सन 1998 को पं. भीमसेन विद्यालंकार स्मृति पहला ‘हिन्दी रत्न सम्मान’ दक्षिण भारतीयों को चालीस वर्ष से हिन्दी का शिक्षण देने और हिन्दी-प्रचार करने वाली हिन्दी सेवी तमिलभाषी श्रीमती नामगिरि राजगोपालन को प्रदान किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ राजर्षि टंडन के प्रसिद्ध गीत- ‘एक हृदय हो भारत जननी’ के सुमधुर गायन से हुआ।
<इस सम्मान समारोह की अध्यक्षता हिन्दी-सेवी एवं नागरी प्रचारिणी सभा, काशी के प्रधानमंत्री श्री सुधाकर पाण्डेय ने की। समारोह में ‘हिन्दी भवन’ के संस्थापक मंत्री पं. गोपालप्रसाद व्यास ने आशीर्वचन दिए।/p>
प्रमुख वक्ता पं. भीमसेन विद्यालंकार की सुपुत्री डॉ. शांता मल्होत्रा ने राजर्षि टंडन एवं भीमसेन विद्यालंकार के अंतरंग संबंधों पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर ब्रिटेन में भारत के पूर्व उच्चायुक्त डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी, दिल्ली की पूर्व महापौर श्रीमती शकुंतला आर्य, राजर्षि टंडन के पौत्र श्री विश्वमोहन टंडन तथा पौत्रवधू श्रीमती पूनम टंडन की उपस्थिति उल्लेखनीय थी।
राजर्षि टंडन जयंती एवं प्रथम ‘हिन्दीरत्न सम्मान’ समारोह के अवसर पर प्रख्यात मूर्तिकार पद्मश्री रामसुतार द्वारा निर्मित राजर्षि टंडन की आवक्ष प्रतिमा का अनावरण ‘हिन्दी भवन’ के अध्यक्ष श्री धर्मवीर (आई.सी.एस.) ने किया। इस जीवंत प्रतिमा को गढ़ने के लिए सभी विशिष्टजनों ने श्री रामसुतार की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
इस सम्मान समारोह में दिल्ली के अनेक साहित्यकार, लेखक,पत्रकार,समाज सेवी और हिंदी प्रेमियों की बड़ी संख्या में गरिमामयी उपस्थिति रही।