सन 2010 का हिन्दीरत्न सम्मान’ से तमिलनाडु में हिन्दी के प्रबल पक्षधर, अनुवादक और साहित्यकार श्री त. शि. क. कण्णन को प्रदान किया गया।
‘हिन्दीरत्न’ से सम्मानित श्री त. शि. क. कण्णन ने इस सम्मान के लिए आभार वक्तव्य करते हुए कहा कि इन्द्र विद्यावचस्पति, प्रकाशवीर शास्त्री और क्षितीश वेदालंकार ने मुझे तमिलनाडु में हिन्दी का प्रचार करने के लिए प्रेरणा दी। सन् 1965 में जब तमिलनाडु में हिन्दी का विरोध पूरे जोरों पर था तब भी मैंने समाज और घर की परवाह न करके हिन्दी प्रचार का काम नहीं छोड़ा।
समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने अपने विद्वतापूर्ण संबोधन में श्री कण्णन को बधाई देते हुए कहा कि कण्णन हिन्दी ही नहीं, अपनी मातृभाषा तमिल की भी सेवा कर रहें हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश श्री विकास श्रीधर सिरपुरकर ने अपने प्रभावशाली अध्यक्षीय वक्तव्य में राष्ट्रभाषा हिन्दी के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि हिन्दी के विकास के लिए भारतीय भाषाओं का सुदृढ़ होना बहुत आवश्यक है।
हिन्दी भवन के अध्यक्ष श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने श्री कण्णन की हिन्दीसेवा की सराहना करते हुए उन्हें बधाई दी और आगंतुकों का आभार व्यक्त किया। ।
समारोह का संचालन संस्कृत के विद्वान डॉ. धर्मेन्द्र शास्त्री ने कुशलतापूर्वक किया।
समारोह में राजधानी के साहित्यकार, पत्रकार, बुद्धिजीवी, समाज सेवी और हिन्दी प्रेमियों की बड़ी संख्या में गरिमामयी उपस्थिति रही।