भारत के लाड़ले नेता, लोकप्रिय प्रधानमंत्री भारतरत्न लालबहादुर शास्त्री हिन्दी भवन के संस्थापक अध्यक्ष थे। शास्त्रीजी की जन्मशती का समापन समारोह हिन्दी भवन के तत्वावधान में 1 अक्टूबर, 2005 को बड़ी धूमधाम से संपन्न हुआ। समारोह का उदघाटन कर्नाटक के राज्यपाल एवं हिन्दी भवन के अध्यक्ष श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने किया। मुख्य अतिथि थे दिल्ली के उपराज्यपाल श्री बनवारीलाल जोशी। इस अवसर पर पूर्व प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथप्रताप सिंह केसाथ-साथ शास्त्रीजी के परिवार से उनकी पुत्रवधू श्रीमती विभा शास्त्री, उनके पुत्र श्री अनिल शास्त्री और सुनील शास्त्री विशेष रूप से उपस्थित थे। इस अवसर आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में शास्त्रीजी को देश के ख्यातिनाम कवियों ने अपनी काव्यांजलि अर्पित की। जिसकी अध्यक्षता की मशहूर शायर डॉ. बशीर बद्र ने और सान्निध्य रहा डॉ. ब्रजेन्द्र अवस्थी का। जिन कवियों ने शास्त्रीजी को कविता के माध्यम से अपनी भावांजलि अर्पित की उनके नाम हैं- सर्वश्री बालस्वरूप राही (दिल्ली), मधुर शास्त्री (दिल्ली), अदम गोंडवी (गोंडा), आत्मप्रकाश शुक्ल (एटा), ओमप्रकाश आदित्य (दिल्ली), धर्मपाल अवस्थी (कानपुर), मंजर भोपाली (भोपाल), कृष्ण मित्र (गाजियाबाद), जमुनाप्रसाद उपाध्याय (फैजाबाद), अंसार कंबरी (कानपुर), ओमनारायण शुक्ल (कानपुर), देवल आशीष (लखनऊ), सर्वेश चंदौसवी (दिल्ली), वागीश दिनकर (पिलखुआ), राजेश चेतन (दिल्ली)। इस राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का संचालन श्री शिवओम अम्बर (फर्रूखाबाद) ने किया। लालबहादुर शास्त्री जन्मशती के अवसर पर शास्त्रीजी के विचारों को विशेष रूप से रेखांकित किया गया जो इस प्रकार हैं-
• मेरे विचार से पूरे देश के लिए एक संपर्क भाषा का होना आवश्यक है, अन्यथा इसका तात्पर्य यह होगा कि भाषा के आधार पर देश का विभाजन हो जाएगा। एक प्रकार से एकता छिन्न-भिन्न हो जाएगी…….. भाषा एक ऐसा सशक्त बल है, एक ऐसा कारक है जो हमें और हमारे देश को एकजुट करता है। यह क्षमता हिन्दी में है।
• हमारा रास्ता सीधा और स्पष्ट है। अपने देश में सबके लिए स्वतंत्रता और संपन्नता के साथ समाजवादी लोकतंत्र की स्थापना और अन्य सभी देशों के साथ विश्व शांति और मित्रता का संबंध रखना।
• जब स्वतंत्रता और अखंडता खतरे में हो, तो पूरी शक्ति से उस चुनौती का मुकाबला करना ही एकमात्र कर्त्तव्य होता है……….. हमें एक साथ मिलकर किसी भी प्रकार के अपेक्षित बलिदान के लिए दृढ़तापूर्वक तत्पर रहना है।
• मुझे ग्रामीण क्षेत्रों, गांवों में, एक मामूली कार्यकर्ता के रूप में लगभग पचास वर्ष तक कार्य करना पड़ा है, इसलिए मेरा ध्यान स्वतः ही उन लोगों की ओर तथा उन क्षेत्रों के हालात पर चला जाता है। मेरे दिमाग में यह बात आती है कि सर्वप्रथम उन लोगों को राहत दी जाए। हर रोज, हर समय मैं यही सोचता हूं कि उन्हें किस प्रकार से राहत पहुंचाई जाए।
• यदि लगातार झगड़े होते रहेंगे तथा शत्रुता होती रहेगी तो हमारी जनता को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। परस्पर लड़ने की बजाय हमें गरीबी, बीमारी और अज्ञानता से लड़ना चाहिए। दोनों देशों की आम जनता की समस्याएं, आशाएं और आकांक्षाएं एक समान हैं। उन्हें लड़ाई-झगड़ा और गोला-बारूद नहीं, बल्कि रोटी, कपड़ा और मकान की आवश्यकता है।
लालबहादुर शास्त्री जन्मशती पर आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन “शास्त्रीजी हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रति सदैव निष्ठावान रहे। शास्त्रीजी असाधारण व्यक्तित्व के धनी थे, उर्जावान थे, देश के जन-जन के प्रति उनके मन में अपनापन था। जब शास्त्रीजी प्रधानमंत्री थे तब मैं उनकी सुरक्षा में था। मुझे शास्त्रीजी ने बुलाया और कहा कि मुझसे मिलने गांव के साधारण लोग आते हैं जो सीधे-सादे वस्त्र पहने होते हैं। कहीं आपके सुरक्षाकर्मी उन्हें टालने न लग जाएं। स्टाफ को भलीभांति समझा देना। एक अदने से अदने ग्रामीण व्यक्ति के प्रति शास्त्रीजी के मन में स्नेह की भावना थी।”
ये विचार दिल्ली के उपराज्यपाल श्री बनवारीलाल जोशी ने हिन्दी भवन के संस्थापक अध्यक्ष भारतरत्न लालबहादुर शास्त्री की जन्मशती के समापन की पूर्व संध्या पर हिन्दी भवन द्वारा आयोजित ‘राष्ट्रीय कवि सम्मेलन’ में व्यक्त किए। शास्त्रीजी की स्मृति को समर्पित इस ‘राष्ट्रीय कवि सम्मेलन’ में पूर्व प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की उपस्थिति महत्वपूर्ण थी।
कवियों की जिन पंक्तियों को श्रोताओं ने करतल ध्वनि से सराहा वे आपके लिए प्रस्तुत हैं-