डॉ. सरोजिनी महिषी

राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन की 130वीं जयंती के अवसर पर प्रख्यात पत्रकार पं. भीमसेन विद्यालंकार की स्मृति में प्रतिवर्ष हिन्दी भवन द्वारा दिया जाने वाला ‘हिन्दीरत्न सम्मान’ इस वर्ष 01 अगस्त, 2011 की संध्या 5-30 बजे कर्नाटक में राष्ट्रभाषा हिन्दी की प्रबल पक्षधर एवं अनेक भारतीय भाषाओं की विदुषी डॉ0 सरोजिनी महिषी को हिन्दी भवन सभागार में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रदान किया गया।

समारोह की अध्यक्षा न्यायमूर्ति सुश्री ज्ञानसुधा मिश्रा, न्यायमूति श्री विकास श्रीधर सिरपुरकर, हिन्दी भवन के अध्यक्ष श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी, आजीवन न्यासी श्री रामनिवास लखोटिया, पद्मश्री गीता चन्द्रन एवं डॉ. रत्ना कौशिक ने क्रमशः एक लाख रुपये की राशि, प्रशस्ति पत्र, वाग्देवी की प्रतिमा, रजत श्रीफल, शॉल और पुष्पाहार आदि प्रदान किए।

डॉ. महिषी ने विभिन्न विषयों पर कन्नड़, हिन्दी एवं संस्कृत भाषा में लगभग 40 पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें 16 पुस्तकें हिन्दी भाषा में लिखी हैं। डॉ. महिषी कन्नड़, तमिल, तेलुगू, मराठी, कोंकणी, संस्कृत, हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा की ज्ञाता हैं। इससे पूर्व यह सम्मान मणिपुरी, तेलुगू, कश्मीरी, डोगरी, मलयालम, जापानी, ईरानी, गुजराती आदि भाषा के विद्वानों को प्रदान किया जा चुका है।

समारोह के मुख्य अतिथि सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश श्री विकास श्रीधर सिरपुरकर ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज का दिन दो कारणों से महत्वपूर्ण है। पहला-आज न्याय संस्थानों के सर्वोच्च संस्थान की एक महिला न्यायाधीश ने पंचआयामी व्यक्तित्व की स्वामिनी एक विदुषी महिला का सम्मान किया है। दूसरे-आज बाल गंगाधर तिलक की पुण्यतिथि भी है।

श्री सिरपुरकरजी ने मद्रास उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य करते हुए अपने अनुभवों के संस्मरण सुनाते हुए कामना की कि देश के सभी भागों के लोग जब हिन्दी का जेठा स्वरूप त्यागकर मित्र स्वरूप में आएंगे तभी हिन्दी का उत्थान होगा। हिन्दी भवन के विचारों से सहमति जताते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दी के साथ-साथ अन्य भाषाएं भी सीखना उतना ही आवश्यक है।

सर्वोच्च न्यायालय की माननीय न्यायाधीश सुश्री ज्ञानसुधा मिश्रा ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में अत्यंत ही साधारण शब्दों में कहा यहां उपस्थित धुरंधर साहित्यकारों के बीच मेरी क्या औकात। उन्होंने कहा कि लीक से हटकर यदि कुछ करना है तो साहित्य का ज्ञान आवश्यक है। यद्यपि यह बात समझने में काफी देर हो गई, फिर भी मैं चाहूंगी कि यदि दूसरा जन्म मिले तो उसमें मैं कुछ सुधार कर सकूं। नई पीढ़ी को अन्य भाषाओं के ज्ञान के साथ-साथ हिन्दी का ज्ञान भी अवश्य होना चाहिए।

न्यायाधीशों को साहित्यिक समारोहों में सम्मिलित किए जाने वाली सोच को उन्होंने सराहनीय बताया तथा हिन्दी भवन के मंत्री डॉ. गोविन्द व्यास का धन्यवाद किया। कर्नाटक के पूर्व राज्यपाल एवं हिन्दी भवन के अध्यक्ष श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने हिन्दीरत्न सम्मान से सम्मानित डॉ. सरोजिनी महिषी को बधाई देते हुए विश्वास दिलाया कि हिन्दी भवन हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में ऐसे ही संलग्न रहेते हुए भविष्य में इसी प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करता रहेगा।

हिन्दीरत्न सम्मान से सुशोभित होने के उपरांत डॉ. सरोजिनी महिषी ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि संसद में रहते हुए उन्होंने अब तक चुनकर आए सांसदों में से लगभग 250 सांसद साहित्यकारों की कृतियों की प्रदर्शनी आयोजित की जिसका उद्घाटन श्रीमती इन्दिरा गांधी ने किया था।

हिन्दी भवन द्वारा दिया जाने वाला यह ‘हिन्दीरत्न’ सम्मान एक प्रशंसनीय एवं स्मरणीय कार्य है। हिन्दी भवन के संस्थापक मंत्री पं. गोपालप्रसाद व्यास को स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि वे स्वयं एक संस्थान थे। उन्होंने कहा कि यद्यपि साहित्य समझने के लिए व्याकरण जानना आवश्यक है, लेकिन फिर भी वे रिक्शा चालक जैसे एक श्रमजीवी को हिन्दी बोलते-समझते देख आनंद का अनुभव करती हैं। चूंकि हिन्दीसंस्कृत-जन्य भाषा है तो इसका व्याकरण अन्य द्रविड़ भाषाओं के व्याकरण से भिन्न हैं।

साहित्यिक समारोहों में न्यायाधीशों को अध्यक्ष एवं मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किए जाने के पीछे की जिज्ञासा को शांत करते हुए समारोह के अंत में हिन्दी भवन के मंत्री डॉ0 गोविन्द व्यास ने कहा कि हमें ज्ञात है कि सर्वोच्च न्यायालय में हिन्दी में कार्य नहीं होता, लेकिन यदि वहां के लोग यदि उस परिधि के बाहर कहीं भी हिन्दी से प्रेम करते हैं और ऐसे समारोह में सम्मिलित हो कर हिन्दी में अपने विचार व्यक्त करते हैं तो संभवतः एक न एक दिन वहां भी हिन्दी का प्रचलन प्रारंभ हो जाएगा। उन्होंने पुरजोर तरीके से कहा कि हिन्दी का प्रश्न संवैधानिक नहीं, अपितु आस्था का प्रश्न है।

इस अवसर पर गांधीवादी एवं वरिष्ठ साहित्यकार स्व. विष्णु प्रभाकरजी की जन्मशती के अवसर पर उनके तैलचित्र का अनावरण किया गया। इस अवसर पर उनके ज्येष्ठ पुत्र श्री अतुल प्रभाकर भी उपस्थित थे।

समारोह का कुशल संचालन प्रो. सुषमा यादव ने किया। समारोह में राजधानी के साहित्यकार, पत्रकार, बुद्धिजीवी, राज-समाजसेवी और हिन्दीप्रेमी बड़ी संख्या में मौजूद थे। जिनमें प्रमुख हैं-सर्वश्री रामनिवास जाजू,, निधि गुप्ता, वीरेन्द्र प्रभाकर, रोशनलाल अग्रवाल, महेशचन्द्र शर्मा, चमनलाल सप्रू, त. शि. क. कण्णन, राजनारायण बिसारिया, हरिसिंह पाल, रामपाल विद्यालंकार, विमला गोगना, कर्नाटक के पूर्व मुख्य सचिव प्रहलाद महिषी, श्याम निर्मम, रघुनंदन शर्मा ‘तुषार’ एवं उषापुरी आदि।