डॉ. वेणुगोपाल कृष्ण

राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन की 124वीं जयंती के अवसर पर आठवां पं. भीमसेन विद्यालंकार स्मृति ‘हिन्दीरत्न’ सम्मान निष्ठावान हिन्दीसेवी और मलयालम के सुपरिचित रचनाकार डॉ. वेणुगोपाल कृष्ण को श्री कृष्णचंद्र पंत (पूर्व रक्षा मंत्री एवं पूर्व उपाध्यक्ष, योजना आयोग) श्री बनवारीलाल जोशी (उपराज्यपाल, दिल्ली) तथा हिन्दी भवन के अध्यक्ष एवं कर्नाटक के राज्यपाल श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने अपने हाथों प्रदान किया।

अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त सरोदवादिका श्रीमती शरनरानी ने श्री वेणुगोपाल को तिलक लगाया एवं श्रीफल प्रदान किया। समारोह का प्रारंभ हिन्दी भवन के मंत्री डॉ. गोविन्द व्यास के स्वागत भाषण से हुआ। उन्होंने राजर्षि टंडन, हिन्दी भवन और ‘हिन्दीरत्न सम्मान’ के संबंध में संक्षिप्त जानकारी दी।

इस अवसर पर श्री कृष्णचंद्र पंत ने कहा- “श्री वेणुगोपाल मलयालम और हिन्दी भाषा में समान रूप से लेखन कर रहे हैं जो दोनों भाषाओं के बीच सेतु का काम है।” दिल्ली के उपराज्यपाल श्री बनवारीलाल जोशी ने कहा कि “साहित्य के लिए दर्द का अनुभव जरूरी है। अगर शाश्वत साहित्य का सृजन होता रहे तो भाषा की चिंता करने की जरूरत नहीं।” श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने टंडनजी से संबंधित अनेक संस्मरण सुनाए और वेणुगोपाल कृष्ण को ‘हिन्दीरत्न सम्मान’ के लिए बधाई दी।

इनके अलावा टंडनजी के पौत्र डॉ. राकेश टंडन ने अपने दादाजी के मार्मिक संस्मरण सुनाए। एक ओर सांसद उदयप्रताप सिंह ने जहां डॉ. वेणुगोपाल कृष्ण के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के विषय में जानकारी दी, वहीं दूसरी ओर श्रीमती शकुंतला आर्य (पूर्व महापौर, दिल्ली) ने पं. भीमसेन विद्यालंकार की पत्रकारिता से संबंधित सेवाओं से सभी को अवगत कराया।

समारोह का संचालन डॉ. रत्ना कौशिक ने किया तथा आगंतुकों का आभार व्यक्त किया श्री रामनिवास लखोटिया ने। इस अवसर पर राजधानी के गणमान्य साहित्यकार, पत्रकार एवं हिन्दीप्रेमी काफी संख्या में मौजूद थे।

हिन्दीरत्न डॉ. वेणुगोपाल कृष्ण संक्षिप्त परिचय

मलयालम और हिन्दी के विद्वान लेखक डॉ. वेणुगोपाल कृष्ण की बहुआयामी रचनाधर्मिता की पृष्ठभूमि में उनका गहन अध्ययन,अनवरत साधना, मातृभाषा मलयालम के साथ ही राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति उनकी अनन्य प्रतिबद्धता ही है, जिसके कारण वह मलयालम और हिन्दी के बीच सुदृढ़ सेतु का निर्माण करने में सफलता प्राप्त कर सके हैं।

7 जनवरी, 1945 को कुण्णुर (केरल) में जन्मे वेणुगोपाल दक्षिण के हिन्दी साहित्यकारों में ÷वेणु मरुताई’ नाम से प्रसिद्ध हैं। मौलिक सृजन के अलावा भारतीय एवं विदेशी भाषाओं की अनेक उत्तम कृतियों का मलयालम व हिन्दी में भाषान्तर करके डॉ. वेणुगोपाल ने सारस्वत-साधना का परिचय तो दिया ही है, देश की भावात्मक एकता को सुदृढ़ करने में सराहनीय योगदान भी किया है। शिक्षाविद्, कहानीकार, निबंधकार, अनुवादक और संपादक डॉ. वेणुगोपाल कृष्ण की अब तक बारह कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं।

जिनमें प्रमुख हैं :-

1. पन्द्रह भारतीय कहानियां

2. घर

3. आकांक्षाओं का आंगन

4. अवसान के पूर्व

5. पंचामृत

6. नवरंग

7. ‘सप्तसरोज’

आजकल डॉ. वेणु ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त लेखकों की सर्वश्रेष्ठ कहानियों का संचयन कर उनका मलयालम भाषा में अनुवाद करने में व्यस्त हैं। वरिष्ठ रचनाकार श्री विष्णु प्रभाकर के उपन्यास ‘अर्द्धनारीश्वर’ का भी वह मलयालम में अनुवाद कर रहे हैं।

डॉ. वेणु की प्रतिभा का एक विशिष्ट पक्ष फिल्मों में अभिनय है। हिन्दी टेलीफिल्म ‘बहाव’ (मंजु सिंह द्वारा निर्देशित एक कहानी) भारतीय ज्ञानपीठ विजेता ‘तकषि’ की सुविख्यात औपन्यासिक कृति ‘कयर’ पर आधारित सीरियल में भूमिका निभाकर उन्होंने अपनी अभिनय क्षमता का परिचय दिया है।

उनकी साहित्य-सेवा का संज्ञान लेते हुए ‘महाकवि सूरदास सम्मान’, ‘प्रेमचंद स्मृति सम्मान’, ‘विष्णु पराड़कर पुरस्कार’ एवं हिन्दी तथा हिन्दीतर भाषाओं के बीच साहित्यिक विनियम, सौहार्द और समन्वय स्थापित करने के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘सौहार्द सम्मान’ से समलंकृत डॉ. वेणुगोपाल कृष्ण को इस वर्ष हिन्दी भवन पं.भीमसेन विद्यालंकार स्मृति ‘हिन्दीरत्न’ सम्मान से विभूषित कर रहा है।