हिन्दी का विशाल जहाज धीरे-धीरे महासागर में समा गया

श्री गोपालप्रसाद व्यासजी हिन्दी के ऐसे जहाज थे जिसमें हजारों कवियों, लेखकों, पत्रकारों ने वर्षों तक सवारी कर हिन्दी का प्रचार-प्रसार किया। मैं स्वयं पचपन वर्ष पूर्व उनके साथ जुड़ा था। कनाट प्लेस में दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ का कार्यालय था। अपने कार्यालय में बैठकर व्यासजी आंखे बंद करके लिखा करते थे। पाठक सोचते होंगे कि आंखे बंद करके कोई कैसे लिख सकता है, किन्तु मैं प्रत्यक्षदर्शी हूं। हिन्दुस्तान कार्यालय के साथ ही एक कम्यूनिकेशन भवन हुआ करता था। जिसके स्थान पर आज नगरपालिका की दुकानें बनी हुई हैं। व्यासजी दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ के कार्यालय से उठकर लंच के समय वहां आया करते थे। मेरी व्यासजी के प्रति अति श्रद्धा रही। मैं कार्यालय मंत्री के रूप में उनके साथ बैठकर कुछ लिखना-पढ़ना सीखता रहता था और अवैतनिक रूप से हिन्दी की सेवा में लगा रहता था। व्यासजी बड़े-बड़े कवियों, साहित्यकारों और नेताओं को पत्र लिखवाया करते थे।

उनकी पत्र-शैली इतनी ग़ज़ब की होती थी कि कोई नेता तथा साहित्यकार उनके पत्र को नकार नहीं सकते थे। बड़े-बड़े समारोहों में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ0 राजेन्द्रप्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू, बाबू जगजीवन राम तथा ऐसे ही महान व्यक्तियों को आमंत्रित करते थे और उनको आना ही पड़ता था। व्यासजी अथक परिश्रमी थे। वह हिन्दुस्तान के कार्यालय और हिन्दी साहित्य सम्मेलन के कार्यालय में एक मिनट भी नष्ट नहीं करते थे। मैं उनसे इतना प्रभावित हुआ कि मैंने उनका सारा साहित्य पढ़ा। दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ में जो लिखते थे वह तो हम पढ़ते ही रहते थे। वे समाचार पत्र पढ़वाते, आंखें बंद करके सुनते और जब कोई बात जंच जाती वहीं पढ़वाना छोड़ देते और उसी विषय को लेकर ‘नारदजी खबर लाए हैं’ शीर्षक से लेख लिखवा देते। व्यासजी ने हर पहलू को छुआ। चाहे वह लालकिले का कवि सम्मेलन हो, चांदनी चौक का महामूर्ख सम्मेलन हो या फिर हिन्दी भवन के निर्माण का कार्य। टेलीफोन डायरेक्ट्री हिन्दी में छपवाने के लिए उन्होंने स्व0 जगजीवन राम के समय में आंदोलन शुरू किया। उन्होंने लाखों पत्र छपवाए और दिल्ली के दुकानदारों की ओर से निवेदन किया गया कि टेलीफोन डायरेक्ट्री हिन्दी में छपनी चाहिए। किन्तु उन्होंने कभी हार नहीं मानी। लगे रहे और लगे ही रहे। स्व0 बाबू जगजीवन राम के जाने के बाद हिन्दी डायरेक्ट्री छपी। यह एक बहुत बड़ी सफलता थी। दूसरे पुरुषोत्तम हिन्दी भवन उनकी कठोर साधना का जीता-जागता प्रमाण है। लोग कहते हैं कि व्यक्ति ऊपर चला गया, स्वर्ग सिधारा, किन्तु गोपालप्रसाद व्यास का जहाज धीरे-धीरे हिन्दी के महासागर में समा गया। 

 

(मुरारीलाल त्यागी, संपादक-कल्पांत)