‘व्यंग्यश्री सम्मान’ 2014 – श्री जवाहर चौधरी

नई दिल्ली। व्यंग्य-विनोद के शीर्षस्थ रचनाकार, वाचिक परंपरा के उन्नायक, अपने समय के प्रतिष्ठित पत्रकार, ब्रज साहित्य के मर्मज्ञ, हिन्दी भवन के संस्थापक एवं हिन्दीसेवी पं. गोपालप्रसाद व्यास की जन्मशती के उपलक्ष्य में आयोजित ‘व्यंग्यश्री सम्मान’ राजधानी के लेखकों, पत्रकारों और राज-समाज सेवियों के बीच वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री जवाहर चौधरी को हिन्दी भवन सभागार में एक भव्य समारोह में प्रदान किया गया।

इस अठारहवें व्यंग्यश्री सम्मान से श्री चौधरी को वरिष्ठ साहित्यकार एवं आलोचक प्रो. नामवर सिंह, विख्यात व्यंग्यकार डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी, सुपरिचित व्यंग्यकार श्री यज्ञ शर्मा, डॉ. शेरजंग गर्ग, हिन्दी भवन की न्यासी गीता चन्द्रन एवं श्री सुनील चोपड़ा ने क्रमशः रजत श्रीफल, प्रशस्ति पत्र, शाल, पुष्पहार, वाग्देवी की प्रतिमा और एक लाख ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह रुपये की राशि देकर विभूषित किया।

हिन्दी साहित्यकार डॉ. शेरजंग गर्ग ने जवाहर चौधरी को बधाई देते हुए कहा कि व्यासजी की जीवंतता अद्‌भुत थी। उनकी रचनाएं, उनकी बातें, उनकी यादें बहुत आती हैं। वह व्यंग्य के शीर्षस्थ हस्ताक्षर होने के साथ-साथ गद्य के शिल्पी थे।

हिन्दी साहित्यकार डॉ. शेरजंग गर्ग ने जवाहर चौधरी को बधाई देते हुए कहा कि व्यासजी की जीवंतता अद्‌भुत थी। उनकी रचनाएं, उनकी बातें, उनकी यादें बहुत आती हैं। वह व्यंग्य के शीर्षस्थ हस्ताक्षर होने के साथ-साथ गद्य के शिल्पी थे।

समारोह के विशिष्ठ अतिथि श्री यज्ञ शर्मा ने व्यासजी को याद करते हुए कहा जवाहर भाई इन्दौर यानी मध्यप्रदेश के निवासी हैं। वही मध्यप्रदेश, जिसे वहां की सरकार हिन्दुस्तान का दिल कहती है। वास्तव में तो मध्यप्रदेश हिन्दुस्तान का व्यंग्य प्रदेश है। मध्यप्रदेश न उत्तर में है, न दक्षिण में। न पूर्व में न पश्चिम में। नहीं-नहीं, इसका यह मतलब नहीं कि मध्यप्रदेश के पास अपनी कोई दिशा नहीं है। असली बात यह है कि मध्यप्रदेश मध्य में है, यानी चारों तरफ से घिरा हुआ है। जो चारों तरफ से घिरा हुआ होगा, वह व्यंग्य नहीं तो और क्या लिखेगा ?

मुख्य अतिथि डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने हास्य-विनोद में मुख्य अतिथि पद की गरिमा और अगरिमा को रेखांकित करते हुए उन्होंने व्यंग्य को थोक के भाव लिखने वालों को आडे हाथों लिया।

वरिष्ठ साहित्यकार एवं आलोचक प्रो. नामवर सिंह ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में व्यंग्य को व्याख्यायित करते हुए कहा कि व्यंग्य में व्यंजना का होना अनिवार्य है। व्यंग्य में जिस पर व्यंग्य किया जाए वह भी उससे आनंदित और प्रसन्न हो तो व्यंग्य सफल हो जाता है।

श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी के सान्निध्य में आयोजित इस समारोह का कुशल संचालन हिन्दी भवन की न्यासी डॉ. रत्ना कौशिक ने किया। उन्होंने व्यासजी को याद करते हुए कहा कि उनका सपना था कि देश की राजधानी में हिन्दी का अपना एक घर हो, उनका सपना ‘हिन्दी भवन’ के रूप में आपके सामने साकार खड़ा है। धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ व्यंग्य कवि एवं हिन्दी भवन के मंत्री डॉ. गोविन्द व्यास ने किया। इस अवसर पर राजधानी के साहित्यकार, पत्रकार, हिन्दीसेवी एवं राज-समाजसेवी काफी संख्या में उपस्थित थे। जिनमें प्रमुख हैं सर्वश्री प्रदीप पंत, प्रेम जनमेजय, सुभाष चन्दर, रोशनलाल अग्रवाल, हरीशंकर बर्मन, रामनिवास जाजू, महेशचन्द्र शर्मा, संतोष माटा, निधि गुप्ता, अतुल प्रभाकर, रघुनंदन शर्मा ‘तुषार’, नूतन कपूर, राजेश चेतन, बालकृष्ण बाली, अनिल जोशी, वीरेन्द्र प्रभाकर,, उषा पुरी, महिमानंदद्विवेदी, सुरेश बिन्दल, सुशीलकुमार गोयल, आशीष कंधवे, अशोक वशिष्ठ हरिसिंह पाल, अरुणा कपूर, अरविन्द कौशिक, भारत भारद्वाज, किशोर कुमार कौशल, रवीन्द्र नागर, निशा भार्गव, भरत तिवारी, प्रभाकिरण जैन तथा बलजीत कौर तन्हा आदि।