हिन्दी भवन के तत्वावधान में हिन्दी कहानी के पुरोधा, पत्रकार, फ़िल्मकार और प्रखर चिंतक कमलेश्वर के निधन पर एक स्मृति सभा का आयोजन 30 जनवरी, 2007 को हिन्दी भवन के धर्मवीर संगोष्ठी कक्ष में किया गया। कमलेश्वरजी को अपनी श्रद्धांजलि देने के लिए स्मृति सभा में लेखक, पत्रकार, कवि, बुद्धिजीवी, कलाकार और साहित्यप्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। श्रद्धांजलि देने वालों में प्रमुख थे- सर्वश्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी, राजेन्द्र यादव, प्रभाष जोशी, राजेन्द्र अवस्थी, कन्हैयालाल नंदन, रामगोपाल बजाज, देवेन्द्रराज अंकुर, बालस्वरूप राही, शेरजंग गर्ग, हरिकृष्ण देवसरे, महेश दर्पण, बलदेव वंशी, प्रदीप पंत, अशोक चक्रधर, राजनारायण बिसारिया, राजपाल प्रकाशन के श्री विश्वनाथ, प्रेम जनमेजय, पुष्पा राही, इंदिरा मोहन, रत्ना कौशिक, संतोष माटा, इंदु गुप्ता, मुकुल उपाध्याय, दीक्षित दनकौरी, रामकिशोर द्विवेदी, ‘कथादेश’ के संपादक हरिनारायण, दिविक रमेश, हरीश नवल, प्रेम सिंह, अनिल जोशी आदि।
कमलेश्वरजी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कर्नाटक के राज्यपाल और हिन्दी भवन के अध्यक्ष श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने कहा कि कमलेश्वर एक शानदार और जीवंत रचनाकार थे। वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रभाष जोशी ने कमलेश्वर को आम आदमी के संघर्षों से जुड़ा साहसी लेखक बताया और कहा- “एक लड़ते हुए आदमी के साथ किस तरह से दोस्ती निभाई जा सकती है, इसका बहुत अच्छा स्पर्श मुझे कमलेश्वर से मिला।”
कमलेश्वरजी के अभिन्न मित्र ‘हंस’ के संपादक और कथाकार श्री राजेन्द्र यादव ने अपने उदगार व्यक्त करते हुए कहा- “कमलेश्वर मेरा बावन साल पुराना दोस्त था। इस लंबी दोस्ती में उसके और मेरे बीच कई मुद्दों पर असहमतियां रहीं। उसके साथ मेरी तकरार भी चलती थी और चुप्पी भी। मैं कमलेश्वर की कई बातों से ईर्ष्या रखता था। मुझे जिन बातों से ईर्ष्या थी, वह थीं- कमलेश्वर का बेहद उर्जावान होना, उसकी शुद्ध उच्चारण वाली मोहक आवाज और उसका सुलेख।”
अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हुए राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक और प्रख्यात रंगकर्मी श्री देवेन्द्रराज अंकुर ने कहा -“पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ और हरिवंशराय बच्चन की आत्मकथाओं के बाद कमलेश्वरजी की तीन भागों में छपी उनकी आत्मकथा अद्भुत और बेजोड़ है।……………
“मेरे अग्रज दोस्तों में कमलेश्वरजी का पहला स्थान रहेगा। मैंने अपने जीवन में अगर किसी एक व्यक्ति से प्रेरणा ली है, तो वह कमलेश्वर थे। और उनकी दो पंक्तियां जिन्होंने मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया, वह थीं- “महत्वपूर्ण यह नहीं है कि आप कहां हैं, महत्वपूर्ण यह है कि आप जहां हैं वहां रहकर क्या कर रहे हैं।”
वरिष्ठ रंगकर्मी श्री रामगोपाल बजाज ने कमलेश्वरजी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा- “आज वह नहीं हैं, लेकिन उनकी कहानियां, उनकी रचनाएं, उनका मुखर और ग्रामीण व्यक्तित्व सामने है। उसकी स्मृति तो रहेगी ही रहेगी। हमें अपने में कोशिश यह करनी चाहिए कि उनकी रचनाओं को, उनकी बातों को जितना हम और प्रसारित कर सकें, अपने-अपने कामों में करें।”
कमलेश्वरजी के प्रकाशक और मित्र राजपाल एंड संस के संचालक विश्वनाथजी ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा- “कमलेश्वर में बड़प्पन था। अपने देहावसान से कुछ दिन पहले कमलेश्वर ने मुझसे कहा था कि जितना सम्मान मुझे मिला है, मैं उसके योग्य नहीं हूं। कमलेश्वर, अभिताभ बच्चन और के. एल. सहगल की तरह ही आवाज़ के धनी थे। उनका हस्तलेख ऐसा था मानों मोती पिरोये गए हों।”
वरिष्ठ गीतकार बालस्वरूप राही ने कमलेश्वरजी को एक मुकम्मल इंसान बताया और कहा कि वह अपने ही नहीं, साथी लेखकों के स्वाभिमान की भी रक्षा करते थे।
लोकप्रिय व्यंग्य-कवि अशोक चक्रधर ने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा- “कमलेश्वरजी लोकप्रिय भी थे और शास्त्रीय भी। हमारे यहां ऐसे साहित्यकारों की नितांत कमी है जो लोकप्रिय और शास्त्रीय के बीच एक सेतु बना सकें और दोनों को समान महत्व दे सकें। उनके बहुआयामी व्यक्तित्व और कृतित्व पर जितनी चर्चा की जाए, कम है। ”
हिन्दी भवन के मंत्री डॉ. गोविन्द व्यास ने कमलेश्वरजी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा- “कमलेश्वरजी के सरोकार सदैव आम आदमी से जुड़े रहे। शोषित और पीड़ित वर्ग की आवाज़ थे कमलेश्वर। यद्यपि उनकी अपनी विशिष्ट विचारधारा और प्रतिबद्धताएं थीं, तथापि उन्हें सभी वर्ग और विचारधाराओं के लोगों से पर्याप्त प्यार ,दुलार और सम्मान मिला। ……………….
“हिन्दी भवन के तो कमलेश्वरजी संरक्षक जैसे थे। जब भी हिन्दी भवन अपने किसी आयोजन में उन्हें बुलाता तो वह अस्वस्थ रहते हुए भी चले आते। करीब तीन महीने पहले वह काफी अस्वस्थ थे ,तब हिन्दी भवन में डॉ. रामकुमार वर्मा की जन्मशती मनाने की तैयारी में जुटा था। जब मैंने कमलेश्वरजी से उनके गुरु डॉ. रामकुमार वर्मा की जन्मशती मे पधारने का आग्रह किया तो अस्वस्थ होते हुए भी वह अपनी धर्मपत्नी गायत्री कमलेश्वर के साथ समारोह में अंतिम बार हिन्दी भवन में पधारे और पूरे समय तक रहे। कमलेश्वरजी अपनी रचनाओं और मूल्यों के साथ सदैव हिन्दीजनों के हृदय में जीवित रहेंगे।”
इस अवसर पर डॉ. गोविन्द व्यास ने हिन्दी भवन की चित्र-दीर्घा में कमलेश्वरजी का तैलचित्र लगाने की घोषणा की।