सुभद्राकुमारी चौहान

राष्ट्रीय चेतना की संवाहिका, स्वतंत्रता सेनानी एवं हिन्दी की ओजस्वी रचनाकार सुभद्राकुमारी चौहान की जन्मशती हिन्दी भवन द्वारा 23 दिसम्बर, 2004 को मनाई गई। समारोह की अध्यक्षता सुभद्राजी के निकटस्थ एवं पूर्व सांसद जबलपुर से पधारे प्रो. महेशदत्त मिश्र ने की। प्रमुख वक्ता थे -सर्वश्री निर्मला जैन, कृष्ण कुमार, श्रीश कुमार और अजित कुमार। समारोह का संचालन डॉ. आशा जोशी ने किया।

सुभद्राजी की कविता की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि उसमें एक तरह की बेलौस उर्जा है, रत्नों की तरह शब्दों को उन्होंने जड़ दिया है और काव्य-शास्त्र के सारे बंधनों का पूरी शक्ति के साथ अनुपालन किया है। उनकी कविताओं में भावना का जोश है। शास्त्रीय और लोक परंपराओं को उन्होंने बड़ी निष्ठापूर्वक निर्वाह किया।” ये उद्गार हैं एन. सी. आर. टी. के निदेशक प्रो. कृष्णकुमार के जो उन्होंने हिन्दी भवन में आयोजित सुभद्रा कुमारी चौहान जन्मशती समारोह में व्यक्त किए। ‘झांसी की रानी’ कविता का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि “रानी का बचपन, रानी का विवाह और रानी के पति की मृत्यु ये तीनों चीजें आरंभ की प्रथम पांच पंक्तियों में ही आ जाती हैं। इस प्रकार उनकी कविताओं में गति और भाषा हममें अभिमान जगाती है।”

‘ समारोह के अध्यक्ष तथा गांधीजी के निजी सचिव एवं पूर्व सांसद 92 वर्षीय वयोवृद्ध प्रो. महेशदत्त मिश्र ने सुभद्राजी की बेटी की पुस्तक ‘मिला तेज से तेज’ को प्रत्येक व्यक्ति को पढ़ने की सलाह देते हुए कहा कि, “सरदार पटेल ने 1952 के चुनाव के बाद सुभद्रा तथा उनके पति दोनों को पद देकर सम्मानित करने की बात कही थी।” अपना पूरा जीवन राजनीति में बिताने को लेकर प्रो. मिश्र ने कहा-

राजनीति ने निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के।

कवि व प्रखर आलोचक प्रो. अजित कुमार ने जहां सुभद्राजी की कविताओं पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ‘झांसी की रानी’ कविता लोगों के कंठ का हार बन गई।” वहीं प्रो. निर्मला जैन ने कहा कि, “सुभद्राकुमारी की अन्य सभी रचनाएं “झांसी की रानी’ की भेंट चढ़ गईं। दलितों की पूरी दुनिया है सुभद्राजी की कहानियों में जिसकी ओर अधिक ध्यान नहीं दिया गया।” उन्होंने आगे कहा कि “सुभद्राजी की रचनाओं में सरलता की रचनात्मकता और गंभीरता एक साथ देखने को मिलती है, जो बड़ा कठिन काम है। स्वतंत्रता आंदोलन की पूरी-पूरी समझ सुभद्राजी की कविताओं में दृष्टिगोचर होती है। उनका पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय मन आदर्श आचरण का विश्वास दिलाता है।”

जबलपुर से पधारे प्रो. श्रीश कुमार ने इस अवसर पर सुभद्राजी के जीवन पर एक जीवंत आलेख प्रस्तुत किया और उनके काव्य-संग्रह ‘मुकुल’ का हवाला देते हुए कहा कि, “जैनेन्द्रजी ने एक बार कहा था कि सुभद्राजी की गरिमा उनके अभावों में भी राजसी थी।”

हिन्दी भवन के मंत्री डॉ. गोविन्द व्यास ने सभी आगंतुकों का आभार व्यक्त किया।

सुभद्राकुमारी चौहान का संक्षिप्त परिचय-

‘सुभद्राकुमारी चौहान मूलतः राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना की कवयित्री थीं। सुभद्राजी का जन्म सन्‌ 1904 में प्रयाग के निहालपुर मुहल्ले में हुआ था। विद्यार्थी जीवन प्रयाग में बीता। विवाह वकील ठाकुर लक्ष्मण सिंह से हुआ। बाल्यकाल से ही साहित्य में रुचि थी। आपने प्रथम रचना 15 वर्ष की आयु में लिखी थी। राष्ट्रीय आंदोलन में निरंतर सक्रिय भाग लेती रहीं। कई बार जेल गईं। काफी दिनों तक मध्यप्रांत असेम्बली की कांग्रेस सदस्या रहीं। देश की एक जागरूक नारी के रूप में साहित्य और राजनीति में समान रूप से भाग लिया।

सुभद्राजी मूलतः कवयित्री थीं। उनकी कविताओं के दो रंग थे- राष्ट्रीय एवं पारिवारिक। सरलता, सहजता व प्रवाह उनकी कविताओं का विशेष गुण है। ओज गुण से भरपूर उनकी ‘झांसी की रानी’ कविता को अंग्रेजी सरकार ने जब्त कर लिया था, लेकिन यह अकेली कविता उनकी कीर्ति का प्रतिमान है। उनकी कविताएं ‘त्रिधारा’ व ‘मुकुल’ में संकलित हैं। उनके दो कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए- ‘उन्मादिनी’ व ‘बिखरे मोती’। कुछ अच्छे निबंध भी लिखे। कहानियों पर उन्हें हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से दो बार सेक्सरिया पुरस्कार भी मिला।