छोटा हूं जिंदगी से पर मौत से बड़ा हूं
– सोम ठाकुर
हिन्दी कविता की वाचिक परंपरा के उन्नायक एवं हिन्दी भवन के संस्थापक पंडित गोपालप्रसाद व्यास की सातवीं पुण्यतिथि पर सोमवार, 28 मई, 2012 को हिन्दी भवन के खचाखच भरे सभागार में आयोजित ‘काव्ययात्रा : कवि के मुख से’ कार्यक्रम के अंतर्गत गीत, मुक्तक, ब्रज के छंद और बेमिसाल लोकगीतों के वरिष्ठ एवं लोकप्रिय रचनाकार सोम ठाकुर का एकल काव्यपाठ संपन्न हुआ। सोम ठाकुर ने इस काव्य संध्या में सभागार में उपस्थित सभी काव्यप्रेमी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कतरे से समन्दर तक गुमनाम सिलसिला हूं,
ताड़े हजार बंधन पर कैद में रहा हूं।
कद नापने को मेरा बेचैन आसमां है,
छोटा हूं जिंदगी से पर मौत से बड़ा हूं।
इतना ज्यादा मत हंसना मेरे मन,
जो अनबरसा रह जाए सावन घन।
यदि जीवन मुस्कानों के हाथ बिका,
आंसू का कौन करेगा अभिनंदन।
वह मीरा जो विष पीकर अमर हुई,
पहले उसने सब खुशियां पी लीं थी।
कविता जिसके अधरों पर जन्मी थीं,
कहते हैं उसकी आंखे गीली थीं।
भाषाएं सभी मूक हो जाएगी,
कला को जो दिखलाया दर्पण॥
क्या बतलाएं हमने कैसे सांझ सवेरे देखे हैं,
सूरज के आसन पर बैठे घने अंधेरे देखे हैं।
पर्वत,सागर,बिजली,बादल,गर्जन,गुंजन, मिले-जुले,
‘सोम’ कभी क्या तूने बिखरे बाल निराला देखे हैं।
सागर चरण पखारे, गंगा शीश चढ़ावे नीर,
मेरे भारत की माटी है चंदन और अबीर।
सौ-सौ नमन करूं मैं भैया, सौ-सौ नमन करूं।
मंगल भवन अमंगलहारी के गुण तुलसी गावे,
सूरदास का श्याम रंगा मन अनत कहां सुख पावे।
जहर का प्याला हंसकर पी गई, प्रेम दीवानी मीरा
ज्यों की त्यों रख दीनी चदरिया, कह गए दास कबीर।
सौ-सौ नमन करूं मैं भैया, सौ-सौ नमन करूं।
फूटे रंग मौर के बन में, खोले बंद किवड़िया,
हरी झील में छप-छप तैरें मछरी सी किन्नरिया।
लहर-लहर में झेलम झूमे, गावे मीठी लोरी,
पर्वत के पीछे नित सोहे, चंदा सा कश्मीर।
सौ-सौ नमन करूं मैं भैया, सौ-सौ नमन करूं।
करते हैं तन-मन से वंदन, जन-गण-मन की अभिलाषा का,
अभिनंदन अपनी संस्कृति का, आराधन अपनी भाषा का।
यह अपनी शक्ति सर्जना के माथे की है चंदन रोली,
मां के आंचल की छाया में हमने जो सीखी है बोली
यह अपनी बंधी हुई अंजुरी ये अपने गंधित शब्द सुमन
यह पूजन अपनी संस्कृति का यह अर्चन अपनी भाषा का।
यह ऊंचाई है तुलसी की यह सूर-सिंधु की गहराई,
टंकार चंद वरदाई की यह विद्यापति की पुरवाई
जयशंकर की जयकार निराला का यह अपराजेय ओज
यह गर्जन अपनी संस्कृति का यह गुंजन अपनी भाषा का।
समारोह के प्रारंभ में हिन्दी भवन के प्रबंधक श्री सपन भट्टाचार्य ने विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ कवि एवं पूर्व सांसद श्री उदयप्रताप सिंह का संक्षिप्त परिचय दिया तथा हिन्दी भवन की न्यासी एवं प्रसिद्ध नृत्यांगना पद्मश्री गीता चन्द्रन, इन्दिरा मोहन, हरीशंकर बर्मन, संतोष माटा एवं निधि गुप्ता ने क्रमशः शाल, प्रतीक चिह्न, सम्मान राशि प्रदान कर श्री सोम ठाकुर एवं श्री उदयप्रताप सिंह का पुष्पगुच्छ देकर अभिनन्दन किया।
हिन्दी भवन के अध्यक्ष एवं कर्नाटक के पूर्व राज्यपाल श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी के सान्निध्य में आयोजित इस काव्य-संध्या में सोमजी का काव्यपाठ सुनने के लिए राजधानी के अनेक कवि, लेखक, पत्रकार और बुद्धिजीवी भारी संख्या में मौजूद थे। जिनमें प्रमुख हैं हिन्दी भवन के मंत्री डॉ. गोविन्द व्यास, सर्वश्री अशोक चक्रधर, राजनारायण बिसारिया, कुंवर नारायण, दीक्षित दनकौरी, रामनिवास जाजू, शीला झुनझुनवाला, रमा पाण्डे, रत्ना कौशिक, वीरेन्द्र प्रभाकर, उषा पुरी, ममता आशुतोष, किशोर कुमार कौशल, प्रभा जाजू, राज हिमानी, रमाशंकर दिव्यदृष्टि, गिरीश भालवर, बृजमोहन शर्मा, सर्वेश चंदौसवी, नमिता राकेश आदि।