वयोवृद्ध व्यंग्य गीतकार मुकुटबिहारी सरोज के निधन पर हिन्दी भवन के तत्वावधान में 21 सितम्बर, 2002 को स्मृति सभा का आयोजन किया गया।
हिन्दी भवन के संस्थापक मंत्री एवं व्यंग्य-विनोद के शीर्ष साहित्यकार पं. गोपालप्रसाद व्यास ने सरोजजी के आकस्मिक निधन पर अपनी शोकांजलि अर्पित करते हुए कहा- “आज सुबह समाचार पत्रों के माध्यम से जाना कि हिन्दी के प्रगतिशील गीतकार, काव्य-मंचों पर परम लोकप्रिय श्री मुकुटबिहारी सरोज का निधन हो गया। विडम्बना ये है कि जब काका हाथरसी पुरस्कार समारोह में इस वर्ष सम्मानित मुकुटबिहारी सरोज की प्रतीक्षा की जा रही थी, वे ग्वालियर के एक अस्पताल में मौत से दिल्ली पहुंचने की इजाजत मांग रहे थे, पर मृत्यु ने उनकी एक न सुनी। इस हृदय-विदारक मृत्यु पर मैं स्तब्ध हूं।”
‘किनारे के पेड़’ और ‘पानी के बीच’ नामक काव्य-संकलनों के रचनाकार अपनी काव्यपाठ की शैली, चुटीली भंगिमाओं और आम बोलचाल में तीखी-चुभती बात कहने के कारण उन्हें काव्य-प्रेमियों के बीच हमेशा याद किया जाता रहेगा।
हिन्दी भवन के संगोष्ठी कक्ष में आयोजित इस स्मृति सभा में कवयित्री प्रभाकिरण जैन ने श्री मुकुटबिहारी सरोज का विस्तृत परिचय दिया।
काका हाथरसी ट्रस्ट की ओर से प्रख्यात कवि अशोक चक्रधर ने सरोजजी को याद करते हुए कहा -“सरोजजी गीतों में धारदार व्यंग्य का प्रयोग करने वाले एक अद्वितीय और प्रगतिशील कवि थे। हिन्दी की वाचिक परंपरा में गीत को उन्होंने कोरी भावुकता से निकालकर यथार्थ की जमीन पर मजबूती से खड़ा किया। वह एक प्रखर चिंतक थे और निर्भीक वाणी में बिना सहमे,झिझके अपनी टिप्पणियां करते थे। उनके संसर्ग में जो भी आता था, वह संस्मरणों का खजाना लेकर लौटता था।’
स्मृति सभा में उपस्थित गणमान्य साहित्यकारों ने कहा कि सरोजजी के आकस्मिक निधन से हिन्दी कविता को अपूरणीय क्षति पहुंची है। उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के पहलुओं को उभारकर उनका अनुसरण करें।
सरोजजी की स्मृति सभा में कवि और सांसद उदयप्रताप सिंह, सोम ठाकुर, शेरजंग गर्ग, अल्हड़ बीकानेरी, आलोक पुराणिक, मुकेश गर्ग, गोविन्द व्यास आदि ने सरोजजी को अपनी शोकांजलि अर्पित की।