श्री इब्राहिम अलकाज़ी

राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन की 128वीं जयंती शनिवार, 1 अगस्त, 2009 के अवसर पर हिन्दी भवन में आयोजित एक भव्य समारोह में राष्ट्रभाषा हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के रंगमंच को नई पहचान और नए आयाम देने वाले पुरोधा रंगकर्मी और कला-मर्मज्ञ श्री इब्राहिम अलकाज़ी को पंडित भीमसेन विद्यालंकार स्मृति ‘हिन्दीरत्न सम्मान-2009’ से विभूषित किया गया। इस सम्मान के अंतर्गत श्री अलकाज़ी को शॉल, प्रतीक चिह्न, प्रशस्ति-पत्र, रजत-श्रीफल और एक लाख रुपये की राशि सम्मान स्वरूप भेंट की गई।

‘हिन्दीरत्न सम्मान’ ग्रहण करने के उपरांत श्री इब्राहिम अलकाज़ी ने अपने संक्षिप्त उदबोधन में कहा कि थियेटर एक खोज है, अपनी ज़िंदगी में, ज़िंदगी के बारे में तथा ज़िंदगी के प्रयोजन की। थियेटर सिर्फ नाटक या कोई खेल नहीं है, वह समाज की शराफत और सच्चाई की खोज है। थियेटर करना किसी अनुष्ठान करने जैसा है।

श्री अलकाज़ी ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की स्थापना और उसके उत्तरोत्तर विकास की चर्चा करते हुए कहा कि इस संस्थान ने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की है और एनएसडी के छात्रों ने थियेटर, फिल्म और ललित कलाओं के क्षेत्र में बड़ी कामयाबी पाई है। श्री अलकाज़ी का कहना था कि अच्छे थियेटर के लिए जितना निर्देशक, अभिनेता और नाटककार ज़िम्मेदार है, उतने ही दर्शक भी। थियेटर को अक्लमंद और संवेदनशील दर्शकों की ज़रूरत है।

समारोह के प्रारंभ में हिन्दी भवन के मंत्री डॉ. गोविन्द व्यास ने राजर्षि टंडन तथा पं. भीमसेन विद्यालंकार के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। डॉ. गोविन्द व्यास ने ‘हिन्दीरत्न सम्मान’ की पृष्ठभूमि बताते हुए कहा कि यह सम्मान प्रतिवर्ष ऐसे व्यक्तित्व को प्रदान किया जाता है, जिसने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में अतुलनीय योगदान दिया हो और उसकी मातृभाषा हिन्दी न रही हो।

डॉ. गोविन्द व्यास ने समारोह में विशेष रूप से आमंत्रित लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती मीरा कुमार और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव के न पधारने पर खेद व्यक्त करते हुए बताया कि ये दोनों राजनेता गुजरात के मनोनीत राज्यपाल श्री देवेन्द्रनाथ द्विवेदी के आकस्मिक निधन के कारण समारोह में नहीं आ सके।

श्रीमती मीरा कुमार का संदेश समारोह के संचालक श्री रामगोपाल बजाज ने पढ़कर सुनाया, जिसमें हिन्दीरत्न श्री इब्राहिम अलकाज़ी को बधाई देते हुए कहा गया था- “मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि श्रद्धेय राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन की 128वीं जयंती के अवसर पर प्रख्यात हिन्दीसेवी, स्वतंत्रता सेनानी एवं पत्रकार स्वर्गीय पं. भीमसेन विद्यालंकार की स्मृति में आयोजित ‘हिन्दीरत्न सम्मान’ से भारतीय रंगमंच के उज्ज्वल नक्षत्र श्री इब्राहिम अलकाज़ी को अलंकृत किया जा रहा है। हिन्दी भवन राष्ट्रीय एकता, भाषायी समन्वय एवं हिन्दी के बहुमुखी विकास का राष्ट्रीय मंच बन गया है। अतः राष्ट्रीय रंगमंच के पुरोधा श्री इब्राहिम अलकाज़ी का सम्मान सर्वथा इसके योग्य है।

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के रंगकर्मी श्री इब्राहिम अलकाज़ी के ‘हिन्दीरत्न सम्मान’ से अलंकृत होने के उपलक्ष्य में मेरी र्हार्दिक बधाई और राष्ट्र की महान विभूति स्व. टंडनजी के जन्म-दिवस पर मेरा हार्दिक अभिनन्दन-वन्दन। सदभावनाएं- शुभेच्छु -मीरा कुमार।”

