हिन्दी व्यंग्य-साहित्य को नया आयाम देने वाले श्री रवीन्द्रनाथ त्यागी को व्यंग्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए दूसरा ‘व्यंग्यश्री’ सम्मान दिया गया। इनका जन्म 1 सितम्बर, 1931 को उत्तरप्रदेश के बिजनौर जिले में नहटौर नामक कस्बे में हुआ। ‘सूखे और हरे पत्ते’, ‘कल्पवृक्ष’, ‘आदिम राग’ (कविता), ‘खुली धूप में नाव पर’,’भित्तिचित्र’, ‘मल्लिनाथ की परंपरा’, ‘कृष्णवाहन की कथा’, ‘देवदार के पेड़’, ‘शोकसभा’ तथा ‘अतिथि कक्ष’ (व्यंग्य-गद्य) श्री त्यागी की चर्चित कृतियां हैं। “व्यंग्यश्री” सम्मान समारोह-1998 में राधेश्याम प्रगल्भ और गोपालराम भावरा ने उत्सवपुरुष ‘व्यासजी का कच्चा चिट्ठा’ खोला तथा अल्हड़ बीकानेरी, सुरेन्द्र सुकुमार, मनोहर मनोज, निशा भार्गव और स्वयं व्यासजी ने श्रोताओं को हास्य-गंगा में गोते लगवाए। समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात कथाकार श्री कमलेश्वर ने कहा-“हास्य-व्यंग्य के लेखकों ने आज के तनावग्रस्त व्यक्ति को बचा लिया, वरना हम गाते-गाते चिल्लाने लगते।” पं. गोपालप्रसाद व्यास ने कहा-“गणेशशंकर विद्यार्थी ने मिस्टर की जगह ‘श्री’ चलाया, ‘अन्तर्राष्ट्रीय’ और ‘सर्वश्री’ जैसे शब्द चलाए,जो चल निकले। आज के पत्रकारों और मीडिया वालों को भी हिन्दी का प्रचलन बढ़ाने और वर्तनी में एकरूपता लाने के दायित्व का निर्वाह करना चाहिए। हिन्दी अखबारों के चलाए चलेगी, विद्वानों के चलाए नहीं।”
पं. गोपालप्रसाद व्यास के जन्म-दिन के अवसर पर मध्याह्न उपराष्ट्रपति भवन में एक संक्षिप्त समारोह का आयोजन भी हुआ। जिसमें व्यासजी की नव्यतम पुस्तक ‘व्यास के हास-परिहास’ की प्रथम प्रति उपराष्ट्रपति कृष्णकांतजी को भेंट की गई। व्यासजी को राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन का सच्चा उत्तराधिकारी बताते हुए उपराष्ट्रपतिजी ने कहा- “हिन्दी का प्रचार-प्रसार केवल भावना के बलबूते नहीं हो सकता। देश के उद्योगपतियों और तकनीकविदों को भी इस काम में योगदान करना चाहिए और दिन-प्रतिदिन के कार्यों में हिन्दी का उपयोग करना चाहिए।” कृष्णकांतजी के विशेष आग्रह पर डॉ. शेरजंग गर्ग ने अपनी एक लोकप्रिय ग़ज़ल पढ़ी। डॉ. गोविन्द व्यास ने ‘व्यास के हास-परिहास’ की भूमिका पढ़कर सुनाई।