारशिला बनी। यह संस्थान, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन की प्रेरणा और शास्त्री जी के सक्रिय नेतृत्व का ही परिणाम है, जो आज हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं की सेवा में समर्पित है।
वह किसी भी प्रकार के भाषा-आधारित भेदभाव के विरुद्ध थे, और सभी भाषाओं के प्रति सम्मान का भाव रखते थे। उनके अनुसार, हिन्दी को सभी के लिए सुलभ और समझने योग्य बनाना आवश्यक था, ताकि यह सच्चे अर्थों में राष्ट्रभाषा बन सके। उनकी यह मान्यता उनके प्रसिद्ध नारे ‘जय जवान, जय किसान’ में भी झलकती है, जिसकी सरल और सहज हिंदी ने देश के नागरिकों को एक सूत्र में बांध दिया था। यह नारा हिंदी की शक्ति का ज्वलंत उदाहरण है।
शास्त्री जी के विचारों में उनकी सादगी और स्पष्टता परिलक्षित होती है। वे जटिल विचारों को सरल भाषा में व्यक्त करने में निपुण थे। उनके वक्तव्यों में भावुकता और देशभक्ति का रंग साफ़ दिखाई देता है। उनके विचारों में राष्ट्रीय एकता, सामाजिक न्याय, और गरीबी उन्मूलन जैसे विषयों पर गहरा चिंतन मिलता है। उनके विचारों में गहनता और व्यावहारिकता का सम्मिश्रण है। वह केवल सपने देखने में विश्वास नहीं करते थे, बल्कि उन्हें साकार करने के लिए कठोर परिश्रम में भी विश्वास करते थे। यही कारण है कि उनके विचारों में आशावाद और दृढ़ संकल्प की भावना व्याप्त है।
दुर्भाग्यवश, शास्त्री जी के हिन्दी में लिखे अधिकांश वक्तव्य और भाषण संग्रहीत नहीं हो पाए हैं। लेकिन उपलब्ध साक्ष्यों से स्पष्ट होता है कि वे हिन्दी भाषा के प्रबल समर्थक थे और इसका उपयोग प्रभावी संचार के लिए करते थे। उनके भाषणों में साधारण जनता के साथ जुड़ाव का अद्भुत तरीका था, जो उनकी सरल हिन्दी के कारण ही संभव हो पाता था। उनके विचारों की गहराई और प्रभावशीलता उनकी सरल, स्पष्ट और मार्मिक भाषा में ही निहित थी। यह सादगी ही उनकी महानता का प्रमाण है। वे शब्दों के सच्चे जादूगर थे, जिनके शब्दों ने जनमानस को प्रभावित किया और उन्हें प्रेरणा दी। शास्त्री जी का हिंदी के प्रति यह महत्वपूर्ण योगदान किसी भी औपचारिक लेखन से कहीं अधिक गहरा और स्थायी प्रभाव छोड़ने वाला था।
शास्त्री जी हिन्दी के प्रति अपने समर्पण को केवल समर्थन तक सीमित नहीं रखते थे। वे हिन्दी के प्रचार-प्रसार और विकास के लिए सक्रिय रूप से कार्य करते थे। उन्होंने हिन्दी के शिक्षण और प्रसार को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाओं और कार्यक्रमों को समर्थन दिया। उनका मानना था कि हिन्दी का विकास केवल शासकीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि जन-स्तर पर भी होना चाहिए। इसके लिए उन्होंने जन-जागरण अभियान चलाने की आवश्यकता पर बल दिया।
लाल बहादुर शास्त्री का जीवन और कार्य केवल राजनीतिक इतिहास का ही नहीं, अपने आप में एक प्रेरणा है। उनकी सादगी, निष्ठा, और देशभक्ति आज भी प्रासंगिक है। हिन्दी भाषा के प्रति उनका समर्पण और उनके विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं। उनके विचारों में रही सरलता और स्पष्टता हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। वे हमें सिखाते हैं कि भाषा केवल संचार का माध्यम ही नहीं, अपने आप में एक शक्ति भी है, जो राष्ट्रीय एकता और सामंजस्य को मजबूत कर सकती है।