इस सम्मान समारोह के मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार श्री कन्हैयालाल नंदन ने कहा कि श्री इब्राहिम अलकाज़ी ने भारतीय रंगकर्म को जो ऊंचाई दी है, उसे लंबे समय तक याद किया जाएगा। श्री नंदन ने राजर्षि टंडन का स्मरण करते हुए बताया कि जब वह उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष बनाए गए तो उन्होंने एक शर्त रखी कि सदन का एक सदस्य भी उनकी निष्पक्षता पर उंगली उठाएगा तो वह तत्काल अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे देंगे और ऐसा उन्होंने किया भी। सदन के एक मुस्लिम विधायक ने उन पर पक्षपात का आरोप लगाया तो उन्होंने तुरंत इस्तीफा दे दिया। उस विधायक ने उनसे बाद में माफी मांगी और पूरे सदन ने उन्हें मनाया, लेकिन वह अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुए तथा सरकारी गाड़ी छोड़कर असेम्बली से एक तांगे में बैठकर अपने घर चले गए।

श्री नंदन ने पं. भीमसेन विद्यालंकार को याद करते हुए कहा कि वह ‘पंजाब केसरी’ के संस्थापक संपादक थे। उन्होंने न सिर्फ पत्रकारिता और हिन्दीसेवा का कार्य किया, बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका भी अदा की। पहले अविभाजित भारत में और फिर भारतीय पंजाब में हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में पं. भीमसेन विद्यालंकार का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वह टंडनजी के अत्यंत विश्वासभाजन रहे।

डोगरी और हिन्दी की प्रख्यात कवयित्री श्रीमती पद्मा सचदेव ने श्री अलकाज़ी की तुलना ग़ालिब से की और कहा कि मैंने डोगरी में कविताएं लिखीं तो वह लगभग एक करोड़ लोगों तक ही पहुंचीं, लेकिन जब वह कविताएं राष्ट्रभाषा हिन्दी में छपी तो सारी दुनिया में पहुंच गईं। मैं ऐसी हिन्दीभाषा को प्रणाम करती हूं।

समारोह के संचालक वरिष्ठ रंगकर्मी और अलकाज़ी के शिष्य श्री रामगोपाल बजाज ने उनका विस्तार से परिचय देते हुए कहा कि अरबीभाषी होते हुए भी अलकाज़ी ने हिन्दी व भारतीय रंगमंच को एक गंभीर प्रशिक्षण प्रदान किया। श्री अलकाज़ी ने रंगमंच के माध्यम से लोगों के समक्ष विश्वदृष्टि रखी और रंगमंच के अलावा फोटोग्राफी, पेंटिंग तथा अन्य कला-माध्यमों में भी अपना योगदान दिया। श्री बजाज ने कहा कि श्री अलकाज़ी ने रंगकर्म का संस्कार विकसित करने के लिए बाल-रंगमंच को प्रोत्साहित किया और रूढ़िगत रंगमच की परंपरा को तोड़कर आधुनिक रंगमंच की नींव रखी।

अंत में हिन्दी भवन के अध्यक्ष श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने कृतज्ञता ज्ञापन करते हुए कहा कि श्री अलकाज़ी ने अहिन्दीभाषी होने के बावजूद हिन्दी के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ भारतीय कला एवं रंगकर्म को भी देश की सीमाओं से बाहर पहुंचाया।

इस अवसर पर श्री अलकाज़ी द्वारा निर्देशित नाटकों के चित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिसे सैकड़ों कलाप्रेमियों ने देखा और सराहा।

हिन्दी भवन के आजीवन न्यासी श्री रामनिवास लखोटिया और वरिष्ठ रंगकर्मी एवं दूरदर्शन के कार्यक्रमों की निर्मात्री श्रीमती वेद राव ने भी श्री अलकाज़ी को बधाई दी।

हिन्दीरत्न सम्मान समारोह में सर्वश्री देवेन्द्रराज अंकुर, वेदप्रताप वैदिक, कमला सिंघवी, अमाल अल्लाना, निसार अल्लाना, बालस्वरूप राही, पी. के. दवे, राजेन्द्र मोहन, इन्दु गुप्ता, महेशचन्द्र शर्मा, रोशनलाल अग्रवाल, वीरेन्द्र प्रभाकर, रत्ना कौशिक, संतोष माटा सहित राजधानी के साहित्यकार, पत्रकार, रंगकर्मी, बुद्धिजीवी और राज-समाजसेवी उपस्थित थे।

इब्राहिम अलकाज़ी – एक परिचय

इब्राहिम अलकाज़ी- एक ऐसा नाम है जो राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पटल पर नाटक, ललित-कला तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में उल्लेखनीय है। लगभग पांच दशक तक आपकी अभूतपूर्व क्षमताओं के योगदान के फलस्वरूप भारत सरकार ने आपको पद्मश्री एवं पद्मभूषण की उपाधि से अंलकृत किया है। संगीत नाटक अकादमी के फैलो तथा पुरस्कार विजेता इब्राहिम अलकाज़ी को रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय, कोलकाता ने डी.लिट् की मानद उपाधि प्रदान की है। मध्य प्रदेश सरकार ने आपको ‘कालिदास सम्मान’ एवं सन्‌ 2008 में दिल्ली सरकार ने ‘लाइफ टाइम अचीवमैंट’ सम्मान से विभूषित किया है।

