श्री धर्मवीर देश की उन विभूतियों में से एक थे जिन्होंने स्वतंत्रता से पूर्व और उसके बाद राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। वह सचमुच इतिहास पुरुष थे। श्री धर्मवीर का जीवन एवं कार्यक्षेत्र वस्तुतः इतना विस्तृत है कि उसे एक वृहद ग्रंथ में ही समेटा जा सकता है। यहां उनका अति संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत हैः-
श्री धर्मवीर का जन्म 20 जनवरी, 1906 को पटियाला में हुआ। आपकी शिक्षा-दीक्षा लखनऊएवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय तथा लंदन स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस में हुई। आप सन् 1930 में आई.सी.एस बने और सन् 1942 तक उत्तरप्रदेश सरकार के विभिन्न पदों पर रहकर कार्य किया। बाद में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आप भारत सरकार द्वारा नवगठित आयात विभाग में उप मुख्य नियंत्रक के पद पर नियुक्त हुए। दिल्ली में विभिन्न सरकारी पदों पर कार्य करने के बाद आप सन् 1945 में भारत के टैक्सटाइल कमिश्नर बनकर मुंबई चले गए।
स्वतंत्रता आगमन के पश्चात नवगठित राष्ट्रीय सरकार के मंत्रिमंडलीय संयुक्त सचिव के रूप में श्री धर्मवीर अक्टूबर सन् 1947 में फिर दिल्ली वापस आए। सन् 1950-51 में आप देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के निजी मुख्य सचिव रहे। इसके बाद आप लंदन में भारत के उच्चायुक्त वाणिज्यिक सलाहकार के पद पर नियुक्त हुए। तत्पश्चात आप चेकोस्लोवाकिया में भारत के राजदूत बने। सन् 1955 के अंत में धर्मवीरजी भारत लौटे और भारत सरकार के पुनर्वास मंत्रालय में सचिव का पदभार संभाला। इस पद पर रहकर आपने पूर्वी तथा पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के पुनर्वास और राहत की जटिल और विषम समस्याओं को कुशलतापूर्वक सुलझाया।
सन् 1962 में आप निर्माण, आवास एवं आपूर्ति मंत्रालय के सचिव नियुक्त हुए और इसके साथ-साथ इन्हें पुनर्वास मंत्रालय के सचिव का अतिरिक्त पदभार भी संभालना पड़ा। इसके बाद कुछ समय के लिए आप दिल्ली के चीफ कमिश्नर रहे और सन् 1964 के अंत में भारत सरकार के केबिनेट सचिव नियुक्त हुए। डॉ. होमी जे. भाभा के दुःखद निधन के बाद कुछ महीनों के लिए आपने परमाणु उर्जा आयोग के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी भी संभाली। सन् 1965 में आप पंजाब के राज्यपाल नियुक्त हुए और आपके कार्यकाल में पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेशों का पुनर्गठन हुआ। इसके बाद आप सन् 1966 में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल नियुक्त हुए। 23 अक्टूबर, 1969 से 31 जनवरी, 1972 तक आप कर्नाटक के राज्यपाल भी रहे। सन् 1977-78 में आपने आई. आई. टी. दिल्ली के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के चेयरमेन की जिम्मेदारी संभाली। श्री धर्मवीर नवम्बर, 1971 से मई, 1981 तक भारत सरकार के राष्ट्रीय पुलिस आयोग के अध्यक्ष पद पर रहे।
श्री धर्मवीर लगभग अठारह वर्षों तक एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ कालेज के कोर्ट ऑफ गवर्नर्स के चेयरमेन रहे। आप विभिन्न प्रतिष्ठित औद्योगिक संस्थानों के सलाहकार, निदेशक या चेयरमेन के रूप में जुड़े रहे। श्री धर्मवीर अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक एवं मानव कल्याण की संस्थाओं से जुड़े हुए थे। उनमें से कुछ प्रमुख संस्थाएं हैं- रामकृष्ण मिशन, श्री अरविंदो सोसायटी, सर गंगाराम अस्पताल, दिल्ली पब्लिक स्कूल, सूरजभान डी. ए. वी. पब्लिक स्कूल, एस. ओ. एस. चिल्ड्रन विलेजेज़ ऑफ इंडिया, आर्य समाज वसंत विहार, श्री पुरुषोत्तम हिन्दी भवन न्यास समिति, देहली चेशायर होम, वर्ल्ड मेमोरियल फंड फॉर डिसास्टर रिलीफ। आप मार्डन स्कूल और दौलतराम गर्ल्स कालेज के चेयरमेन भी रहे। श्री धर्मवीर ने स्वयं अपने गृहनगर बिजनौर (उ. प्र.) में कई शिक्षा संस्थानों की स्थापना की तथा उनका संचालन करते रहे। आप देश में वेद प्रचार तथा वैदिक शिक्षा का देशव्यापी कार्य करने वाली संस्था भारतीय चतुर्धाम वेद भवन न्यास के अध्यक्ष भी थे।
श्री धर्मवीर की खेलों में भी गहरी रुचि थी। जब वे युवा थे तो एक निपुण पर्वतारोही थे और उनकी गोल्फ में गहरी दिलचस्पी थी। आप दिल्ली गोल्फ क्लब के अध्यक्ष भी रहे। श्री धर्मवीर एक सुलेखक भी थे। उन्होंने ‘रेमीनिंसिस ऑफ ए सिविल सर्वेंट’ (अंग्रेजी में) तथा ‘कुछ मोती कुछ सीप’ (हिन्दी में) चर्चित पुस्तकें लिखीं।
श्री धर्मवीर का राष्ट्र और राष्ट्रभाषा के प्रति प्रेम अत्यंत सराहनीय था । आप श्री पुरुषोत्तम हिन्दी भवन न्यास समिति के माननीय अध्यक्ष थे और राजधानी में निर्मित हिन्दी भवन आपकी प्रेरणा और परिश्रम का ही सुफल है। भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा श्री धर्मवीरजी को उनकी देश और समाज-सेवा के लिए पद्मविभूषण से अलंकृत किया गया।
लगभग 95 वर्ष की अवस्था में श्री धर्मवीरजी का देहावसान 16 सितम्बर, 2000 को हुआ।