हिन्दी हास्य-व्यंग्य के उत्कृष्ट कवि स्व. ओमप्रकाश आदित्य की स्मृति में एक स्मृति सभा का आयोजन बुधवार, 10 जून, 2009 को हिन्दी भवन के तत्वावधान में किया गया। अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए दिल्ली की स्वास्थ्य मंत्री डॉ. किरण वालिया ने कहा कि आदित्यजी आम आदमी के कवि थे। उनके नाम पर मालवीय नगर की किसी सड़क का नाम रखने के लिए वे हरसंभव प्रयास करेंगी। प्रसिद्ध कवयित्री एवं सांसद प्रभा ठाकुर ने उन्हें अपनी शैली का अनूठा कवि बताया। कवि और पूर्व सांसद उदयप्रताप सिंह ने कहा कि आदित्य हास्यकवि होते हुए छंद और भाषा के प्रति बेहद गंभीर थे। कवि अशोक चक्रधर ने कहा कि काव्यमंच पर आदित्यजी की क्षतिपूर्ति नहीं हो सकती। दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष महेशचन्द्र शर्मा ने अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए सम्मेलन की ओर से प्रतिवर्ष किसी हास्यकवि को “आदित्य पुरस्कार” से सम्मानित करने की घोषणा की। प्रसिद्ध गीतकार कुंवर बेचैन ने कहा कि उन्हें छंद-शास्त्र का पूर्ण ज्ञान था। वे किसी पर हंसते नहीं थे, बल्कि सबके साथ-साथ हंसते थे। स्मृति सभा के संचालक हास्यकवि सुरेन्द्र शर्मा ने कहा कि आदित्य अपनी रचनाओं के माध्यम से आज भी जीवित हैं। प्रसिद्ध गीतकार संतोषानंद ने कहा कि आदित्य मेरी 50 साला काव्ययात्रा का सहयात्री ही नहीं, मेरा हमराज़ भी था। हिन्दी भवन के मंत्री और व्यंग्य कवि गोविन्द व्यास ने अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हुए कहा कि आदित्य साठ के दशक से मेरे साथ-साथ रहे। उनका प्रारंभिक जीवन बड़े अभावों में बीता, लेकिन अभावों ने उन्हें कुंठित नहीं किया। वे बड़े अध्ययनशील कवि थे। कवि बालस्वरूप राही ने बताया कि आदित्यजी छात्र जीवन से ही हास्यरस की कविताएं लिखने लगे थे। उन्होंने मंच पर छंद को प्रतिष्ठा दिलाई। हास्यरस की कवयित्री सरोजिनी प्रीतम ने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा कि कार दुर्घटना में आदित्यजी का निधन हास्य-जगत के लिए एक बड़ी दुर्घटना है। उनकी मृत्यु से हास्य का हा हाहाकार में बदल गया।
इस स्मृति सभा में गोपालदास नीरज, लालकृष्ण आड़वाणी, बालकवि बैरागी, हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्रसिंह हुड्डा, छत्तीसगढ़ के शिक्षामंत्री लोकनारायण अग्रवाल द्वारा प्रेषित शोक-संदेश संचालक कवि सुरेन्द्र शर्मा ने पढ़कर सुनाए। इस अवसर पर हिन्दी अकादमी के पूर्व सचिव नानक चन्द, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, वीरेन्द्र प्रभाकर, राजेश चेतन, कुमार विश्वास, प्रवीण आर्य, महेन्द्र अजनबी, मधुमोहिनी उपाध्याय, अनिल जोशी, कृष्ण मित्र,महेन्द्र शर्मा, नूतन कपूर, सरिता शर्मा, कीर्तिकाले, गजेन्द्र सोलंकी, प्रवीण शुक्ल, सर्वेश चंदौसवी, स्नेहा चक्रधर, सुभाष वशिष्ठ, सतीश सागर, अलका सिन्हा, हरी बर्मन एवं रत्ना कौशिक आदि ने भी अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए।
इस अवसर पर मूर्धन्य रंगकर्मी हबीब तनवीर के साथ-साथ हास्यकवि नीरज पुरी और ओज के सशक्त कवि लाड़सिंह गुर्जर को भी श्रद्धांजलि दी गई। इस स्मृति सभा में राजधानी के अनेक कवि, लेखक, पत्रकार, रंगकर्मी एवं साहित्यप्रेमी सैकड़ों की संख्या में उपस्थित थे। इस स्मृति सभा के अंत में हिन्दी भवन की ओर से देवराजेन्द्र ने शोक-प्रस्ताव पढ़े जो इस प्रकार हैं-
शोक प्रस्ताव (स्व. ओमप्रकाश आदित्य)
दुख दिए तूने, मैंने कभी न शिकायत की,
सुख दिए तूने, सुख लिए जा रहा हूं मैं।
मौत का बुलावा जब भेजेगा तो आ जाऊंगा,
तूने कहा जिए जा तो जिए जा रहा हूं मैं।
यह कविता है जो प्रसिद्ध हास्यकवि ओमप्रकाश आदित्य ने अंतिम बार रविवार की रात मध्यप्रदेश के विदिशा में बेतवा उत्सव के दौरान कवि सम्मेलन में पढ़ी थी। किसको पता था कि इन पंक्तियों के रचयिता आदित्यजी अगली सुबह इस दुनिया में नहीं रहेंगे !