मूलतः ईरानी, इब्राहिम अलकाज़ी एक गंभीर अंतर्दृष्टि वाले नाट्य निर्देशक हैं। मातृभाषा अरबी होते हुए भी आपने हिन्दी नाटकों को एक पहचान दिलाई। सन्‌ 1950-1962 के अपने मुम्बई प्रवास के दौरान वह ‘थियेटर यूनिट’ से जुड़े रहे। तत्पश्चात्‌ 1962-1977 के काल में अलकाज़ी ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एन.एस.डी.) एवं एशियन थियेटर इंस्टीट्यूट को वास्तविक रूप में राष्ट्रीय स्तर पर ला खड़ा किया। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निर्देशक के रूप में इब्राहिम अलकाज़ी ने संस्थान को वृहद्ता प्रदान की। उन्होंने न केवल हिन्दी, अपितु शास्त्रीय संस्कृत नाटकों, पारंपरिक लोक कलाओं, अन्य भारतीय भाषाओं, यहां तक कि पुरातन ग्रीक से लेकर आधुनिक पश्चिमी भाषाओं के नाटकों को भी समाहित किया है।

इब्राहिम अलकाज़ी ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंगमंडल की स्थापना कर देश के कोने-कोने में नाटकों का प्रदर्शन एक अभियान के रूप में किया। नाटकों के माध्यम से जनमानस के बीच कलात्मकता बिखेरते हुए समाज के प्रति हमारे दायित्व का संदेश भी प्रसारित किया। अलकाज़ी की प्रस्तुतियों में धर्मवीर भारती का ‘अंधायुग’ व गिरीश कर्नाड का ‘तुग़लक़’ का नाम अविस्मरणीय है। दिल्ली के पुराने किले की पृष्ठभूमि में खेले गए बलवंत गार्गी के नाटक ‘सुल्तान रजिया’ ने भी अदभुत आयाम प्रस्तुत किया। विद्यालय की अन्य प्रस्तुतियों में कालिदास, भास, मोहन राकेश, आद्या रंगाचार्य, लक्ष्मीनारायण लाल, बादल सरकार, निर्मल वर्मा तथा विजय तेंदुलकर सहित अन्य बहुत से नाटककारों के नाटकों के माध्यम से क्षेत्रीय भाषाओं की नाट्यानुभुति की संभावनाओं को भी हिन्दी-माध्यम से उजागर किया है। अलकाज़ी के शिष्यों में रंगमंच तथा सिनेमा जगत से जुड़े- ओम शिवपुरी, सुधा शिवपुरी, अनुपम खेर, नसीरुद्दीन शाह, ओमपुरी, मनोहर सिंह, रामगोपाल बजाज, रतन थियम, सई परांजपे, सुरेखा सीकरी, उत्तरा बावकर, रोहिणी हट्टंगडी, वेद राव, नादिरा बब्बर तथा अमाल अल्लाना जैसे अन्य बहुत से प्रतिष्ठित कलाकारों ने अलकाज़ी की आदर्शवादिता, सामाजिक उत्तरदायित्व एवं समर्पण की भावना को अपनी प्रस्तुतियों में दक्षतापूर्वक प्रतिबिम्बित किया है।

नाटकों के अतिरिक्त आधुनिक भारतीय चित्रकला के उत्थान के लिए भी इनका सराहनीय योगदान रहा है। सन्‌ 1950 में मुम्बई में प्रदर्शित 13 प्रदर्शनियों की अविस्मरणीय श्रृंखला इस बात का प्रमाण है। आप आर्ट हैरिटेज नामक गैलरी की संस्थापिका श्रीमती रोशन अलकाज़ी के सान्निध्य में सन्‌ 1940 से ही मुम्बई तथा दिल्ली के विभिन्न कला-आन्दोलनों में सक्रिय रहे। सन्‌ 1977 से अब तक सोमनाथ होरे, तैयब मेहता, एफ.एन.सोज़ा, एम.एफ.हुसैन, अकबर पद्मसी, के. जी. सुब्रमन्यन जैसे प्रख्यात चित्रकारों की 350 से भी अधिक प्रदर्शनियां आयोजित कर चुके हैं। आज भी आर्ट हैरिटेज प्रतिभाशाली कलाकारों को अवसर प्रदानकर गौरवान्वित अनुभव करता है। फोटोग्राफी में भी पारंगत अलकाज़ी आज भी निरंतर कला की सेवा में निःस्वार्थ भाव से जुड़े हुए हैं। वह हमारे देश की सांस्कृतिक एवं कला-जगत की एक अमूल्य निधि हैं।