हिन्दी भारती है।
हिंदी भाषा ही नहीं, वाणी है।
हिंदी संस्कृति है।
हिंदी भारत राष्ट्र के हृदय की धड़कन है।
हिंदी जन-जागरण का जय-निनाद है। हिंदी राष्ट्रीय एकता की संवाहिका है।
हिंदी भारत के संविधान में राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठापित है।
हिन्दी के अतिरिक्त भारत में अनेक समृद्ध और सुसंस्कृत भाषाएं हैं।
1960 में हिन्दी के महाप्राण राजर्षि श्री पुरुषोत्तमदास टंडन के सम्मान में दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने एक अभिनंदन ग्रंथ प्रस्तुत करने का निर्णय लिया। अभिनन्दन ग्रन्थ समिति का नेतृत्व तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री ने किया, जबकि पंडित गोपालप्रसाद व्यास ने ग्रन्थ को संपादित करने की जिम्मेदारी उठाई।
23 अक्टूबर, 1960 को प्रयाग में आयोजित समारोह में, भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसाद ने टंडनजी को यह अभिनंदन ग्रंथ भेंट किया। समारोह में टंडनजी ने क्षीण स्वर में अपने जीवन का अंतिम सन्देश देश को दिया। अभिनंदन समारोह के बाद, समिति के पास कुछ धनराशि बच गई, जिसे टंडनजी की स्मृति के प्रति समर्पित करने का निश्चय किया गया।
श्री लालबहादुर शास्त्री की अध्यक्षता में ‘श्री पुरुषोत्तम हिन्दी भवन न्यास समिति’ का विधिवत गठन करके इसे 23 मई, 1962 को पंजीकृत करा लिया गया। पं. गोपालप्रसाद व्यास ने इसके मंत्री-पद का दायित्व संभाला, और इस तरह राष्ट्रीय एकता, भाषायी सौमनस्य तथा हिन्दी की अस्मिता के प्रतीक राजर्षि टंडन के चिरकालीन स्मारक के रूप में ‘हिन्दी भवन’ देश की राजधानी में स्थापित हुआ।
पवित्र सरस्वती यंत्र से प्रेरित हिंदी भवन का लोगो ज्ञान, रचना और सांस्कृतिक एकता के सार का अनावरण करता है।
जैसे कि सरस्वती यंत्र, मां सरस्वती के आशीर्वाद को आमंत्रित करने के लिए एक शक्तिशाली प्रतीक है, वैसा ही यह लोगो हिंदी भवन की हिंदी तथा अन्य सभी भारतीय भाषाओं के बहुपरक विकास के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है। है। यह न केवल भाषाई धरोहर के प्रति श्रद्धा को, बल्कि भारत के विभिन्न बोलियों और संस्कृतियों के बीच समरसता के प्रति आकांक्षा को भी दर्शाता है।
लोगो का डिज़ाइन सभी भाषाओं के आपसी संबंध और भारत की सांस्कृतिक विविधता की समृद्धि को दर्शाता है और भाषाई स्वायत्तता की भावना को विकसित करने के लिए प्रेरित करता है। यह ज्ञान, रचना और कला की प्रेरणा को खोजने की दिशा में प्रोत्साहित करता है, साथ ही यह भी याद दिलाता है कि विविधता में एकता हमारे राष्ट्र की नींव है।
सरस्वती यंत्र की प्रेरणा से, हिंदी भवन ज्ञान और सांस्कृतिक गर्व का एक प्रकाश स्तंभ बनकर खड़ा है जो अपने विभिन्न पहल और कार्यक्रमों के माध्यम से सभी भारतीय भाषाओं की साझा बुद्धिमत्ता से समृद्ध भविष्य का मार्ग प्रशस्त करने में जुटा है ।