हिन्दी हास्य-व्यंग्य के मूर्धन्य लेखक, वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार और कर्मठ एवं समर्पित हिन्दीसेवी पंडित गोपालप्रसाद व्यास का निधन हिन्दी जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। व्यासजी हास्य-व्यंग्य, साहित्य-संस्कृति और हिन्दी भाषा के विलक्षण प्रवक्ता थे। देश-विदेश में उनकी ख्याति हिन्दी हास्य-व्यंग्य के शीर्षस्थ रचनाकारों में होती है। वह पिछले लगभग 70 वर्षों से समाज, संस्कृति, साहित्य और पत्रकारिता के विभिन्न क्षेत्रों में एक कर्मठ, जुझारू, निष्ठावान, साधनाशील एवं उत्प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में सक्रिय रहे। चाहे हिन्दी को जन-जन तक पहुंचाने का भगीरथ प्रयत्न हो अथवा साहित्यिक आयोजनों के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना की अलख जगाने का कार्य, व्यासजी सदैव अग्रणी रहे। वह एक सर्जक साहित्यकार, पैनी राजनीतिक टिप्पणियां करने वाले पत्रकार, व्यंग्य-विनोद को ऊंचा स्थान दिलाने वाले ऐसे रचनाकार थे, जिन्होंने हिन्दी की प्रतिष्ठा को राष्ट्रीय स्वाभिमान और गौरव से जोड़ा तथा राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन से प्रेरणा पाकर दिल्ली में ‘हिन्दी भवन’ जैसे विशाल सांस्कृतिक प्रासाद का निमार्ण किया। व्यासजी अंतिम समय तक लिखते रहे। वह अपने आपमें एक संस्था थे। उनके जैसा कर्मयोगी विरला ही होता है। ऐसे कर्मयोगी को शत्-शत् प्रणाम !
(प्रवीण उपाध्याय, संपादक, आजकल)