हास्य-व्यंग्य के उत्कृष्ट और लोकप्रिय कवि ओमप्रकाश आदित्य का कार दुर्घटना में आकस्मिक निधन होने से हिन्दी काव्यमंच का एक उज्ज्वल नक्षत्र टूटकर बिखर गया। 73 वर्षीय आदित्यजी को हास्य के क्षेत्र में ‘काका हाथरसी सम्मान’, ठिठोली, अट्टहास, टेपा, हास्य शिरोमणि सहित अनेक छोटे-बड़े सम्मानों से नवाजा गया था। साहित्य के इस पुरोधा ने विश्व के लगभग सभी बड़े राष्ट्रों में हिन्दी और देश का नाम रोशन किया।
राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा और प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने उनकी उत्कृष्ट हास्य-कविताओं के लिए उन्हें सम्मानित किया। उनकी छंदोबद्ध हास्य-कविताएं श्रोताओं को इतना गुदगुदाती थीं कि वे हंसते-हंसते लोट पोट हो जाते थे।
‘सितारों की पाठशाला’ पुस्तक लिखकर उन्होंने बाल-साहित्य में अनूठा एवं मौलिक योगदान दिया। आदित्यजी ने ‘इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे है’, ‘उल्लू का इंटरव्यू’, ‘अस्पताल की टांग’, ‘गोरी बैठी छत पर’ और ‘मॉडर्न शादी’ समेत कई पुस्तकें रचकर हास्य-व्यंग्य साहित्य की श्रीवृद्धि की। इसके साथ-साथ उन्होंने अनेक नाटक, प्रहसन एवं हास्य-व्यंग्य से परिपूर्ण ललित निबंधों का भी सृजन किया। हास्य के क्षेत्र में ‘शूर्पणखा’ महाकाव्य लिखने में लगे आदित्यजी का यह अभिनव प्रयोग अधूरा ही रह गया। एक हंसी को सौ रोगों की दवा मानने वाले आदित्यजी का कहना था -“जो आदमी जितना खुलकर हंसता है वह उतना ही अधिक पवित्र है। जिसका मन मैला है वह खुलकर नहीं हंस सकता।”
आदित्यजी वाचिक परंपरा के कवि थे। छल-छंद से दूर हमेशा छंद रचते रहे। आदित्यजी ने लोक-शैली को पुनर्जीवित किया था। उन्होंने आल्हा-छंद और सपरी शैली को फिर से जीवन दिया। मंच पर उनकी मौजूदगी हिन्दी कविता को समृद्ध करती थी।
सबको जी भरकर हंसाने वाले आदित्यजी इस तरह रुलाकर जाएंगे यह किसने सोचा था ? आदित्यजी को उन्हीं के शब्दों में हिन्दी जगत का अंतिम प्रणाम !
जीवन की बीती घडियां,
फिर नहीं लौट कर आतीं।
जाने वाला जाता है,
पर याद शेष रह जाती।
हम प्रार्थना करते हैं कि परमपिता परमेश्वर आदित्यजी की आत्मा को शान्ति एवं सदगति प्रदान करें और इस दुःख की घड़ी में उनके परिजनों को धैर्य धारण करने की शक्ति दें।
इस अवसर पर हिन्दी भवन एवं राजधानी की अन्य हिन्दीसेवी संस्थाए इस दुर्घटना में दिवंगत हुए हास्य-व्यंग्य के कवि स्व. नीरजपुरी एवं ओज के उभरते हुए सशक्त हस्ताक्षर स्व. लाड़ सिंह गुर्जर को भी अपने श्रद्धासुमन के साथ-साथ भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित कर रहे हैं। ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे तथा उनके परिजनों को धैर्य और सांत्वना प्रदान करें।
ओम् शान्तिः शान्तिः शान्तिः !
हिन्दी नाट्य जगत के पुरोधा रंगकर्मी हबीब तनवीर के आकस्मिक निधन से समूचा हिन्दी जगत व्यथित और शोकमग्न है। आगरा बाजार, चरणदास चोर, जिनें लाहौर नइं वेख्या, मिट्टी की गाड़ी, शतरंज के मोहरे समेत पचास से अधिक नाटकों के निर्देशक तनवीर ने छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य शैली ‘नाचा’ से हिन्दी नाट्य जगत को परिचित कराया। प्रशिक्षित अभिनेता ही अच्छी प्रस्तुति दे सकते हैं, इसे उन्होंने झुठलाया और आदिवासी लोक कलाकारों को मंच प्रदान करके साबित किया कि नाटक निर्देशक का माध्यम है।
हबीब तनवीर नाट्य निर्देशन के साथ-साथ आल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन केन्द्र, पत्रकारिता, कविता, लघु वृत्तचित्र निर्माण, संवाद लेखन, अभिनय आदि से आजीवन जुड़े रहे। ‘नया थियेटर’ तथा ‘हिन्दुस्तानी थियेटर’ की उन्होंने स्थापना की। वे सन् 1972 से 1978 तक राज्यसभा के सदस्य रहे।
हबीब तनवीर को भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण और पद्मश्री से नवाजा गया। नाट्य के क्षेत्र में उन्हें संगीत-नाटक अकादमी पुरस्कार, कालिदास सम्मान, शिखर सम्मान, अंतर्राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव में फ्रिज फर्स्ट एवार्ड सहित अनेक सम्मानों से विभूषित किया गया।
हबीब तनवीर के साथ एक पूरा युग समाप्त होगया। उन्होंने लोक से लेकर विश्व थियेटर तक को अपनी प्रतिभा से समन्वित करके भाषा और राष्ट्रीयता के भेद को मिटा दिया। हबीब तनवीर के निधन से समूचे रंगजगत की ही नहीं, साहित्य और सभी कला-माध्यमों की अपूरणीय क्षति हुई है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति और उनके परिजनों को इस दुःख की घड़ी में धैर्य और सांत्वना प्रदान करें। हिन्दी भवन परिवार और समूचे हिन्दी जगत की ओर से हबीब तनवीर की स्मृति को शत-शत नमन ! ओम् शांतिः शांतिः शांतिः !