कल भी था और आज भी है
-शिवकुमार अर्चन
बुधवार, 20 मार्च, 2013 को एक सुरुचिपूर्ण काव्य-संध्या का सफल आयोजन हिन्दी भवन द्वारा अपने ही सभागार में किया गया। इस काव्य-संध्या में देश भर के शहरों एवं कस्बों से पधारे ऐसे कवियों ने काव्यपाठ किया, जिनको राजधानी के लोगों ने बहुत कम सुना है। इस काव्य-संध्या में पधारे कवियों ने अपने काव्यपाठ से खचाखच भरे सभागार में उपस्थित श्रोताओं को अंत तक बैठने पर विवश कर दिया।
सुप्रसिद्ध गीतकार श्री संतोषानन्द की अध्यक्षता में आयोजित इस काव्य-संध्या का प्रारंभ गाजियाबाद से पधारी कवयित्री अंजु जैन की सरस्वती वंदना से हुआ। अपने काव्यपाठ से अंजु जैन ने इस गीत पर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया-
कितनी घोर निराशा हो पर आशाएं गाया करती,
मरुथल में भी सजल बदलियां कभी-कभी छाया करती
पतझर आ जाने के डर से फूल खिलाना क्यूं छोडे।
ऐसा मौसम है हम बोल सकते नहीं
बन विरोधी भी मुंह खोल सकते नहीं
फैल फिर से है शोषण का कोहरा रहा
जैसे इतिहास खुद को ही दोहरा रहा
यानि फिर से गुलामी के घन छान गए
हम जहां से चले थे वहीं आ गए।
अनुचित करनी पर मौन रहें
सब के सब दागी होते हैं।
करते अन्याय समर्थन जो,
अपयश के भागी होते हैं।
सतयुग-त्रेता-द्वापर-कलयुग
हर युग का इतिहास रहा।
आदर्शों को देश निकाला,
कल भी था और आज भी है।
मेहनत के हाथों पर छाला
कल भी था और आज भी है।
उनके मुंह से दूर निवाला
कल भी था और आज भी है॥
दिल में उल्फत संभालकर रखना ये इबादत संभालकर रखना,
लोग नफरत संभाले बैठे हैं
तू मोहब्बत संभाल कर रखना।
महाकाव्य हम बन न सके
हम बने महज मुक्तक।
अपनी चर्चा होगी ज्यादा
से ज्यादा कल तक।
तुम्हारे पास आता हूं तो सांसें भीग जाती हैं,
मुहब्बत इतनी मिलती है के आंखें भीग जाती हैं।
इस मिलावट के हमने, ऐसे ऐसे चमत्कार भुगते हैं,
काली मिर्च बोओ तो, पपीते उगते हैं।
अब ना रहे वो रांझे
अब ना रही वो हीर
जमाना बदल गया है।
हिन्दी भवन के अध्यक्ष श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी के सान्निध्य में आयोजित इस काव्य-संध्या की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए हिन्दी भवन के मंत्री एवं सुप्रसिद्ध व्यंग्य कवि डॉ. गोविन्द व्यास ने कहा कि हिन्दी भवन का यह सदैव प्रयास रहता है कि काव्य-संध्या में उन कवियों को बुलाया जाए जो लिखते बहुत अच्छा हैं, मगर राजधानी में ना के बराबर बुलाए जाते हैं। इस काव्य-संध्या का कुशल संचालन राजेश चेतन ने किया।
इस काव्य संध्या के प्रारंभ में गांधीवादी लेखक एवं यात्रा वृत्तांतों के सिद्धहस्त रचनाकार स्व. श्री यशपाल जैन की जन्मशती वर्ष पर उनके तैलचित्र का भी अनावरण किया गया।
काव्य संध्या में सदैव की भांति राजधानी के साहित्यकार, पत्रकार, बुद्धिजीवी एवं समाजसेवी भारी संख्या में उपस्थित थे।