गत दिवस हिन्दी भवन एवं हंसाक्षर के संयुक्त तत्वावधान में ‘राजेन्द्र यादव स्मृति सभा’ का आयोजन किया गया। हिन्दी भवन में हुई इस स्मृति सभा में हिन्दी के साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों समेत युवा लेखक भी काफी संखया में शामिल हुए।
कवि अशोक वाजपेयी ने उन्हें याद करते हुए कहा कि लेखक दो तरह के होते हैं। एक वे जो सिर्फ लिखते हैं, दूसरे वे जो अपने लेखों से दूसरों को तो प्रभावित करते ही हैं साथ ही प्रेरित भी करते हैं।
वरिष्ठ आलोचक डॉ. निर्मला जैन ने राजेन्द्र यादव को अपना राजदार और बहुरंगी व्यक्तित्व का धनी बताते हुए उनसे संबंधित अनेक संस्मरण सुनाए।
लंबे समय तक यादवजी की सहयोगी रहीं अर्चना वर्मा ने कहा कि उनके साथ काम करना इसलिए अनूठा अनुभव रहा कि उन्होंने कभी बॉस बनने की कोशिश नहीं की बल्कि अपने सहकर्मियों को ही बॉस बनाकर उनसे ज्यादा से ज्यादा काम करवा लेते थे।
कथाकार संजीव ने कहा कि उनके न होने का गम देश के हजारों रचनाकारों को हैं। इस अवसर पर बांग्ला लेखिका तसलीमा नसरीन और कवि अजित कुमार के शोक संदेशों का वाचन किया गया।
इनके अतिरिक्त राजेन्द्र यादवके मित्र टी.एम.ललानी, एन.आर.शर्मा एवं भगवान सिंह ने भी उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं का जिक्र किया। हंस के कार्यकारी संपादक संगम पांडेय एवं यादवजी की सुपुत्री रचना यादव ने आश्वस्त किया कि भविष्य में भी हंस पत्रिका अपनी परंपरा का निर्वाह करती रहेगी।
कबीर के भजनों से प्रारंभ इस स्मृति सभा का संचालन हिन्दी भवन के मंत्री डॉ. गोविन्द व्यास ने कर इसका दायित्व श्री विवेक मिश्र को सौंप दिया।