हिंदी भवन में श्री बलबीर सिंह ‘रंग’ जी की जन्मशती पर रंग काव्य महोत्सव ‘हमने जो भोगा सो गाया’
14 नवंबर को प्रसिद्ध कवि एवं गीतकार स्वर्गीय श्री बलबीर सिंह ‘रंग’ जी की जन्मशती के अवसर पर हिन्दी भवन नई दिल्ली में ‘रंग काव्य महोत्सव’ का आयोजन किया गया । श्री बलवीर सिंह ‘रंग’ उस जमाने के प्रसिद्ध गीतकार हैं जब स्वर्गीय श्री रमानाथ अवस्थी, स्वर्गीय श्री रामावतार त्यागी, स्वर्गीय श्री नीरज, स्वर्गीय श्री हरिवंशराय बच्चन, स्वर्गीय श्री भारत भूषण, स्वर्गीय श्री मुकुट बिहारी सरोज तथा श्री शिशु पाल सिंह शिशु जैसे ख्यातनाम गीतकारों के नाम नहीं उभरे थे । इनमें से अधिकतर या लगभग सभी ने श्री ‘रंग जी के साथ मंच पर काव्य पाठ किया है।
नीरज जी के प्रसिद्ध गीत ‘कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे’ तथा बच्चन जी के गीत ‘ इस पार प्रिये मधु है तुम हो उस पार न जाने क्या होगा ‘ के लोगों की जुबान पर चढने से काफी पहले रंग जी का गीत ‘ तुम्हारी शपथ मैं तुम्हारा नहीं हूँ, भटकती लहर हूँ किनारा नहीं हूँ ‘ लोगों के मन में अपनी पैठ बना चुका था ।
रंग जी के मुख से गीत मानो स्वयं प्रस्फुटित होते थे, इसके लिए उन्हें कोई प्रयास करने की आवश्यकता नहीं थी जैसा कि उन्होंने खुद भी कहा है कि-
हमने जो भोगा सो गाया
अकथनीयता को दी वाणी
वाणी की भाषा कल्याणी
कलम -कमण्डल लिए हाथ में
दर-दर अलख जगाया
हमने जो भोगा सो गाया ……
हिंदी भवन में आयोजित हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता हिमाचल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति आचार्य अरुण दिवाकर नाथ वाजपेयी जी द्वारा की गई । वाजपेयी जी ने, न केवल रंग जी को साक्षात सुना है, बल्कि वे उनके शिष्य तथा विशेष प्रशंसकों में से एक हैं । रंग जी पर लिखा गया अपना एक आलेख ‘ हाँ, बलबीर से बातें की हैं’ भी इस अवसर पर प्रो. वाजपेयी ने लोगों के बीच वितरित किया तथा रंग जी के एक गीत से भी उन्हें याद किया कि ‘ जो मरण को जन्म समझे, मैं उसे जीवन कहूँगा । रंग जी के साथ मंच साझा करने वाले डॉ. कुँअर बेचैन तथा डॉ. शिव ओम् ‘अम्बर’ ने अपनी यादों के पिटारे में से रंग जी के अनेक मनोरंजक संस्मरण लोगों को सुनाए ।
डॉ. विष्णु सक्सेना तथा श्री बलराम श्रीवास्तव जी ने मधुर गीतों से श्री रंग जी को काव्यांजलि दी ।
हिंदी भवन के मंत्री डॉ. गोविन्द व्यास भी अनेक बार रंग जी के साथ काव्य मंचों पर उपस्थित रहे हैं, उन्होंने बताया कि रंग जी में अपनी प्रसिद्धि को लेकर जरा सा भी कहीं कोई गुमान नहीं था बल्कि वे सदैव युवा कवियों को आगे बढने के लिए प्रोत्साहित किया करते थे । दूर-दूर के गाँवों तक कई बार पैदल यात्रा करके जाते तथा वहाँ पर काव्य पाठ करते थे, ऐसे संत स्वभाव के कवि की जन्मशती का आयोजन हिंदी भवन के लिए एक विशेष महत्वपूर्ण अवसर है, हम सभी को उनके सादा जीवन व कर्म और कला के प्रति उनकी समर्पण भावना से प्रेरणा लेनी चाहिए ।
प्रसिद्ध गायक श्री जितेन्द्र सिंह एवं उनके साथियों ने इस अवसर पर रंग जी के अनेक गीतों तथा गजलों को मधुर स्वर तथा संगीत प्रदान किया । श्रोताओं ने उत्साह पूर्वक इसका भरपूर आनंद लिया । कार्यक्रम का संचालन श्री चिराग जैन द्वारा किया गया ।
रंग जी ने गीतों के साथ-साथ हिंदी में गजल भी लिखीं हैं और हिंदी में गजल कहने वाले वे संभवतः सबसे प्रारंभ के व्यक्तियों में से एक थे । श्री रंग जी को एक गीतकार होने से कहीं अधिक अपने एक किसान होने पर गर्व था, अपने कविता संग्रह ‘सिंहासन’ में उन्होंने लिखा है कि – ” मैं परंपरागत किसान हूँ, धरती के प्रति असीम मोह और पूज्य भावना किसान का जन्मजात गुण है, यही उसकी शक्ति है और यही उसकी निर्बलता । मैं स्वीकार करता हूँ कि मुझमें भी यही संस्कार सबसे प्रबलतम रूप में रहा है, आज भी है । ग्रामीण जीवन की वेदनाएँ, विषमताएँ और हास-विलास दोनों ही मेरी कविता की प्रेरणा और पूँजी हैं ।
हमने तनहाई में जंजीर से बातें की हैं
अपनी सोई हुई तकदीर से बातें की हैं
‘रंग’ का रंग जमाने ने बहुत देखा है
क्या कभी आपने बलबीर से बातें की हैं ।
रंग जी ‘संबल’ के सहारे जीने वाले लोगों में से एक थे,
उनका कहना था कि आशाएँ टूट जाया करती हैं पर ‘विश्वास’ निरंतर हमें हौसला देता रहता है
अब मुझको तुमसे मिलने की, आशा कम विश्वास बहुत है ।
क्या चिंता धरती यदि छूटी, उड़ने को आकाश बहुत है ।
अंत समय तक लिखते रहने वाले इस कवि ने जीवन और मृत्यु को समान रूप से लिया, कहते हैं कि मृत्यु शय्या पर पड़े हुए पास की दीवार पर कोयले से उन्होंने यह कविता लिखी कि –
करो मन चलने की तैयारी
आए हो तो जाना होगा
शाश्वत नियम निभाना होगा
सूरज नित्य किया करता है, ढलने की तैयारी
करो मन चलने की तैयारी ।
हम से कोई तंग न होगा
महफिल होगी ‘रंग’ न होगा
गंगा के तट पर धूं-धूं कर जलने की तैयारी
करो मन चलने की तैयारी ।